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Lok Sabha Election 2024: एमपी की 7 सीटों पर भाजपा को करनी होगी माथापच्ची, नए उम्मीदवारों को तलाशेगी पार्टी!

BJP accused Sukhu government of pauperizing the state
Lok Sabha Election 2024, भोपालः मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। हालांकि मिशन 29 पर काम शुरू हो गया है, लेकिन पार्टी के सामने अभी भी उन सात सीटों पर उम्मीदवारी का सवाल है, जहां से सांसदों ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। राज्य में 29 लोकसभा सीटें हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 28 सीटें जीती थीं, कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा में जीत हासिल कर सकी थी जहां से नकुलनाथ सांसद हैं। अब बीजेपी की नजर छिंदवाड़ा पर भी है। सभी 29 सीटें जीतने के लिए मिशन-29 बनाया गया है। विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति के तहत बीजेपी ने तीन तत्कालीन केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल सात सांसदों को मैदान में उतारा था। इनमें से पांच को जीत मिली है लेकिन दो को हार का सामना करना पड़ा है।

नए चेहरों को तलाशने की चुनौती

अब बीजेपी के सामने नए चेहरों को तलाशने की चुनौती है। जो सांसद और विधायक बन गए हैं उनकी जगह नए चेहरों की जरूरत तो पड़ेगी ही, लेकिन क्या विधानसभा चुनाव भी हार चुके लोगों को मौका दिया जाएगा? बीजेपी ने जिन तत्कालीन सांसदों को मैदान में उतारा था उनके संसदीय क्षेत्रों पर नजर डालें तो नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से सांसद थे और यह क्षेत्र क्षत्रिय बहुल माना जाता है, जबकि प्रह्लाद पटेल को नरसिंहपुर से चुनाव लड़ाया गया था और वह दमोह से सांसद रह चुके हैं। ये भी पढ़ें..गुजरात के तीन दिवसीय दौरे पर रहेंगे पीएम मोदी, वाइब्रेंट ग्लोबल समिट का करेंगे उद्घाटन दमोह में बड़ी संख्या में ओबीसी वोटर हैं। जबलपुर से सांसद राकेश सिंह का संसदीय क्षेत्र सामान्य वर्ग बाहुल्य है। रीति पाठक के संसदीय क्षेत्र सीधी में ब्राह्मण वर्ग का दबदबा है। इसी तरह उदय प्रताप सिंह का संसदीय क्षेत्र होशंगाबाद भी सामान्य वर्ग के प्रभाव वाला है। दो सांसदों, सतना से गणेश सिंह और मंडला से केंद्रीय मंत्री भगत सिंह कुलस्ते को हार का सामना करना पड़ा है। सतना की बात करें तो यह ओबीसी वर्ग बाहुल्य संसदीय क्षेत्र है और मंडला आदिवासी वर्ग बाहुल्य है।

पार्टी के अंदर उठ रहा ये सवाल

पार्टी के अंदर यह सवाल उठ रहा है कि क्या विधानसभा हारे इन सांसदों को चुनाव लड़ना चाहिए और अगर मौका दिया गया तो जनता के बीच क्या संदेश जाएगा। ऐसे में पार्टी सतना में ओबीसी वर्ग और मंडला में आदिवासी वर्ग के कार्यकर्ताओं की क्षमता का आकलन कर रही है। पार्टी ने राज्य के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में पराजित उम्मीदवारों और अन्य लोगों की बैठकें भी की हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिन जगहों पर तत्कालीन सांसद चुनाव जीतकर विधायक बने हैं, वहां तो पार्टी को उम्मीदवार तलाशने होंगे, लेकिन जहां पार्टी हार गई है, वहां उसे चेहरा बदलने पर भी ध्यान देना होगा। सतना और मंडला वो संसदीय क्षेत्र हैं जहां पार्टी को प्रभावी रणनीति बनानी होगी। सतना में ओबीसी वर्ग और मंडला में आदिवासी वर्ग से बेहतर उम्मीदवार ढूंढना होगा। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)