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लखनऊः अस्पतालों के बाहर ठंड से ठिठुर रहे मरीज व तीमारदार, खचाखच भरे रैन बसेरे

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लखनऊः शहर के अस्पतालों में बनाए गए रैन बसेरों के खचाखच भरे होने की वजह से मरीज व तीमारदार इस कड़कड़ाती ठंड में ठिठुरने को मजबूर हैं। अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि जिनको जगह मिल भी गई है, वह भी ठीक से सो नही पा रहे हैं। तमाम शिकायतों के बाद भी जिम्मेदारों की तंद्रा टूटने का नाम नही ले रही है।

इंडिया पब्लिक खबर ने शहर के बड़े अस्पतालों के बाहर मरीजों व तीमारदारों के लिए बनाए गए रैन बसेरों की पड़ताल की, तो जिम्मेदारों के दावों की कलई खुल गई। अस्पतालों में जो रैन बसेरे बनाए गए हैं, वह पर्याप्त नही हैं और लोगों को खुले में सोने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यही नही रैन बसेरे के भीतर पसरी अव्यस्थाएं यहां रह रहे लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं। इसको लेकर लोगों ने जिम्मेदार अधिकारियों से शिकायत भी की, लेकिन उसका कोई समाधान नही निकल पा रहा है।

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केजीएमयू के हालात

शहर के बड़े अस्पताल किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) में 6 रैन बसेरे बनाए गए हैं, जिनमें करीब 1,000 से ज्यादा लोगों के रूकने की व्यवस्था हो सकती है। शुरूआत में तो यह व्यवस्था पर्याप्त थी, लेकिन अब बाहर के जिलों से आने वाले मरीजों की संख्या ज्यादा होने से मरीजों के तीमारदारोें को अस्पताल परिसर में ही रूकने को मजबूर होना पड़ रहा है। लखीमपुर खीरी निवासिनी कामिनी देवी को इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज लेकर आए उनके पति राम आसरे पिछले पांच दिनों से मेडिकल कॉलेज के गेट नंबर-2 पर डेरा डाले हुए हैं।

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खुले आसमान के नीचे लेटे दंपति ने बताया कि अभी डॉक्टर साहब जांच करवा रहे हैं और रोज ही बुला रहे हैं इसलिए हम गांव नहीं जा पा रहे। बार-बार लखीमपुर से आना-जाना हमारे लिए बहुत महंगा है। डेंटल भवन के सामने खाली पड़ी जमीन पर इस दंपति के साथ और भी कई लोग खुले आसमान के नीचे ठंड में रात बिताने को मजबूर हैं। डेंटल भवन के ठीक सामने करीब एक महीने से ज्यादा समय से रूके हुए बस्ती निवासी मलह गौतम ने बताया कि उनकी पत्नी के बच्चेदानी में कैंसर है। लगभग रोज ही डॉक्टर के पास जाना होता है, और अब तो रोज ही कीमोथेरेपी होगी। बार-बार घर जाना और वहां से आना संभव नहीं है।

मैंने रेलिंग के सहारे पन्नी डालकर एक छोटी सी झोपड़ी बना ली है, जिसमें रात गुजार रहे हैं। ऐसा ही कुछ उनके बगल में बनी झोपड़ी में जालौन के बुद्धसेन का कहना है। बुद्धसेन ने बताया कि जालौन के डॉक्टर ने दो महीना पहले उनकी पत्नी को केजीएमयू रेफर किया था, तब से वह यहीं पर हैं। एक दिन छोड़कर दूसरे दिन उन्हें डॉक्टर को दिखाने जाना होता है। लखनऊ में कोई जानकार न होने की वजह से वह यहीं अस्पताल परिसर में ही रह रहे हैं। इसको लेकर केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि 100 लोगों की क्षमता का एक रैना बसेरा शताब्दी परिसर में बनकर तैयार है, जल्द ही समस्या दूर होगी।

क्वीन मेरी अस्पताल

लोहिया अस्पताल

केजीएमयू की तरह लोहिया अस्पताल के परिसर में भी रात को हर जगह तीमारदारों के बिस्तर खुले आसमान के नीचे दिख जाएंगे। मोटरसाइकिल स्टैंड के पास बिस्तर बिछाकर लेटे अमृत लाल ने बताया कि फैजाबाद में डॉक्टर ने पत्नी को लोहिया रेफर किया था। कूल्हे का ऑपरेशन होना है, जिसके लिए जांच चल रही है। पति-पत्नी दोनों पिछले कई दिनों से अस्पताल परिसर में ही अपना समय काट रहे हैं। अमृत लाल ने बताया कि पत्नी का ऑपरेशन होने पर उनका दाखिला होगा, तो एक तीमारदार को अंदर रूकने दिया जाएगा। तभी इस कड़कड़ाती ठंडी से मुक्ति मिलेगी। वहीं लखीमपुर से आए अलीम अहमद ने बताया कि उनकी पत्नी सोनी को बोन टीबी हुई है। रात को बहुुत परेशानी होती है। ठंडक के साथ-साथ रात भर मच्छर भी परेशान करते हैं।

लोहिया अस्पताल

बलरामपुर अस्पताल

बलरामपुर अस्पताल में बने रैन बसेरे के खचाखच भरे होने और अस्पताल में मरीज के साथ एक ही तीमारदार के रूकने से बाहर ठंड में रात बिताने वालों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। इमरजेंसी के सामने बेंच पर बैठे हुए 5 साल के बच्चे के साथ सतीश कुमार ने बताया कि ठंड में रात बितानी पडे़गी। सतीश बच्चे को सुलाने का इंतजाम कर रहे थे और खुद पूरी रात जागने का विचार बना चुके थे। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि तीमारदारों के लिए अस्थायी रैना बसेरा बनाने के बारे में विचार किया जा रहा है।

सिविल अस्पताल

सिविल अस्पताल के भीतर लोग जमीन पर ही बिस्तर बिछाकर रात बिताने को मजबूर हैं। यहां पर सीतापुर से आए युवक ने बताया कि उसके पैर की हड्डी टूट गई है, लेकिन डॉक्टर साहब ने कल सुबह ओपीडी में आने को कहा है। रात में हम कहां जाएंगे, इसलिए अस्पताल में ही लेटकर रात गुजारेंगे। ऐसी ही हालत हार्निया का ऑपरेशन कराने आए राम अकबाल की भी है, उन्होंने बताया कि वह अपने सबसे छोटे बेटे के इलाज के लिए यहां आए हैं और अस्पताल परिसर में ही दिन-रात बिताने को मजबूर हैं। दिन तो फिर भी कट जाताा है, लेकिन रात में ठंड से ठिठुरना पड़ता है।

सिविल अस्पताल

क्वीन मेरी अस्पताल

यहां के हालात तो बद से बदतर है। अस्पताल के गेट के अंदर पहुंचते ही पूरे परिसर में तीमारदारों के बिस्तर ही दिखाई देते हैं। सीतापुर से आए भगवान दीन ने बताया कि यहां अंदर सिर्फ महिलाओं को ही प्रवेश करने दिया जाता है। जिससे साथ आए पुरूषों को बाहर ठंडक में ही रात बितानी पड़ती है। यहां पर पिछले 12 दिन से बिस्तर बिछाए अभिषेक ने बताया कि पिछले दिनों ठंडक बढ़ने से यहां रूकने वाले सभी लोग सर्दी-जुकाम से पीड़ित हो चुके हैं। रैन बसेरे में पैर रखने की भी जगह नहीं है।

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