भारत में टेनिस पर मानों ग्रहण लगा हुआ है। इस खेल में अच्छे खिलाड़ी उभर कर सामने नहीं आ रहे हैं। गुजरे जमाने में भारत ने विश्व को कई नामचीन खिलाड़ी दिए हैं, लेकिन मौजूदा दौर में कोई बड़ा नाम दिखाई नहीं देता। आजादी के बाद के दौर में भारत के पास अनेक विशिष्ट खिलाड़ी थे, लेकिन आज परिस्थितियां एकदम से बदली हुई हैं। लगता है कि इस खेल के प्रति युवाओं की दिलचस्पी कम हो रही है। हालांकि, इसे काफी ग्लैमर वाला खेल माना जाता है और इसमें जीतने पर विजेता खिलाड़ी को बहुत पैसा भी मिलता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश में युवा टेनिस खिलाड़ी सामने नहीं आ रहे हैं। पुरुष और महिला दोनों वर्गों में यही दशा है। उम्रदराज खिलाड़ी ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर औपचारिकता निभा रहे हैं। टेनिस जगत में पिछले कुछ सालों से भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है। वर्ष 2017 के बाद किसी भी भारतीय खिलाड़ी ने ग्रैंड स्लैम में विजयश्री हासिल नहीं की है। देश में क्रिकेट के प्रति बुखार कुछ ज्यादा ही है। आईपीएल ने इसमें और इजाफा ही किया है। खेल प्रेमियों का झुकाव अन्य खेलों की ओर नहीं हो पा रहा है। टेनिस वैसे भी धूम-धड़ाके वाला खेल नहीं है। इसमें रोमांच पैदा करने की क्षमता का अभाव है। इसके बावजूद विदेशों में टेनिस की बड़ी प्रतियोगिताओं को देखने के लिए काफी संख्या में दर्शक आते हैं।
एक कारण यह भी है कि टेनिस गांव-गरीबों का खेल नहीं है। यह खेल बड़े शहरों तक सीमित है। इसके बावजूद भारत में इसकी लोकप्रियता कम नहीं है। डेविस कप में भारत का प्रदर्शन हमेशा अच्छा रहा है। एशिया में हमारी टीम सफल रही है। तीन बार भारतीय टीम उपविजेता रही है, मगर स्टार खिलाड़ियों के न उभरने से देश आज चिंतित है। आखिर यह ‘सूखा’ कब खत्म होगा ? विम्बलडन, ऑस्ट्रेलियन ओपन, फ्रैंच ओपन और यूएस ओपन- दुनिया में टेनिस की ये चार बड़ी स्पर्धाएं हर साल होती हैं। इन्हें ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता भी कहा जाता है। इसमें से कोई एक या दो में जीत दर्ज करने वाला खिलाड़ी पूरी दुनिया पर राज करता है। कुछ खिलाड़ियों का तो कई सालों से इस पर वर्चस्व बना हुआ है। चूंकि इस खेल में ग्लैमर का तड़का लगता है, इसलिए महिला खिलाड़ियों का खेल देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है। एक जमाने में स्टेफी ग्राफ, मार्टिना हिंगिस, कुर्निकोआ और मारिया शारापोवा जैसी लड़कियों ने इस खेल पर राज किया। इनका खेल देखने की लालसा भला किसे नहीं होगी। भारत की सानिया मिर्जा को भी इसी सूची में रख सकते हैं। इन टेनिस सुंदरियों की वजह से ही इस खेल में आकर्षण रहता है। इन्हें लेकर कई तरह के चर्चे भी होते रहते हैं। कभी-कभार तो खेल से ज्यादा इनसे जुड़ी अन्य बातें हवाओं में तैरती रहती हैं। पत्र-पत्रिकाओं में खूब ‘गॉसिप्स’ छपते रहते हैं।
भारत ने दिए कई टेनिस सितारे
भारत अभी आजाद नहीं हुआ था और ब्रिटिश शासन का दौर चल रहा था। तभी 1880 में अंग्रेजों ने टेनिस खेल की नींव डाली। अंग्रेज शानो-शौकत वाली जिंदगी पसंद करते थे और इसीलिए उन्हें यह खेल बहुत प्रिय था। राजे महाराजाओं के साथ खेल कर वे अपना समय बिताते थे। वर्ष 1920 में ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन की स्थापना हुई। देश में इस खेल का संचालन यही एसोसिएशन करती है। आजादी के बाद का दशक हमारे लिए स्वर्णिम काल था। टेनिस में भारत के रामनाथन कृष्णन का नाम दुनिया में छा गया। उन्होंने 1962 में टेनिस के सबसे प्रतिष्ठित ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट विम्बलडन में चौथी रैंक हासिल की। इसके बाद 1970 में विजय अमृतराज और आनंद अमृतराज नामक दो भाइयों का उदय हुआ। विजय ने भारत को 1974 में दूसरी बार विश्व कप के फाइनल में पहुंचाया। यह जोड़ी इस खेल में काफी चर्चित हो गई। इसी बीच रामनाथन कृष्णन के पुत्र रमेश कृष्णन मैदान में आ गए। रमेश ने 1979 में जूनियर विम्बलडन चैंपियनशिप और जूनियर फ्रैंच ओपन का टाइटल जीत कर देश को चौंका दिया। उस कालखंड में दुनिया के जूनियर खिलाड़ियों में उनकी पहली रैंक थी। ये खिलाड़ी विश्व की टेनिस प्रतियोगिताओं में देश की अगुवाई करते रहे। नब्बे के दशक में लिएंडर पेस और महेश भूपति नामक सितारों का उदय हुआ। इन दोनों ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सफलताएं दिलाईं। 1997 में महेश भूपति भारत के पहले ग्रैंड स्लैम विजेता बने। उन्होंने फ्रैंच ओपन का मिक्स डबल मैच जीत लिया। लिएंडर पेस और भूपति की जोड़ी काफी हिट हो रही थी। इस जोड़ी ने 1999 में सभी चार ग्रैंड स्लैम मुकाबलों के फाइनल में जगह बनाई। इसमें से दो में विजयश्री भी मिली।
सानिया मिर्जा के टक्कर में कोई नहीं
टेनिस का खेल ग्लैमर एवं चकाचौंध के लिए विख्यात है और भारत की सानिया मिर्जा ने इसमें आकर चार चांद लगा दिए। डबल्स में वह विश्व की नंबर एक खिलाड़ी रही हैं। सानिया ने अपने कॅरियर में छह ग्रैंड स्लैम टाइटल जीते हैं। वर्ष 2000 में भारत की पहली डब्ल्यूटीए यानी वीमेंस टेनिस एसोसिएशन टूर्नामेंट की विजेता बन कर खुद को इस खेल में स्थापित कर दिया। वर्ष 2000 से 2010 के बीच उन्होंने ग्रैंड स्लैम के डबल मैचों में कई खिताब जीते। वर्ष 2003 से 2013 तक वह भारत की नंबर एक खिलाड़ी रहीं। दुनिया की विभिन्न स्पर्धाओं में सानिया ने 06 स्वर्ण सहित 14 पदक अपने नाम किए हैं। ये प्रतियोगिताएं हैं- एशियाई खेल, कामनवेल्थ गेम्स और एफ्रो एशियाई खेल, मगर, सानिया का दुर्भाग्य है कि वह ओलंपिक खेलों में कोई पदक नहीं जीत पाईं। अब उनके खेल में गिरावट देखी जा रही है। बढ़ती उम्र का असर भी है। वह 35 साल की हो चुकी हैं। सिंगल मैचों से उन्होंने 2013 में रिटायरमेंट ले लिया। 2010 में पाकिस्तान के क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी रचाने के बाद वह विवादों में भी पड़ी। देश के खेल प्रेमियों ने उन्हें खरी-खोटी सुनाई, लेकिन उन्होंने भारत के लिए खेलना जारी रखा। इसमें शक नहीं कि सानिया मिर्जा ने भारतीय टेनिस को बुलंदी पर पहुंचाया है। मिक्स डबल में महेश भूपति के साथ सानिया की जोड़ी ने कई कामयाबियां अर्जित की हैं।
2016 में टाइम मैगजीन ने विश्व की 100 सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में सानिया को शामिल किया था। महिला वर्ग में सानिया की टक्कर का कोई खिलाड़ी अभी देश में नहीं है। हां, अंकिता रैना ने इस ओर कदम रखा है लेकिन उन्हें अभी लंबा सफर तय करना होगा। 2021 में अंकिता रैना दूसरी भारतीय महिला रहीं, जिसने डब्ल्यूटीए टाइटल जीता। वह डबल की रैंकिंग में टॉप-100 में शामिल रही। इससे एक उम्मीद अवश्य दिखती है कि महिला वर्ग में कोई खिलाड़ी आगे आ रही है। लिएंडर पेस अकेले भारतीय हैं, जिन्होंने ओलंपिक में भारत को एक पदक दिलाया है। टेनिस के खेल में उन्होंने अटलांटा ओलंपिक-1996 में कांस्य पदक हासिल किया था। देश के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी। ओलंपिक में पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। भारत के खिलाड़ी हर बार खाली हाथ लौटते थे, पर अब परिदृश्य बदल रहा है। टेनिस जगत में लिएंडर पेस एक बड़ा नाम है। ओलंपिक में पदक जीत कर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा साबित कर दी। नब्बे के दशक में लिएंडर पेस का नाम हर बच्चे की जुबां पर था। महेश भूपति के साथ उनकी जोड़ी तहलका मचा रही थी, मगर उसके बाद कोई भारतीय टेनिस में पदक नहीं ला सका। 1996 के बाद से महिला या पुरुष वर्ग में हाथ खाली है।
टेनिस में अहम का टकराव भी
बात 2012 के लंदन ओलंपिक की है। रोहन बोपन्ना ने ओलंपिक में लिएंडर पेस का जोड़ीदार बनने से इनकार कर दिया। बोपन्ना ने ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन को पत्र लिख कर बता दिया कि वह पेस के साथ नहीं खेल सकते। अब टेनिस संघ के सामने यह समस्या आई कि वरिष्ठ खिलाड़ी पेस के साथ युगल मैचों के लिए किसकी जोड़ी बनाई जाए। मजबूरी में उसे युवा खिलाड़ी विष्णुवर्धन को पेस का पार्टनर बनाना पड़ा। इससे पेस भड़क गए। उन्होंने ओलंपिक से हटने की धमकी दे दी। पेस भारत के शीर्ष खिलाड़ी थे, इसी कारण उन्हें ओलंपिक में सीधा प्रवेश मिला था। पेस का कहना था कि इतने जूनियर खिलाड़ी के साथ मेरा खेलना उचित नहीं होगा। हालांकि, उन्हें मनाने का प्रयास किया गया। आप देख सकते हैं कि सीनियर खिलाड़ियों के बीच किस तरह अहम का टकराव होता है। विष्णुवर्धन 2010 में ग्वांगझू एशियाड में सानिया मिर्जा के साथ मिश्रित युगल में खेल चुके हैं। इसी टकराव के नाते टेनिस एसोसिएशन को लंदन ओलंपिक में दो टीमें भेजनी पड़ी। खेल मंत्रालय ने इस विवाद में दखल देने से इनकार कर दिया था। टेनिस में ये मामले कई बार देखे गए हैं कि ‘मैं अमुक को जोड़ीदार नहीं बनाऊंगा।’
रोहन बोपन्ना के बाद कौन
भारत में फिलहाल रोहन बोपन्ना का नाम ही आता है। पिछला ग्रैंड स्लैम बोपन्ना के नाम ही है। 2017 में फ्रैंच ओपन में उन्होंने मिक्स डबल में इसे जीता था। इसके बाद किसी भारतीय खिलाड़ी ने ग्रैंड स्लैम नहीं जीता है। बोपन्ना 42 साल के हो चुके हैं, इसलिए उनका करियर भी समाप्ति की ओर है। फ्रैंच ओपन में 2 जून 2022 को लाखों भारतीयों की नजरें मेंस डबल के सेमीफाइनल पर थी। भारत के रोहन बोपन्ना अपने जोड़ीदार नीदरलैंड के मिडेलकूप के साथ खेल रहे थे, पर यह जोड़ी हार गई। इससे खेल प्रेमियों की उम्मीद टूट गई। इसके बाद यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ कि टेनिस में अब भारत का भविष्य कैसा होगा ? सिंगल में तो कोई खिताब भारत नहीं जीत पाया है, पर डबल्स में हमारे खिलाड़ी ग्रैंड स्लैम चैंपियन बनते रहे हैं। पिछले पांच साल से इन इवेंट्स में भी खिताब का सूखा पड़ा है। भारतीय खेल प्राधिकरण के लखनऊ केन्द्र के निदेशक संजय सारस्वत का कहना है कि खिलाड़ियों का ध्यान टेनिस के बजाय दूसरे खेलों में चला गया है। लोकल स्टार नहीं उभर रहे हैं। मुक्केबाजी और कुश्ती में नए युवा आ रहे हैं। ओलंपिक में पदक मिलने से इन खेलों की ओर झुकाव बढ़ा है। इसके अलावा टेनिस कोर्ट आम तौर पर क्लब आदि के होते हैं। छोटी जगहों पर सुविधाओं का अभाव भी है। टेनिस के प्रति आम लोगों की दिलचस्पी कम हुई है। इसी कारण बड़े खिलाड़ियों का टोटा बना हुआ है।
आदर्श प्रकाश सिंह