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Lok sabha election 2024: किसी भी पार्टी का गढ़ नहीं रहा अमरोहा

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लखनऊ: रसीले आमों और ढोलक के लिए मशहूर अमरोहा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यह जगह कभी किसी पार्टी का गढ़ नहीं रही। पिछले 4 चुनावों में हर बार जीत किसी और पार्टी के खाते में गई। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब यह सीट वाम दलों का मजबूत किला मानी जाती थी। अमरोहा सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एकमात्र सीट है जहां वामपंथी दलों ने लगातार दो बार जीत हासिल की है।

गौरतलब है कि एक समय में वाम दलों का प्रभाव पूर्वाचल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और तराई क्षेत्र की करीब एक दर्जन संसदीय सीटों पर था। मुस्लिम बहुल अमरोहा सीट कभी किसी पार्टी का गढ़ नहीं रही।

1967 में पहली बार फहराया गया लाल झंडा

अमरोहा संसदीय सीट 1957 में अस्तित्व में आई। पहले चुनाव में कांग्रेस के के हिफ़्ज़ुर रहमान ने जीत हासिल की। 1962 के दूसरे चुनाव में भी हिफ़्ज़ुर रहमान ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 1967 के चौथे आम चुनाव में पहली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने जीत के साथ अपना खाता खोला। सीपीआई उम्मीदवार इशाक संभली ने 70306 (25.75 फीसदी) वोट पाकर जीत हासिल की। भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के उम्मीदवार आर. सिंह 66249 (24.26 फीसदी) वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस प्रत्याशी सी.एस.एस. सिंह 59658 (21.85 प्रतिशत) वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वाम दलों की यह पहली जीत थी।

चौथे आम चुनाव में 17 सीपीआई उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। साठ के दशक में जन्मी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी छह उम्मीदवार उतारे थे। सीपीआई ने पांच सीटों पर और सीपीआई (एम) ने एक सीट पर जीत हासिल की। यह सीपीआई का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। इस चुनाव में सीपीआई को 3.62 फीसदी वोट मिले। सीपीआई ने अमरोहा, घोसी, ग़ाज़ीपुर, बांदा और मुज़फ्फरनगर सीटें जीती थीं। वहीं वाराणसी सीट पर सीपीआई (एम) ने कब्जा जमाया था। सीपीआई (एम) को 1.19 फीसदी वोट मिले।

आखिरी जीत 1971 में

1971 के आम चुनाव में सीपीआई उम्मीदवारों ने चार सीटें-अमरोहा, घोसी, ग़ाज़ीपुर और मुज़फ्फरनगर जीतीं और उन्हें 3.70 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन ये पार्टी का आखिरी बेहतरीन प्रदर्शन था। अमरोहा सीट पर सीपीआई के इशाक संभली ने 92580 (34.50 फीसदी) वोट हासिल कर जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रपाल सिंह को 61538 (22.94 फीसदी) वोट मिले। जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रामशंकर कौशिक 51821 (19.31 फीसदी) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। यह इस सीट पर सीपीआई की आखिरी जीत थी। उसके बाद अभी तक उनका खाता यहां नहीं खुला है। इस चुनाव में सीपीआई ने 9 और सीपीआई (एम) ने 3 उम्मीदवार उतारे थे। इस चुनाव में सीपीआई का खाता नहीं खुला। उन्हें 0.19 फीसदी वोट मिले।

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आगे के चुनावों की स्थिति

1977 के आम चुनाव में यहां वाम दलों को बड़ा झटका लगा। इंदिरा विरोधी लहर में वामपंथी दलों के उम्मीदवारों को भी हार का सामना करना पड़ा। भारतीय लोक दल (बीएलडी) के उम्मीदवार चंद्रपाल सिंह ने अमरोहा से जीत हासिल की। सीपीआई उम्मीदवार इशाक संभली तीसरे स्थान पर रहे। जबकि सीपीआई (एम) उम्मीदवार शराफत हुसैन चौथे स्थान पर खिसक गए। इस चुनाव में करारी हार के बाद वामपंथी दलों ने इस सीट पर अगले 11 आम चुनावों में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। 1971 के चुनाव में जीत इस सीट पर वामपंथी दलों की आखिरी जीत साबित हुई।

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