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बस्तर : यहां होली पर्व पर निभाई जाती है छह सौ साल पुरानी परंपरा

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रायपुर: बस्तर में छह सौ वर्षों से चली आ रही परंपरा के तहत बस्तर दशहरे की तर्ज पर माड़पाल में रथ यात्रा निकाली गई और उसके बाद रविवार की रात से यहां विधि-विधान से होलिका दहन कर होली का त्योहार शुरू हो गया। इस आयोजन में बस्तर राजपरिवार के सदस्यों ने शामिल होकर बस्तर के देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की और लोगों की सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा।

विशाल रथ से होती है परिक्रमा

बस्तर के माड़पाल में विशाल रथ को बस्तर दशहरा में तैयार किये गये रथ की तरह ही तैयार किया गया था। बस्तर के इस होली उत्सव में बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव शामिल हुए। रविवार की रात होलिका दहन के समय चार पहियों वाले विशाल रथ की परिक्रमा शुरू हुई। इस रथ पर बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव बैठे थे। दंतेवाड़ा में फाल्गुन पूर्णिमा के समय होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के बाद अग्नि के अंगारे दंतेवाड़ा से माड़पाल लाए गए और रात करीब 12 बजे राजपरिवार के सदस्यों ने माड़पाल में मावली देवी की पूजा कर होलिका दहन किया। माड़पाल में होलिका दहन के बाद अंगारों को जगदलपुर शहर लाया गया। इसके बाद दंतेश्वरी मंदिर और मावली मंदिर के सामने होलिका दहन किया गया। इस तरह रबस्तर में होली का त्योहार शुरू हो गया।

600 साल पुरानी है परंपरा

होलिका दहन से पहले बस्तर की आराध्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान परंपरा का पालन करने के लिए 12 परगना के देवी-देवता भी शामिल हुए। इस होलिका दहन कार्यक्रम में रथ निर्माण समिति, मांझी चालकी, 12 परगना के लोग और होली समिति के लोगों ने योगदान दिया। यह भी पढ़ेंः-होली मिलन समारोह में बुलाकर प्रॉपर्टी डीलर की गोली मारकर हत्या बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने बताया कि यह परंपरा साल 1423 में शुरू हुई थी। यही वजह है कि यह परंपरा 601 साल से लगातार चली आ रही है। हर वर्ष होली के अवसर पर बस्तर के राजा अपनी वेशभूषा में माड़पाल पहुंचते हैं और होलिका दहन के कार्यक्रम में भाग लेते हैं। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)