Chhattisgarh ,सुकमाः जिले के घुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में बसे गोगुंदा गांव में मलेरिया के मामले अब भी बढ़ रहे हैं, पिछले 15 दिनों में 10 ग्रामीणों की मौत के बाद प्रशासन की नजर में आया। उल्लेखनीय है कि गांव गोगुंदा हमेशा से मलेरिया हाई रिस्क जोन रहा है। पिछले 6 दिनों से गांव में कैंप लगाकर लोगों का इलाज कर रही स्वास्थ्य विभाग की टीम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
स्थगित कर दिया गया कैंप
ग्रामीणों की मदद से दिन में एक बार पहाड़ी पर बसे गांव में राशन और दवा पहुंचाई जा रही है। पर्याप्त दवा नहीं होने से जांच भी प्रभावित हो रही है। वहीं, तीन दिन पहले भेज्जी थाना क्षेत्र के नगराम के जंगल में हुई मुठभेड़ में 10 नक्सलियों के मारे जाने के बाद यहां 23 नवंबर से लगाया गया कैंप स्थगित कर दिया गया है। मिली जानकारी के अनुसार 18 से 22 नवंबर तक कुल 1703 ग्रामीणों की जांच की गई, जिसमें 229 मलेरिया पॉजिटिव पाए गए।
दो दिन पहले हुई मुठभेड़ के बाद गोगुंडा के सरपंच और सचिव के लिखित पंचनामा के बाद मेडिकल टीम पहाड़ी से नीचे उतरी है। नक्सलवाद के चलते गोगुंडा के 6 मोहल्ले अभी भी प्रशासन की पहुंच से दूर हैं। स्वास्थ्य विभाग और सुरक्षा बलों के अलावा सरकारी तंत्र का कोई भी विभाग अब तक यहां नहीं पहुंच पाया है। गौरतलब है कि गांव की आबादी 2000 से ज्यादा है। अभी तक करीब 400 ग्रामीणों के ही आधार कार्ड बन पाए हैं।
लगातार बढ़ रही मलेरिया मरीजों की संख्या
नक्सली आतंक के चलते गोगुंडा का सर्वे भी नहीं हो सका है। 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 1600 है। 2000 से ज्यादा आबादी वाले गोगुंडा में स्वास्थ्य और सुरक्षा बलों के अलावा सरकारी तंत्र का कोई भी विभाग नहीं पहुंच पाया है। न तो सर्वे हो सका है और न ही प्रशासन के पास गांव के बारे में सही आंकड़े हैं। सुकमा जिले का गोगुंडा हमेशा से मलेरिया के लिहाज से हाई रिस्क जोन रहा है। 2020 में सरकार के मलेरिया मुक्त बस्तर अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम ने यहां मेडिकल कैंप लगाया था।
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जिले के गोगुंदा में मलेरिया के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। गांव में क्रेडा की ओर से लगाई गई सोलर लाइटें दिख जाती हैं, लेकिन सालों से मेंटेनेंस के अभाव में ज्यादातर खराब हैं। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण गोगुंदा के 6 मोहल्लों में ट्यूबवेल नहीं खोदे जा सके। ग्रामीणों की मदद से यहां एक दर्जन से ज्यादा रिंग वेल बनाए गए हैं। इनसे ग्रामीणों को पानी की आपूर्ति की जाती है। गांव में 200 से ज्यादा बच्चे हैं, लेकिन यहां सिर्फ दो प्राइमरी स्कूल और एक आंगनबाड़ी है।
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