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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता विधेयक का किया कड़ा विरोध

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नई दिल्लीः ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता विधेयक को एक प्राइवेट बिल के तौर पर राज्यसभा में पेश किए जाने को निराशाजनक कदम बताया है। बोर्ड ने इस कदम को देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश बताया है।

बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि देश के संविधान का निर्माण करने वालों ने बहुत ही सोच समझ कर संविधान बनाया था। संविधान में हर वर्ग को अपने धर्म और अपनी संस्कृति के अनुसार जिंदगी गुजारने की इजाजत दी गई है। इसी सिद्धांत पर केंद्र सरकार ने आदिवासियों से समझौता भी किया था ताकि वह पूरे देश में अपनी विशेष पहचान के साथ इस देश के नागरिक बनकर रह सकें। उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि इनको कभी भी उनकी भाषा एवं संस्कृति से रोकने की कोशिश नहीं की जाएगी। इसी भरोसे के तहत देश में मुसलमान, ईसाई, पारसी और अन्य धार्मिक ग्रुप अपने-अपने पर्सनल लॉ के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं। अब इन सब पर समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई फायदा तो नहीं होगा लेकिन इससे देश को नुकसान हो सकता है। इससे हमारे देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता प्रभावित हो सकती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह देश की ज्वलंत समस्याओं पर अपना ध्यान केंद्रित करे। ऐसी बातों से बचे जो फायदे के बजाय नफरत पैदा करने वाली हों।

बोर्ड महासचिव खालिद सैफुल्लाह ने कहा कि भारत जैसा देश जहां दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी बसती है और जो ढेर सारे धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रुपों का संगम है, वहां समान नागरिक संहिता बिल्कुल भी सही नहीं है बल्कि यह नुकसानदेह साबित होगा। मौलाना का कहना है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी अपने एजेंडे और राजनीति को मजबूती पहुंचाने के लिए अपने सांसदों से इस तरह के बिल पेश करा रही है। इसका मकसद एक ही संस्कृति को पूरे देश पर थोपने की नाकाम कोशिश है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसका कड़ा विरोध करता है और आइंदा भी करता रहेगा। बोर्ड तमाम सेकुलर पार्टियों से भी अपील करता है कि सरकार के संविधान विरोधी इस कदम को रोकने की भरपूर कोशिश करें।

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