संपादकीय

एनडीए का लक्ष्य मिशन ‘400’ पार, आपस में उलझा ‘इंडिया’

NDA target mission 400 crossed

चुनाव लोकतंत्र का महापर्व है। लोगों को बेसब्री से इसका इंतजार रहता है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा करके इसका आगाज कर दिया है। इस समय पूरा देश चुनावमय हो चुका है। 2019 की तरह इस बार भी यह सात चरणों में होगा। 2014 में यह नौ चरणों में हुआ था। पहले चरण की शुरुआत 19 अप्रैल को होगी, तो वहीं अंतिम चरण का मतदान 01 जून को होगा। नतीजे 04 जून को आएंगे। देश की राजधानी में 25 मई को मतदान होगा। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लोग 20 मई को मतदान करेंगे। चुनाव परिणाम के साथ नई सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू होगी। यह 18वीं लोकसभा होगी। देश को नई सरकार मिलेगी। प्रश्न है कि क्या मोदी सरकार तीसरी बार सत्तारूढ़ होगी ? उसने इस बार 400 के पार का नारा दिया है। उसने अपनी सारी ताकत झोंक दी है। क्या यह यथार्थ है या मात्र दिवास्वप्न ? केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार 2014 में पहली बार सत्तासीन हुई थी। 1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला।

1989 और उसके बाद जो भी सरकार सत्तारूढ़ हुई, वह गठबंधन की सरकार थी। राष्ट्रीय स्तर पर दो गठबंधन अस्तित्व में आए। भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) तथा कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए)। नरेन्द्र मोदी की सरकार के आने के पहले यूपीए गठबंधन की सरकार थी। मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। उनका दो कार्यकाल रहा। उस वक्त महंगाई, रोजगार, औरतों पर बढ़ता अत्याचार, भ्रष्टाचार, काला धन, आतंकवाद, कानून-व्यवस्था आदि मुद्दे थे। इसी को केंद्र में रखकर एनडीए ने नारा दिया था ‘अबकी बार मोदी सरकार’। इसकी खूब गूंज रही। मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के दौर से लोग निकलना चाहते थे। भाजपा ने ‘अच्छे दिनों’ और ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा दिया था। परिणाम भाजपा के पक्ष में आया। भाजपा को 282 सीटें मिलीं। उसके गठबंधन एनडीए को 303 सीटें मिलीं। गौरतलब है कि 1984 में भाजपा को लोकसभा में मात्र दो सीटें मिली थीं। तीस साल की इस यात्रा में वह लगातार आगे बढ़ती रही है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकारें बीच के पड़ाव हैं।

सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा

2014 के चुनाव में मतदान का प्रतिशत करीब 66.38 था, जो भारतीय आम चुनाव के इतिहास में सबसे उच्चतम है। यह इसका भी उदाहरण है कि जनता बदलाव चाहती है। चुनाव का परिणाम 16 मई को घोषित किया गया। 336 सीटों के साथ एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन और 282 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को 59 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत हासिल की थी। यह कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। भारत में आधिकारिक विपक्षी दल बनने के लिए, एक पार्टी को लोकसभा में 10 प्रतिशत सीटें यानी 54 सीटें चाहिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को इतनी सीटें भी नहीं मिलीं। वह आधिकारिक विपक्षी दल की भूमिका में भी नहीं रही। दस साल उसके गठबंधन के सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस का ऐसा दयनीय प्रदर्शन हुआ। भाजपा को 31 प्रतिशत वोट मिला। मतों के बंटवारे के कारण उसे पूर्ण बहुमत हासिल हुआ। आजादी के बाद से भारत में बहुमत वाली सरकार बनाने के लिए यह सबसे कम मत प्रतिशत था। एनडीए का वोट प्रतिशत जरूर 38.5 था। 2014 में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उसने हिन्दी प्रदेशों में अपने आधार को सुदृढ़ किया और बंगाल, असम, पूर्वोत्तर भारत में अपना विस्तार किया। देश के अनेक राज्यों में भाजपा और उसके गठबंधन की सरकार बनी। 2019 के चुनाव के पहले पुलवामा की दर्दनाक आतंकवादी घटना हुई। पूरा देश इससे आहत था।

सरकार की ओर से बालाकोट में हवाई हमले के द्वारा जवाबी कार्रवाई हुई। देश को राहत मिली। इसके बाद आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न सबसे ऊपर पहुंच गया। वे समस्याएं जिन्हें लेकर मोदी विरोध की हवा विपक्ष बना रहा था, उसकी तो हवा ही निकल गई। राष्ट्रवाद की लहर पर 2019 का चुनाव हुआ। नारा था ‘अबकी बार फिर मोदी सरकार’। सत्रहवीं लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई 2019 के बीच सात चरणों में हुआ। इस चुनाव के परिणाम 23 मई को आए। नतीजा मोदी सरकार के पक्ष में आया। भाजपा ने 303 सीटों पर जीत हासिल की और अपना पूर्ण बहुमत बनाए रखा। 2014 की तुलना में उसके सीटों की संख्या में 21 की वृद्धि हुई। उसके नेतृत्व वाले गठबंधन ने 353 सीटें जीतीं। इस तरह 17 सीटों की बढ़ोत्तरी हुई। भाजपा ने 37.36 प्रतिशत वोट हासिल किया, जबकि एनडीए का संयुक्त वोट शेयर 45 प्रतिशत था। इस तरह भाजपा और एनडीए के मतों में 2014 से करीब 06 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कांग्रेस की स्थिति कमोवेश 2014 जैसी ही रही यानी उसमें उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी नहीं हुई। पार्टी ने 52 सीटें जीतीं और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को 92 सीटें मिलीं। अन्य दलों ने भारतीय संसद में 97 सीटें जीतीं।

दूसरे कार्यकाल में बनाई कई ऐतिहासिक उपलब्धि

नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल साहसिक निर्णय और चुनौतियों के सामने डट जाने का रहा है। इसी कार्यकाल में कोरोना जैसी महामारी से दुनिया को और भारत को जूझना पड़ा। कोरोनाकाल में लाखों जानें गईं। स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल भी खुली लेकिन वैक्सीन निर्माण से लेकर इस आपदा से निपटने में सरकार अंततः कामयाब हुई। इस संदर्भ में भारत ने अन्य देशों की मदद भी की। इससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ी। मोदी सरकार ने अपने इस कार्यकाल में ढांचागत सुधार के कई फैसले लिए, जिसमें श्रम कानूनों में बदलाव से लेकर तीन कृषि कानूनों का बनाया जाना भी शामिल है। इसे लेकर मोदी सरकार की आलोचना भी हुई। उसका यह कदम ‘आपदा में अवसर’ के रूप में देखा गया। तीन कृषि कानूनों को लेकर बड़ा विरोध हुआ। करीब एक साल तक किसान राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर जमे रहे। आखिरकार मोदी सरकार को पीछे हटना पड़ा। उसे कानून को वापस लेना पड़ा और प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि यह कानून कृषि क्षेत्र में सुधार तथा किसान हितों को ध्यान में रखकर सरकार ले आई थी, पर कहीं ना कहीं उनकी तपस्या में कमी रह गई। इस कार्यकाल में नागरिकता संशोधन का कानून सीएए भी आया। इस तरह मोदी सरकार ने अनेक नीतिगत फैसले लिए। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जाए तो पहला 370 धारा को खत्म करना और दूसरा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण व भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा है। यह भाजपा का बड़ा एजेंडा रहा है और यह उसके राजनीतिक अभियान का हिस्सा भी रहा है। इसका उसे राजनीतिक लाभ भी मिला। अब जब यह दोनों मुद्दे अपनी परिणति पर पहुंच गए हैं, तब वह इस बार उसका पूरा लाभ भी लेना चाहती है। यह सब नरेन्द्र मोदी के कारण संभव हुआ है। मीडिया ने मोदी की छवि को महामानव या अवतारी पुरुष के रूप में पेश किया है। सरकार ने इस दौरान तेजस और वंदे भारत गाड़ियों की तरह योजनाओं को विकास की पटरी पर रफ्तार भी दी है। अपनी उपलब्धियों से मोदी सरकार और भाजपा इस कदर उत्साहित है कि उसने इस चुनाव में ‘अबकी बार 400 के पार’ का नारा पेश किया है।

भाजपा की 2024 की तैयारी


उत्तर प्रदेश ऐसा प्रदेश है, जो 80 सांसदों को लोकसभा भेजता है। भाजपा ने यहां पूरा जोर लगा दिया है। इसमें प्रदेश में सारे समीकरण बैठा लिए हैं। टारगेट है कि इस बार 80 में से 75 से अधिक सीटें जीती जाएं। 2014 में एनडीए को यहां 73 सीटें मिली थीं, जबकि 2019 में 64 से संतोष करना पड़ा था। सहयोगी अपना दल (एस) के साथ ही राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चैधरी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के साथ आने से पश्चिमी व पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई सीटों के समीकरण भाजपा अपने पक्ष में मजबूत होते देख रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने सभी 42 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। मतलब मुख्य मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच होगा, जबकि कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़ेंगे। इनकी भूमिका वोट कटवा की होगी। कांग्रेस व वामदलों को जो भी वोट मिलेगा, उससे टीएमसी को ही नुकसान होगा लेकिन इसका फायदा भाजपा को होने की उम्मीद है। संदेशखाली का मुद्दा देशभर में गर्मा गया है। इसके बाद कहा जा रहा है कि भाजपा यदि 32-33 सीटें भी जीत ले, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसके अलावा ओडिशा में भाजपा बीजद के साथ मिलकर क्लीन स्वीप करने के सपने देख रही थी लेकिन लंबी बातचीत के बाद आखिरकार दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया है। तेलंगाना में बीआरएस के कमजोर होने के बाद सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होगा। ऐसी स्थिति में हर बार भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। भाजपा अपने दम पर तेलंगाना में 8-10 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। आंध्रप्रदेश में तेदेपा का साथ मिलने से भाजपा मजबूत हुई है। यहां गठबंधन के सहयोगियों के साथ 15 से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है।

कई राज्यों में ज्यादा काम करने की जरूरत

बिहार और महाराष्ट्र में एनडीए मजबूत हुआ है। नीतीश कुमार वापस लौट आए हैं। उन्होंने फिर से भाजपा का दामन थाम लिया है। एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का अजीत पवार गुट अब साथ है। यह वास्तव में एनडीए के लिए फायदेमंद है। महाराष्ट्र भाजपा के लिए महत्वपूर्ण राज्यों में से एक बना हुआ है। उसने 2019 के चुनावों में 23 सीटें जीतीं, जबकि उसकी प्रमुख सहयोगी शिवसेना को 18 सीटें मिलीं। दोनों ने 48 में से 41 सीटों पर कब्जा किया, जिसके परिणामस्वरूप स्ट्राइक रेट 85 प्रतिशत रहा। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद भाजपा को न केवल अपनी 23 सीटें बरकरार रखने की उम्मीद होगी, बल्कि 18 सीटों पर जीत की भी उम्मीद होगी। 2019 के चुनाव में बिहार में एनडीए ने 40 में 39 सीटें जीती थीं। भाजपा को इस बार 2019 से बड़ी जीत दर्ज करनी है तो उसे तीन महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम करना होगा। पहला, हिन्दी बेल्ट को बचाए रखना। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का हिन्दी भाषी प्रदेशों में स्ट्राइक रेट 2019 के लोकसभा चुनाव में 94 प्रतिशत था। यहां उसने क्लीन स्वीप किया। बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान और झारखण्ड जैसे कई राज्यों में उसने कुल लोकसभा सीटों में से 94 प्रतिशत से अधिक सीटें जीतीं। इस तरह कुल 210 सीटों में से 198 सीटें उसकी झोली में आईं। इस बार भी पार्टी को वही 94 फीसदी स्ट्राइक रेट बरकरार रखना होगा, बल्कि इसे और बढ़ाना होगा। दूसरा, बंगाल, ओडिशा, असम व पूर्वोत्तर भारत में भी अपने स्ट्राइक रेट को बढ़ाना होगा। तीसरा, दक्षिण के राज्यों में अपने प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार करना है। भाजपा ने उत्तरी क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंदियों को ध्वस्त कर दिया लेकिन दक्षिणी राज्यों में उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है। कर्नाटक में भाजपा का आधार अच्छा है। उसे तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र, केरल आदि में पचास फीसदी से अधिक सीटें हासिल करनी होगी। नरेन्द्र मोदी ने अपने को वहां केन्द्रित भी कर रखा है इसलिए बेहतर की उम्मीद है। पिछली बार उत्तर प्रदेश में पार्टी 80 में से 16 सीटें हार गई। इस बार उसे इस गैप को भरना होगा और देश के सबसे बड़े राज्य से और भी अधिक हिस्सेदारी हासिल करने का लक्ष्य रखना होगा। विपक्ष में 2019 की तुलना में बेहतर तालमेल है, फिर भी उनके बीच टकराहट है। इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। कुल मिलाकर भाजपा के पक्ष में एक बड़ा फैक्टर नरेन्द्र मोदी का होना है।

‘जो कहा-वो किया’ नारा बना पीएम मोदी की सबसे बड़ी ताकत

दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता, ईमानदारी व अपने फैसलों पर अडिग रहने वाली छवि उन्हें अन्य राजनेताओं से अलहदा बनाती है। ‘जो कहा-सो किया’ का नारा उनके 10 सालों के कार्यकाल में उनकी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है, जिससे आमजन में उनकी छवि और अधिक मजबूत हुई है। दशकों से निष्प्रयोज्य हो चुके कानूनों को खत्म करने से लेकर डिजटलीकरण के जरिए भ्रष्टाचार पर अंकुश, मंत्रियों व अफसरों की कार्यशैली में बदलाव, विकास में बाधक बन रहे अवरोधों को खत्म करना, आम आदमी तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाना, देश की सीमाओं को सुरक्षित करने के साथ दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब, सेनाओं का सशक्तिकरण, कोरोना के आपदाकाल में देश को सुरक्षित रखना, अर्थव्यवस्था को नई ऊचाईयों पर पहुंचाना, विदेशों में बदली भारत की छवि, सनातन के गौरव की पुनस्र्थापना सहित तमाम ऐसे ऐतिहासिक कार्य हुए, जिसकी बदौलत आम जनता के बीच भाजपा की स्वीकार्यकता काफी बढ़ गई है। पिछले दस वर्षों में मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए ऐतिहासिक फैसलों पर नजर डालें तो जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना सबसे साहसिक फैसला था।


आजादी के बाद से ही देश के लिए नासूर बन चुके इस अनुच्छेद को हटाने का संकल्प भाजपा ने अपने उदय के समय ही ले लिया था, जिस पर आखिरकार 05 अगस्त 2019 को मुहर लगा दी गई। इसके अलावा करोड़ों सनातनधर्मियों के आस्था के केंद्रबिंदु प्रभु श्रीराम के दिव्य व भव्य मंदिर को उनकी जन्मभूमि पर निर्मित करने के लिए दशकों से चल रहे संघर्ष का भी 09 नवंबर 2019 को पटाक्षेप हो गया। 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलला के मंदिर को उद्घाटित कर लोगों की आस्था को सच्चा सम्मान दिया। तुष्टीकरण की राजनीति व मुस्लिम धर्म के दकियानूसी विचारों में उलझ कर सालों से प्रताड़ित हो रही मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक का कानून लाकर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की। सत्ता में आने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार पर जीरो टाॅलरेंस की नीति अपनाते हुए डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया और अब उसका परिणाम यह है कि सरकार द्वारा भेजा जाने वाला पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंच रहा है। आज पूरी दुनिया यूपीआई पेमेंट के रूप में भारत की डिजिटल तरक्की की मुरीद हो चुकी है। इन सुधारों का ही परिणाम है कि मंदी से जूझ रही दुनिया की सभी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत की जीडीपी विकास दर सात प्रतिशत से भी अधिक की दर से बढ़ रही है।

काले धन पर करारा प्रहार करने, जाली नोटों की समस्या दूर करने व आतंकवादियों के आर्थिक स्रोतों को बंद करने के उद्देश्य से 08 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ने सभी को चैंकाते हुए नोटबंदी कर दी थी। जिसका परिणाम हुआ कि अर्थव्यवस्था में डिजिटल लेन-देन में बेतहाशा वृद्धि हुई। पूरे देश में एक टैक्स सिस्टम को लागू करने के लिए बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने 01 जुलाई 2017 को गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी को लागू किया था। इस कदम से देश के व्यापारी वर्ग को काफी राहत मिली। रेल बजट का आम बजट में विलय करना भी मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। 01 फरवरी 2017 को पहला संयुक्त बजट पेश किया गया था, जिससे सरकार को करोड़ों रूपए की बचत हुई। सेना के सशक्तिकरण व दुश्मनों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की खुली छूट देना सबसे बड़े कदमों में से एक रहा। सर्जिकल स्ट्राइक व एयर स्ट्राइक के जरिए मोदी सरकार ने आतंकवाद परस्त पाकिस्तान को यह साफ-साफ संदेश दे दिया कि अब पहले की तरह आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ कतई नहीं चल सकते। इसी तरह पाकिस्तान व चीन के सीमावर्ती गांवों के लिए अलग से विकास योजनाओं की शुरूआत तथा सुरंगों व सड़कों के जाल ने देश की सीमाओं को पहले से अधिक सुरक्षित बनाया है। पहले उपेक्षा का शिकार रहने वाले नार्थ ईस्ट राज्यों पर मोदी सरकार ने सबसे अधिक ध्यान केंद्रित किया और लगातार यहां पर विकास योजनाओं को धरातल पर उतार कर इसे देश के सभी हिस्सों से जोड़ा जा रहा है। दशकों से उपेक्षा का दंश झेल रहे पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के लिए लाया गया नागरिकता संशोधन कानून ऐतिहासिक रहा।

मोदी सरकार द्वारा गरीब कल्याण के लिए शुरू की गई योजनाओं पर चर्चा करें तो 10 लाख से अधिक गरीब परिवारों को आयुष्मान योजना के तहत 05 लाख रूपए का मुफ्त इलाज मिल रहा है। 2018 में लागू हुई इस योजना को पीएम जन आरोग्य योजना के नाम से भी जाना जाता है। मोदी की सबसे बड़ी योजनाओं में उज्जवला योजना का नाम सबसे पहले गिना जाता है। देश की करोड़ों महिलाओं को लकड़ी के धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए 2016 में उज्जवला योजना शुरू की गई थी, जो गरीब महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। 01 दिसंबर 2018 को देश के अन्नदाताओं के लिए किसान सम्मान निधि की शुरूआत की गई, जिसके जरिए 08 करोड़ से अधिक किसानों को हर साल 6,000 रूपए दिए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत देश में 51 करोड़ बैंक खाते खोले गए थे, जिनके जरिए अधिकतर लाभार्थियों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है।

प्रधानमंत्री आवास योजना देश के गरीब तबके के लोगों के लिए वरदान साबित हुई है। पिछले 10 सालों में चार करोड़ से अधिक गरीबों को पक्की छत मिली है। कोरोनाकाल में गरीबों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत अब भी देश के 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज मिल रहा है। 15 अगस्त 2019 को देश के हर घर में स्वच्छ जल पहुंचाने के लिए शुरू की गई हर घर जल योजना ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए वरदान बन गई है। अब तक इस योजना के तहत करोड़ों परिवारों को नल कनेक्शन के जरिए शुद्ध जल मुहैया कराया जा रहा है। 2015 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी योजना के तहत विकसित करने का निर्णय लिया गया था, जिसके तहत चयनित शहरों में तेजी से बुनियादी ढांचों को विकसित करने से लेकर तमाम विकास कार्य युद्ध स्तर पर चल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरूआत की थी। इसके जरिए पूरे जीवनकाल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने और महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जा रहा है। सरकार ने उद्यमशीलता को बढ़ावा देने पर फोकस करते हुए ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरूआत की थी। इसके जरिए न सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

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इस पहल का असर यह हुआ है कि अब भारत धीरे-धीरे पूरी दुनिया में मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरने लगा है और हमारा देश आत्मनिर्भर बनने की राह पर है। आजादी के दशकों बाद भी अंधेरे में डूबे देश के करीब 18,000 गांवों में बिजली पहुंचाने का काम भी मोदी सरकार के सबसे बड़े कामों में गिना जाता है। मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद प्रवासी भारतीयों को भी भारत भूमि से जोड़ने के लिए अभियान चलाया और वह काफी हद तक इसमें सफल रही। प्रधानमंत्री मोदी खुद अपने विदेश दौरों पर न सिर्फ प्रवासी भारतीयों से मिलते रहे, बल्कि तमाम बड़ी सभाओं के जरिए उभरते हुए भारत में योगदान देने के लिए उन्हें प्रेरित भी किया। इसके अलावा कोरोनाकाल के दौरान विभिन्न देशों में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारतीय छात्रों सहित तमाम नागरिकों की सकुशल वापसी, इजरायल-हमास युद्ध के बीच हजारों भारतीयों को सुरक्षित लाना, कतर से पूर्व नौसैनिकों की रिहाई, संकटग्रस्त सूडान से ऑपरेशन कॉवेरी के जरिए भारतीयों को वापस लाना, ऑपरेशन देवी शक्ति के जरिए अफगानिस्तान संकट से भारतीयों की स्वदेश वापसी तथा गृहयुद्ध से जूझ रहे यमन से भारतीयों को सुरक्षित लाना सहित तमाम ऐसे अवसर रहे, जब मोदी सरकार न सिर्फ देशवासियों के लिए बल्कि विदेश में रह रहे भारतीयों के लिए भी देवदूत साबित हुई।

कौशल किशोर

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