Tuesday, November 26, 2024
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Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, इस मंत्र का जरूर करें जप

Shardiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि के साथ ही मां शक्ति की उपासना शुरू हो गया है। शारदीय नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) के पूजन का विधान है। पहले दिन जहां मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप माता शैलपुत्री की पूजा हुई। शुक्रवार को देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना होगी। मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप माता ब्रह्मचारिणी का है। यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है यानी तप का आचरण करने वाली भगवती। इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। देवी का यह रुप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

भगवान शिव को पति-रूप में पाने के लिए की थी कठिन तपस्या

अपने पूर्वजन्म में ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान् शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किये थे।

सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपश्चर्या के पश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे बेलपत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान् शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया।

कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी के पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा। वह अत्यन्त ही कृशकाय हो गयी थीं। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यन्त दुःखित हो उठीं। उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिये आवाज की ‘उ मा’ अरे ! नहीं ओ ! नहीं !’ तबसे देवी ब्रह्मचारिणी के पूर्वजन्म का एक नाम ‘उमा’ भी पड़ गया था।

कठिन तपस्या से तीनों लोकों में मच गया हाहाकार

उनकी तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धिगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्म जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा, ‘हे देवि ! आजतक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की। यह तपस्या तुम्हीं से सम्भव थी। तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान् चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।’

भक्तों को देती हैं अनन्त फल

मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी मां की कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

ये भी पढ़ेंः- Shardiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि का पहला दिन, जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि और मंत्र

मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि (Brahmacharini Pooja Vidhi)

  • नवरात्रि के दूसरे दिन पूजा स्थल को गंगाजल से साफ करें।
  • फिर मंदिर में मां दुर्गा के सामने घी का दीपक जलाएं।
  • इसके बाद मां का अभिषेक करें।
  • इसके बाद मां को फूल, अक्षत, कुमकुम और सिंदूर आदि अर्पित करें।
  • अंत में कथा पढ़ें और आरती करके प्रसाद चढ़ाएं।

माता का प्रिय भोग 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि विधि-विधान से पूजा करने वाले भक्तों को ज्ञान, ध्यान और वैराग्य की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी को चीनी या गुड़ का भोग लगाना चाहिए। यह बहुत शुभ होता है।

मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र

‘‘या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।’’

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