लखनऊः धान और आलू का संबंध एक-दूसरे से भले ही न हो, लेकिन किसान इन दोनों फसलों को करीब से देखते हैं। खेत से इनका गहरा नाता है। दोनों फसलें ज्यादातर मिट्टी को लेकर संजीदा होती हैं। धान की कटाई के साथ ही किसान आलू की बुवाई शुरू कर देते हैं। इसके लिए यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि किस खेत की मिट्टी कैसी है, कहां आलू व किस खेत में धान की रोपाई की जाए। इन दिनों किसान इसकी तैयारी कर रहे हैं। आधुनिक फसलों को लेकर सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है कि वह ज्यादा फसलें लें। इसके लिए गुणवत्ता के साथ ही जानकारियां जरूरी हैं।
किसान अपने खेत में बीज बोता है और खाद व पानी डालता है। इसके एवज में उसे फसल मिलती है। साल भर का खर्च उसके खेत से ही मिलता है। इस बीच अगर किसी प्रकार की खामी हो जाए तो किसान का करा-धरा सब व्यर्थ हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि वह पहले मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करवा ले। इसके साथ ही विशेषज्ञ से इस बात की तस्दीक करवाएं कि उक्त मिट्टी में धान होगा या गेहूं ? उसके बाद गुणवत्ता के बीज जुटाएं। खेती की मिट्टी बलुई-दोमट होनी चाहिए और पीएच की जांच आसानी से हो जाती है। खेत में ऑर्गेनिक कॉर्बन यानी की जीवांश की मात्रा कितनी है। खेत की मिट्टी में जैविक खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद या मुर्गी की खाद डालेंगे तो आपके खेत का आलू हरा नहीं होगा।
रोग मुक्त बीजों का चयन करें
आलू के खेत में बीजों का चयन सबसे जरूरी होता है। खेत की तैयारी के बाद सबसे जरूरी काम होता है, अच्छी गुणवत्ता के रोगमुक्त बीज का चयन करना। जिस खेत में आलू की बुवाई करनी हो, उस खेत में उड़द जैसी दलहनी फसलें एक बार जरूर लगानी चाहिए, ताकि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बरकरार रहे और सनई, ढैंचा जैसी हरी खाद का भी प्रयोग जरूर करना चाहिए। गर्मी में एक बार खेत की गहरी जुताई कर लें, जिससे खेत में कीट-पतंगे मर जाएं। कोशिश करें कि बीज काटकर न बोना पड़े, लेकिन अगर बीज 45 से 50 तक होता है तो बीज काटना ही पड़ता है। खेत एकदम साफ-सुथरा होना चाहिए और मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए। अगर हम मशीन से बोते हैं तो 10-12 कुंतल प्रति एकड़ बीज लगता है।
यह भी पढ़ेंः-अडानी के हाथ आई मुंबई एयरपोर्ट की कमान, किए ये बडे़ वादे