नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और इसका कार्यान्वयन उन पांच चुनिंदा विषयगत क्षेत्रों में शामिल हैं, जिन पर भारतीय और जर्मन वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने यहां चर्चा की। भारत-जर्मन विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र (आईजीएसटीसी) द्वारा जर्मन संघीय शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्रालय और भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ 6 और 7 सितंबर को संयुक्त आभासी कार्यशाला में स्थिरता, स्वास्थ्य देखभाल, स्वायत्त रोबोटिक्स, भरोसेमंद एआई और गणितीय नींव के लिए एआई जैसे क्षेत्रों पर विचार-विमर्श किया गया।
डीएसटी की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि कार्यशाला का आयोजन नवंबर 2019 में दोनों देशों के बीच सरकारी परामर्श के दौरान किए गए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने और बढ़ाने के निर्णय के बाद किया गया।
आईजीएसटी के भारतीय सह-अध्यक्ष और डीएसटी के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाग प्रमुख, एस.के. वाष्र्णेय और जर्मन सह-अध्यक्ष कैथरीन (जो एक ही नाम से जाना जाता है) ने अकादमिक और उद्योग साझेदारी को मजबूत करने और दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया, जो विशेष रूप से एआई, मशीन लर्निग और रोबोटिक्स के क्षेत्र में समाज की मदद करेगा। डीएसटी के फ्रंटियर एंड फ्यूचरिस्टिक टेक्नोलॉजीज डिवीजन के प्रमुख, डॉ. मुरली मोहन ने कहा कि विश्व स्तर पर एआई एक बहुत ही सक्रिय शोध विषय है, और प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि भारत और जर्मनी सहयोग कर सकें और सहयोग बढ़ा सकें।
उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के उन्नयन, कौशल विकास और रोजगार सृजन जैसे कई मुद्दों का समाधान करना है। इस क्षेत्र में शिक्षा और उद्योग का लाभ उठाने की जरूरत है, और उत्पादों को तैयार करने की जरूरत है।” विज्ञप्ति में कहा गया है कि कार्यशाला में दो मुख्य पूर्ण व्याख्यान हुए, जर्मन पक्ष के प्रोफेसर रूपक मजूमदार और भारत के प्रोफेसर सुभासिस चौधरी के और उसके बाद पूर्ण सत्र में आमंत्रित वक्ताओं के व्याख्यान हुए।