खरमास के बाद देश में रामकाज का आगाज हो गया है। वैसे भी अपने प्रिय भारतवर्ष में शुभ कार्य करने की परंपरा रही है। रामकाज से बड़ा शुभ काज दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता। अपने लिए तो सभी काम करते हैं लेकिन जो राम के लिए काम करता है, जीवन उसी का सार्थक है। किसी भी कार्य के लिए धन जरूरी है। धन से धर्म होता है। नीति भी कहती है कि धनात धर्म ततः सुखं। यह बात हर भारतवासी को पता है। कदाचित इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 42 संगठन राममंदिर निर्माण के लिए धन संग्रह करने मैदान में उतर चुके हैं। 43 दिनों तक वे देश के 5 लाख परिवारों तक जाएंगे। 19 करोड़ लोगों से संपर्क करेंगे। उनसे रामलला के भव्य मंदिर के निर्माण के लिए सहयोग प्राप्त करेंगे। इसके पीछे संघ परिवार की कोशिश है कि जब राममंदिर बने तो हर हिंदू को इस बात की प्रतीति हो कि इस मंदिर के निर्माण में उनका सहयोग भी शामिल है।
यह अति उत्तम विचार है और इस विचार का स्वागत किया जाना चाहिए। इसका दूसरा पक्ष यह भी है जिसपर अभी किसी ने रोशनी नहीं डाली है। वह यह कि जब भी कोई किसी से सहयोग मांगने जाता है तो दाता और ग्रहीता के बीच संवाद का माहौल बनता है। दोनों एक-दूसरे से जुड़ते हैं। राममंदिर देश को एक-दूसरे से जोड़ने का बड़ा माध्यम है। इस लिहाज से संघ परिवार की देश पर पकड़ भी मजबूत होगी और जब संघ मजबूत होगा तो भाजपा भी मजबूत होगी। इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बनाने के लिए निधि समर्पण अभियान देशभर में आरंभ हो गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 5.01 लाख की समर्पण निधि देकर इस कार्यक्रम की शुरुआत की है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो-दो लाख तो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एक लाख की समर्पण राशि दी है। कल्याण सिंह ने तो यहां तक कह है कि उनके जीवन का सबसे बड़ा सपना है कि प्रभु राम का भव्य मंदिर बने। रायबरेली के पूर्व विधायक ने 1.11 करोड़ की राशि देकर राममंदिर के प्रति अपनी निष्ठा का इजहार किया है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य डॉ. अनिल मिश्र ने अयोध्या में 51 हजार रुपए का चेक देकर इस कार्यक्रम का श्रीगणेश किया। इसके अतिरिक्त अयोध्या में 14 अन्य जगहों पर निधि समर्पण अभियान का शुभारंभ हुआ है। इस अभियान की सफलता के लिए संतों का भी आशीर्वाद मिला।
दो चरणों में चलने वाले 43 दिवसीय इस अभियान के प्रथम चरण में 31 जनवरी तक केवल उन लोगों से संपर्क किया जाना है जिन्होंने 2 हजार या इससे ज्यादा की धनराशि देने का संकल्प व्यक्त किया है। धन संग्रह टोलियां देशभर में निकल पड़ी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकांश आनुषंगिक संगठनों को इस कार्य में लगाया गया है। यह और बात है कि धन संग्रह प्रभारी संघ से जुड़े लोग ही बनाए गए हैं। धन संग्रह समितियों को रसीदों व कूपनों का वितरण भी शुरू हो गया है ताकि वे पूरी प्रामाणिकता के साथ धन संग्रह कर सकें। अभियान का दूसरा चरण 1 फरवरी से शुरू होना है । इसमें जिला, तहसील, ब्लॉक, गांव के हर घर को मथने का प्रयास होगा। राममंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरि की मानें तो इस क्रम में 11 करोड़ परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य है। करीब 30 करोड़ की समर्पण राशि के आफर उन्हें मिल चुके हैं। निधि संकल्प संपर्क अभियान में उनका अनुमान है कि करीब 1 हजार करोड़ की धनराशि दान में जमा हो जाएगी। धन संग्रह में कोई गड़बड़ी न हो, इसे लेकर ट्रस्ट पूरी सर्तकता बरत रहा है। इस अभियान को समाज के सभी वर्ग से जोड़ने की कोशिश की जा रही है।
जिस तरह भगवान राम ने सभी का सहयोग लिया था, उसी तरह राम मंदिर निर्माण से सर्व समाज को जोड़ने की यह पहल अनुकरणीय भी है और सराहनीय भी। ट्रस्ट के लोगों ने बाल्मीकि समाज के लोगों से भी समर्पण राशि प्राप्त की है। छोटे-छोटे बच्चों ने भी अपने गुल्लक तोड़कर राममंदिर निर्माण के लिए सहयोग किया है। हिंदुओं की तरह ही मुस्लिमों ने भी जिस तरह मंदिर निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, उससे सर्वधर्मसमभाव का बोध होता है और इससे देश की की गंगा-जमुनी संस्कृति का पता चलता है। उन लोगों को भी झटका लगता है जो सबका साथ-सबका विकास की अवधारणा के विपरीत उन्हें लड़ाने-भड़काने में ही अपनी असीमित ऊर्जा खर्च कर डालते हैं।
वैसे भी दानवीरता के मामले में इस देश का अपना शानदार इतिहास रहा है। सहयोग समर्पण राशि देने के मामले में यह देश कभी अनुदार नहीं रहा है। अच्छे कामों के लिए कभी धन की कमी यह देश होने नहीं देता। बस आगे चलने की बात होती है। कारवां अपने आप बन जाता है। जिस समय राम मंदिर आंदोलन चल रहा था तब भी इस देश की महिलाओं ने शिला पूजन के रूप में गहनों और अपनी संचित राशि का दान किया था। इस बात का विचार किया जाना चाहिए कि जनता से मिली राशि का पाई-पाई सदुपयोग हो। यह राम का धन है जिसका राम के काम में ही सदुपयोग किया जाए। इस देश की जनता मंदिर का निर्माण चाहती है। वह कितना भव्य होगा, यह उसकी परिकल्पना हो सकती है लेकिन जन-धन की बर्बादी किसी भी रूप में ठीक नहीं है।
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मंदिर 39 माह में ही बने लेकिन भव्य बनना चाहिए। बहुत अरसे बाद मंदिर को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया। कोई नया व्यवधान हो, इससे पहले मंदिर बन जाना चाहिए। रामकाज में अगर किसी को राजनीतिक लाभ भी हो जाए तो यह हरिकृपा लेकिन एकबार फिर एक सलाह कि समर्पण निधि से किसी भी तरह का खिलवाड़ न हो, यह सुनिश्चित होना चाहिए। विश्वास ही जनसेवी का सबसे बड़ा धन होता है। राम आदर्शों के समुच्चय हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। ऐसे में उनके भक्तों पर भी उसका असर तो होना ही चाहिए।
सियाराम पांडेय