Friday, November 22, 2024
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सावन के आखिरी सोमवार को पुत्रदा एकादशी का बन रहा शुभ संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और मंत्र

नई दिल्लीः हिंदू कैलेंडर का श्रावण मास पांचवा माह है। सावन माह में भगवान शिव की आराधना करने का विधान है क्योंकि यह माह भगवान महादेव को अतिप्रिय है। सावन में प्रत्येक सोमवार को भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सावन माह का आखिरी सोमवार 08 अगस्त को पड़ रहा है। इस दिन एक और बेहद विशेष संयोग बन रहा है। सावन के आखिरी सोमवार को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि भी है। इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। एकादशी भगवान श्रीहरि को प्रिय है। ऐसे में पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) और सावन सोमवार का संयोग बेहद शुभ माना जा रहा है। पुत्रदा एकादशी की विधिवत पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही सावन के आखिरी सोमवार को रवि योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। ज्योतिष के अनुसार रवि योग में मांगलिक कार्य करना अति उत्तम होता है। 8 अगस्त को सुबह 5 बजकर 46 मिनट से दोपहर 2 बजकर 37 मिनट तक रवि योग रहेगा।

पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 07 अगस्त को शाम 11.50 बजे से प्रारम्भ।
एकादशी तिथि 08 अगस्त को रात 9 बजे समाप्त।
एकादशी व्रत का पारण 9 अगस्त को प्रातः 5.47 से 8.27 बजे तक।

vishnu bhagwan

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पुत्रदा एकादशी की पूजा की विधि
एकादशी के दिन प्रातः काल घर की सफाई के बाद नित्य कार्यो से निवृत्त होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेकर घर में लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर स्थापित करें। इसके बाद भगवान को पीला वस्त्र अर्पित करें। फिर भगवान श्रीहरि को धूप, दीप, पुष्प, मौसमी फल, तुलसी और मिष्ठान अर्पण करें और व्रत कथा का पाठ कर आरती करें। चूंकि एकादशी के दिन सावन माह का आखिरी सोमवार भी है। ऐसे में भगवान विष्णु को बेल पत्र अर्पित करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान महादेव का अभिषेक भी जरूर करें।

पुत्रदा एकादशी का मंत्र
पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के बारे में मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से संतान की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा करते समय इस मंत्र का जाप अवश्य ही करना चाहिए।

“ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम् गता” “ॐ क्लीं कृष्णाय नमः”।

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