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बंगाल हिंसा पर ममता सरकार ने हाई कोर्ट में दिया हलफनामा, रिपोर्ट को बताया पक्षपातपूर्ण

Bengaluru: Vehicles burnt by an irate mob during violence that erupted late on Tuesday night that resulted after an inflammatory social media post by Congress legislator Akanda Srinivas Murthy's relative, in parts of East Bengaluru, on Aug 12, 2020. Three people have reportedly died and several others injured in the arson. Over 100 rioters have been arrested. A "thorough" magisterial investigation has been ordered into the riots which broke out in east Bengaluru on Tuesday night, Karnataka Chief Minister B.S. Yediyurappa said on Wednesday. (Photo: IANS)

कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार ने विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में हुई हिंसा से जुड़े मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष 95 पृष्ठ का हलफनामा प्रस्तुत किया है। मंगलवार को दाखिल हलफनामे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट के निष्कर्षों का बिंदु-दर-बिंदु खंडन करते हुए रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण करार दिया गया है। राज्य सरकार की तरफ से दावा किया गया है कि विधानसभा चुनाव के बाद बंगाल में राजनीतिक हिंसा की घटना नहीं हुई है। मामले की सुनवाई बुधवार कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल सहित पांच जजों की बेंच के सामने होगी।

उल्लेखनीय है कि राजनीतिक हिंसा से जुड़ी विभिन्न याचिकाओं पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने बंगाल सरकार सहित सभी पक्षों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर 26 जुलाई तक हलफनामा जमा देने का निर्देश दिया था। इससे पहले पांच जजों की वृहत्तर पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि चुनाव के बाद हिंसा पर हाई कोर्ट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में अनेक विसंगतियां हैं। रिपोर्ट में चुनाव के पहले हिंसा की घटनाओं का जिक्र किया गया है। अदालत में सुनवाई के दौरान बंगाल सरकार के वकील सिंघवी ने कहा कि एनएचआरसी जैसे संस्थान से ऐसी उम्मीद नहीं थी।

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गौरतलब है कि 13 जुलाई को एनएचआरसी ने 2021 के विधानसभा चुनावों के परिणामस्वरूप राज्य में चुनाव के बाद हिंसा के आरोपों की जांच करते हुए हाईकोर्ट को 50 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी। अंतिम जांच रिपोर्ट में राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य प्रशासन ने जनता में अपना विश्वास खो दिया है। बंगाल में ‘कानून का राज’ नहीं है बल्कि यहां ‘शासक का कानून’ चल रहा है। इसके परिप्रेक्ष्य में बंगाल में हिंसा की कई दिल दहलाने वाली घटनाओं का जिक्र किया गया है।