लखीमपुर खीरीः भोले नाथ की नगरी और छोटी काशी के नाम से मशहूर लखीमपुर खीरी में सावन माह में भक्तों का जबरदस्त जमावड़ा लगता है। सावन के आखिरी सोमवार को भक्तों की यहां भीड़ लाखों में पहुंच जाती है। ऐसा इसलिए कि इस दिन लगने वाले भूतनाथ मेले का यहां विशेष महत्व है। ऐसा भी कहा गया है कि इस दिन भोलेनाथ के साथ गणेश जी की भी भक्तों पर विशेष कृपा होती है और सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
भूतनाथ मेले की पौराणिक कथा
पं. कमल किशोर मिश्र बताते हैं कि इसे लेकर जो प्रचलित कथा है उसमें बताया गया है कि रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था। कैलाश पर्वत पर कठोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। जब वर मांगने का समय आया तो रावण ने भोलेनाथ को लंका चलने का वरदान मांगा। फलस्वरूप भगवान शिव ने शिवलिंग भेंट करते हुए कहा कि इसे जहां भी रख देंगे, वहां यह स्थापित हो जायेगा। रावण शिवलिंग को कंधे पर रखकर लंका के लिए निकल पड़ा। लक्ष्मीपुर (लखीमपुर) से होते हुए गोला तक पहुंचा। जहां भगवान श्रीगणेश ने लीला रचकर रावण के मनोरथ को सफल होने से रोका। सावन महीने के अंतिम सोमवार को भूतनाथ का विशेष मेला लगता है। यह मेला भगवान गणेश को समर्पित है।
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जब रावण शिवलिंग को लेकर गोला पहुंचा तो उसका मनोरथ विफल करने के लिए भगवान गणेश ने चरवाहे का रूप धर लिया। रावण को लघुशंका लगी। उसने चरवाहे का रूप धरे भगवान गणेश को बुलाया और उनके कंधे पर शिवलिंग रखते हुए कहा कि मेरे लौटने तक इसे कंधे पर ही रखना। यदि जमीन पर रखा तो उसका शीश धड़ से अलग हो जाएगा। रावण के जाते ही गणेश जी ने शिवलिंग को धरा पर रख दिया। वापस आने पर जब रावण ने यह दृश्य देखा तो गुस्से में शिवलिंग को अंगूठे से जमीन में धंसा दिया और चरवाहे का रूप धरे श्री गणेश को पास के कुएं में डाल दिया। इस कुएं की ही पूजा भूतनाथ के रूप में होती है। भूतनाथ पूजन वाले दिन कुएं से चीखने की आवाज आने का भी दावा किया जाता है। लोगों ने बताया कि भूतनाथ मेले वाले दिन रात के वक्त एक बार कुएं से चीखने की आवाज आती है। लोगों की आस्था है कि यह आवाज भगवान गणेश की ही है।
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