Friday, November 22, 2024
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रहस्यमयी बुखार का बढ़ता खौफ

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच उत्तर प्रदेश में विकराल रूप धारण करता रहस्यमयी बुखार नई चुनौती बनकर उभर रहा है। कुछ डॉक्टर इस रहस्यमयी बुखार को ‘इंफ्लुएंजा’ वायरस मान रहे हैं तो कुछ डेंगू और कुछ अन्य डॉक्टर इसे इंफ्लुएंजा वायरस के स्वरूप में बदलाव की आशंका के तौर पर भी देख रहे हैं लेकिन अभी तक किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने में विफल रहे हैं। दरअसल इस रहस्यमयी बुखार में मरीजों में कई बीमारियों के लक्षण एक साथ नजर आ रहे हैं और बुखार के कारण सबसे ज्यादा मौतें बच्चों की हो रही हैं। लगभग सभी मामलों में तेज बुखार के साथ तेजी से प्लेटलेट्स गिरने, नजला-खांसी, जोड़ों में दर्द, डिहाइड्रेशन जैसे लक्षण देखे जा रहे हैं। शुरुआत में इस अनजान बुखार का प्रकोप तीन जिलों में ही देखा गया था लेकिन अब यह फिरोजाबाद, मथुरा, कासगंज, लखनऊ, आगरा, एटा, मैनपुरी, नोएडा, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर इत्यादि प्रदेश के 20 से अधिक जिलों तक फैल चुका है और प्रत्येक जिले में प्रतिदिन औसतन पांच सौ नए मरीज मिल रहे हैं, जिनमें बच्चों की संख्या सर्वाधिक है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी तक विभिन्न जिलों में 150 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें करीब 50 फीसदी बच्चे हैं। सबसे बुरी हालत फिरोजाबाद जिले की है, जहां अब तक 80 से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है। इस जिले में पिछले कुछ ही दिनों में 60 से भी ज्यादा बच्चों की मौत रहस्यमयी बुखार से हुई है। इसके अलावा सीतापुर में 50, मथुरा में 21 तथा मैनपुरी में भी 13 से ज्यादा लोगों की मौत होने की पुष्टि की जा चुकी है। कई अन्य जिलों में भी इस बुखार के कारण मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। फिरोजाबाद और आसपास के इलाकों में तो डेंगू, वायरल बुखार, स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस के मरीज भी मिले हैं। बच्चों की हो रही मौतों से प्रभावित इलाकों में इस कदर खौफ व्याप्त है कि कुछ लोग भय के कारण गांव छोड़कर जा रहे हैं। प्रदेश के कुछ गांवों में रहस्यमयी बुखार का खौफ इतना ज्यादा है कि गांव के अधिकांश परिवार अपने बच्चों को लेकर पलायन कर चुके हैं।

रहस्यमयी बुखार को लेकर स्थिति इतनी खराब है कि अधिकांश जगहों पर अस्पतालों में जांच के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी हैं, लगभग सभी अस्पतालों में बैड फुल हैं और एक-एक बैड पर दो से चार बच्चों का एक साथ इलाज हो रहा है लेकिन डॉक्टरों के प्रयासों के बाद भी ऐसे कई बच्चों को बचाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इस बुखार के आने के बाद पहले मरीज को ठंड लगती है और फिर तेजी से बुखार बढ़ता है। दवा खाने से एकबार बुखार उतर जाता है लेकिन फिर तेजी से बुखार आता है और मरीज की स्थिति बिगड़ जाती है। बच्चों की बात करें तो इस बीमारी में पहले बच्चों के पेट में दर्द होता है, फिर बुखार आता है और प्लेटलेट्स अचानक तेजी से गिरता है। उसके बाद दो से तीन दिनों में ही ऐसे कुछ बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। कई डॉक्टर इस अनजान बुखार से हो रही मौतों का बड़ा कारण इलाज में देरी होना मानते हैं। डेंगू के साथ स्क्रब टायफस होने के कारण कई मरीजों के किडनी, लीवर सहित अन्य अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, इस कारण भी उनकी मौत हुई। अभीतक डेंगू के वायरस के कुल चार वैरिएंट (डेन 1, 2, 3, 4) सामने आए हैं लेकिन पेट में दर्द के साथ बुखार आने के दो-तीन दिनों के भीतर ही बच्चों की मौत होने से स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस बात की चिंता भी सता रही है कि कहीं यह डेंगू का कोई नया वैरिएंट डेन 5 तो नहीं फैल रहा है।

फिरोजाबाद जिले में 50 से ज्यादा बच्चों की मौत होने के बाद मचे हड़कंप के पश्चात् केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्थिति का जायजा लेने के लिए एक टीम वहां भेजी गई थी। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र (एनसीडीसी) और राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीसीडीपी) के 5 विशेषज्ञों के इस दल द्वारा फिरोजाबाद तथा आसपास से करीब 200 सैंपल लिए गए, जिनमें 100 से ज्यादा नमूनों में डेंगू की पुष्टि हुई जबकि कई नमूनों में स्क्रब टाइफस के मामले भी मिले। स्क्रब टाइफस नामक बीमारी बैक्टीरिया से होती है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार प्रायः झाडि़यों में पाए जाने वाले मकड़ी जैसे छोटे जीव माइट अथवा छग्गर के काटने से भी स्क्रब टाइफस होता है। बहरहाल, विशेषज्ञ दल का कहना है कि जब तक एकत्रित किए गए नमूनों की पूरी जांच नहीं हो जाती, तब तक इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक एकत्रित नमूनों की गहन जांच के बाद जो भी नतीजे सामने आएंगे, उसके बाद ही कहा जा सकेगा कि बुखार से बच्चों की इतनी बड़ी संख्या में मौत का वास्तविक कारण क्या है।

रहस्यमयी बुखार के विकराल रूप धारण करने और कई बच्चों सहित अनेक लोगों की मौत हो जाने के मामले में प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। दरअसल जब शुरुआती दौर में यह बीमारी सिर उठाने लगी थी और डेंगू के मामले भी लगातार सामने आने लगे थे, तब भी ऐसे मामलों को दबाकर उन्हें करीब एक पखवाड़े तक महज वायरल बुखार ही बताया जाता रहा। यही नहीं, बीमारी का प्रकोप बढ़ते जाने के बाद भी कीटनाशकों के छिड़काव और साफ-सफाई की ओर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की चरमराई हालत का नजारा साफतौर पर देखा गया था और अब रहस्यमयी बुखार के मामले में भी जिस प्रकार का लापरवाहीपूर्ण रवैया देखा जाता रहा है, वह आम आदमी को झकझोर देने के लिए पर्याप्त है।

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हालांकि अब प्रदेश सरकार द्वारा भी पीड़ित बच्चों के इलाज और बीमारी के कारणों का पता लगाने के लिए 11 विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम बनाई गई है लेकिन इस मौसम में मच्छरों से पनपने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए की जाने वाली फॉगिंग या साफ-सफाई के मामले में संबंधित विभागों द्वारा जिस प्रकार की लापरवाही बरती जा रही है, उन पर सख्ती करने की भी जरूरत है। खासकर मासूम बच्चों पर रहस्यमयी बुखार के जानलेवा प्रहार का खौफ लोगों में जिस कदर बढ़ता जा रहा है, ऐसे में इस समय सबसे ज्यादा जरूरी यही है कि इस बात के पुख्ता प्रबंध किए जाएं कि अस्पतालों में ऐसे लोगों के इलाज में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं बरती जाए।

योगेश कुमार गोयल

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