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यूपी और गुजरात में 'लव जिहाद' कानून समान, लेकिन इस राज्य में मिलती है ज्यादा कठोर सजा

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अहमदाबादः गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट, 2003 'लव जिहाद' या अंतरधार्मिक विवाह और जबरन विवाह की तुलना में धर्मांतरण को रोकने के बारे में अधिक था। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2021 में बनाए गए धर्मांतरण विरोधी विधेयक में शामिल दंडात्मक प्रावधानों का अनुशरण गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) 2021 में किया गया। गुजरात उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाली वकील ईशा हकीम ने कहा, दोनों राज्यों के कानून लगभग समान हैं, लेकिन गुजरात के कानूनों में अधिक कठोर सजा है।

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दोनों अधिनियमों में, जो कोई भी अन्य धर्म को अपनाना चाहता है, उसे जिला मजिस्ट्रेट या जिला कलेक्टर से पूर्व अनुमति लेनी होगी। दोनों अधिनियमों में सजा सजा के प्रावधान में कुछ हल्का अंतर है। उत्तर प्रदेश के कानून के अनुसार न्यूनतम सजा एक वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष है, जबकि गुजरात में यह तीन वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से नाबालिग या महिला का धर्मांतरण होने पर उत्तर प्रदेश के कानून के अनुसार न्यूनतम सजा दो साल और अधिकतम 10 साल है, जबकि गुजरात में न्यूनतम सजा चार साल और अधिकतम 7 साल है, जिसमें जुर्माना 3 लाख रुपये से कम नहीं है।

गुजरात अधिनियम को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने चुनौती दी थी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पहली पीठ ने अधिनियम की धारा 3, 4, 4ए से 4सी, 5, 6 और 6ए पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने धारा 5 पर भी रोक हटाने की राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी थी।

अदालत ने कुछ धाराओं पर रोक लगाने के कारण पर टिप्पणी करते हुए कहा, ये धाराएं केवल इसलिए संचालित नहीं होंगी क्योंकि एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म के शख्स के साथ बिना किसी बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी के विवाह किया जाता है। इस तरह के विवाह को विवाह नहीं कहा जा सकता है। अवैध धर्मांतरण के उद्देश्य से विवाह, अंतरिम आदेश उन पक्षों की रक्षा करने के लिए है, जिन्होंने अंतर्धार्मिक विवाह को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाया है।

अधिनियम की धारा 3 विवाह के माध्यम से या विवाह करने के लिए व्यक्ति की सहायता करके, कपटपूर्ण तरीके से धर्मांतरण से संबंधित है। धारा 4 पीड़ित व्यक्तियों, रिश्तेदारों, माता-पिता, खून से संबंधित अन्य व्यक्ति को शिकायत दर्ज करने की अनुमति देती है, जबकि धारा 5 के तहत अपराध में शामिल माने जाने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है। जब अदालत ने धारा 5 पर रोक लगाई, तो महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने तर्क दिया था कि इस धारा का प्रावधान 2003 में कानून लागू होने के बाद से अस्तित्व में है, और अगर उस पर रोक लगा दिया जाता है तो पूरे धर्मांतरण विरोधी कानून पर व्यावहारिक रूप से रोक लगा जाएगी। यहां तक कि उन्होंने यह कहते हुए अदालत को प्रभावित करने की कोशिश की कि राज्य कभी भी अंतर-धार्मिक विवाह के खिलाफ नहीं है।

हकीम ने बताया कि चूंकि गुजरात उच्च न्यायालय ने अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं पर रोक लगा दी है, कम से कम उन्होंने कानून के तहत दर्ज किसी प्राथमिकी के बारे में नहीं सुना है। यहां तक कि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी इसी तरह के कानून हैं, लेकिन किसी भी अदालत ने इन पर रोक नहीं लगाई है।

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