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चैत्र नवरात्रि के छठें दिन अमोद्य फलदायिनी देवी कात्यायनी की होती है पूजा, इस मंत्र का करें जाप

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लखनऊः वासंतिक नवरात्र के छठें दिन मां दुर्गा के षष्ठम स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा होती है। पांचवें दिन बुधवार को मां स्कंदमाता की आराधना की गयी। महर्षि कात्यायन द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में कात्यायनी पैदा हुई थीं। महर्षि ने इनका पालन-पोषण किया था। देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। इनकी पूजा अर्चना से सभी संकटों का नाश होता है।

मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं। इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है। अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।

मां कात्यायनी का स्वरूप
देवी मां कात्यायनी का रूप स्वर्ण के समान चमकीला है। मां सिंह पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। मां कात्यायनी के एक हाथ में तलवार, दूसरे में कमल और दो हाथ अभयमुद्रा में है। मां कात्यायनी को यूपी, बिहार, झारखंड में छठ मैया के नाम से भी जाना जाता है।

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देवी कात्यायनी के मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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