लखनऊः दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए किसानों के खेतों में भेड़ो की भीड़ इकट्ठा कर खेत को उपजाऊ बनाने वाले भेड़ पालकों के दिन बहुरने वाले हैं। उन्हें आर्थिक संबल मिलने वाला है। वजह भेड़ों से मिलने वाले ऊन से धागा बनाने के लिए सरकार प्रयागराज में ऊनी धागा उत्पादन केंद्र की इकाई लगा रही है। इस इकाई के लगने से कई लाभ होंगे। मसलन, भेड़ पालकों को उनके ऊन के बेहतर दाम मिलेंगे। इस ऊन से प्रयागराज में स्थापित होने वाली इकाई में बेहतर गुणवत्ता का ऊनी धागा बनेगा। इस धागे से कारखानों में कंबल बनेंगे। इनकी गुणवत्ता भी परंपरागत रूप से बनने वाले कंबलों से बेहतर होगी। इस सबका लाभ अन्य लोगों के साथ भेड़ पालकों को भी होगा।
राज्य में ऊन से कंबल बनाने के सात इकाइयां हैं। गाजीपुर, आदिलाबाद (गाजीपुर), खजनी (गोरखपुर), नजीमाबाद (बिजनौर), भदोही, मीरजापुर, टीकर माफी (अमेठी) में ऊन से कंबल बनाने के कारखाने हैं। मौजूदा समय में सरकार कंबल बनाने के लिए खुले बाजार से ऊन खरीदती है। चूंकि भेड़ का कंबल गर्म और टिकाऊ होता है। इसलिए सामान्य मांग के अलावा जाड़े के दिनों में गरीबों में बांटने के लिए सरकार को भी बड़ी संख्या में इसकी जरूरत पड़ती है। लिहाजा बाजार कोई समस्या नहीं है। ऊन की मांग बढ़ने पर भेड़ पालन के प्रति और लोग भी प्रोत्साहित होंगे। पशु चिकित्सक डॉक्टर राकेश शुक्ला के अनुसार, भेड़ पालन एक प्राचीन व्यवसाय है। भेड़ से ऊन और मांस तो मिलता है। भेड़ की मेगनी से बनने वाली खाद में बंजर जमीन को भी उर्वर बनाने की क्षमता होती है। कम समय, कम जगह और कम खर्चे में पलने के कारण गरीबों के लिए यह अच्छा रोजगार है।
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इसकी प्रजनन क्षमता भी अधिक होती है। अमूमन एक भेड़ 12 से 18 महीने में प्रजनन योग्य हो जाती है। एक साथ यह 1-2 मेमनों (बच्चे) को जन्म देती है। इस तरह इनकी संख्या भी तेजी से बढ़ती है। भेड़ अमूमन अनुपयोगी भूमि में चरती है, कई खरपतवार आदि अनावश्यक घासों का उपयोग करती है। उंचाई पर स्थित चरागाह जहां अन्य पशु नहीं पहुंच पाते वहां भी चरने जा सकती है। ऐसे में इसके पालने का खर्च भी न के बराबर है। लिहाजा, कम संसाधन वाले पशुपालक के लिए भेड़ पालन उपयुक्त है। ऐसे पशुपालकों के लिए सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। अपर मुख्य सचिव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग डॉ. नवनीत सहगल का कहना है कि 1.29 एकड़ में खुलने वाले ऊनी धागा उत्पादन केंद्र की स्थापना पर 499.78 करोड़ रुपये की लागत आएगी। उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लिमिटेड कानपुर द्वारा बाउंड्री वाल तैयार की जा चुकी है। उम्मीद है कि अगले तीन महीने में इसमें उत्पादन शुरू हो जाएगा।
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