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देश के धरोहरों पर तमाम दावों के बीच इतिहास को बदलना कितना सही?

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नई दिल्लीः देश की राजधानी दिल्ली का कुतुब मीनार हो या आगरा का ताजमहल, इन सब धरोहरों पर अब बहस छिड़ी हुई है। मथुरा की शाही ईदगाह और वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद पर भी अदालतों में सुनवाई चल रही है। इन सभी जगहों पर बहस हर दिन तेज होती जा रही है, लेकिन सवाल यही कि क्या इतिहास को बदला जाना कितना सही ? दिल्ली में कुतुब मीनार पर अदालत का फैसला आगामी दिनों में आएगा कि कई सदी पहले जिन मंदिरों को तोड़कर इसका परिसर बनाया गया, उन मंदिरों को फिर से पुन:स्थापित किया जाना चाहिए या नहीं।

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इतिहासकार एस इरफान हबीब ने कहा कि, इतिहास के साथ छेड़छाड़ होना बिलकुल ठीक नहीं है। यह राजनीति से प्रेरित एक एजेंडा है और इसका एक मकसद है जिसे हर कोई देख रहा है। जो इससे सहमत है वो देख रहे हैं जो इससे सहमत नहीं है वो भी सब देख रहे हैं कि आखिर एक साथ सब जगहों पर ऐसा क्यूं किया जा रहा है। उन चीजों के बारे में आवाज उठाई जा रहीं है जिन्हे लोग पहले से जानते हैं और उनके बारे में उठाया जा रहा है जिनका विवादों में आने का कोई मतलब नहीं है।

हर चीज पर सवाल खड़े कर देना है, अब अजमेर कि दरगाह पर भी सवाल उठने लगे हैं। 850 साल पुरानी चीज पर आवाज उठना जबकि राजस्थान में राजपूत शाषक रहे, उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। किसी इतिहासकार ने उसको लेकर कुछ नहीं लिखा, किसी को भी विवादों में लाने के लिए तथ्यों कि जरूरत नहीं होती है। बस एक बार उसपर आवाज उठनी चाहिए। कुछ लोगों के लिए नफरत की लड़ाई है, राजनीति के लिए वोट की लड़ाई है।

उन्होंने आगे कहा कि, भारत सरकार इन सभी मसलों पर शांत है। और यह वही लोग है जो सरकार के साथ है। मेरा मशवरा बस इतना ही है कि इतिहास को पढना लिखना, समझना जरूरी है। यदि औरंगाजेब ने बीते वक्त में कुछ किया और आप उसी को 21वीं सदी में करेंगे तो उनमें और आपके क्या फर्क है? हाल ही में कई हिंदू संगठनों द्वारा यह मांग की गई है कि कुतुब मीनार मंदिरों को तोड़ कर खड़ा किया गया और उन्हें इसमें पूजा का अधिकार मिलना चाहिए। वहीं कु़तुब मीनार का निर्माण दिल्ली सल्तनत के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा करवाया गया था। भारत में बनाई गई मुस्लिम शासकों द्वारा यह कुछ शुरूआती इमारतों में से एक है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के खालसा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ तरुन कुमार ने कहा कि, इतिहास के साथ कोई भी छेड़खानी नहीं होनी चाहिए और रिसर्च में पाए जाने वाले तथ्यों के आधार पर कुछ लिखा जाता है, सबूत के आधार पर आगे की बातचीत इतिहासकारों को करना चाहिए। रिसर्च को कभी रोकना नहीं चाहिए, एक के बाद एक तथ्य सामने आते रहेंगे। इसी आधार पर हमारी जानकारी बढ़ती जाती है। लोगों को सोशल मिडिया के आधार पर अपने विचार नहीं रखने चाहिए, जानकारी को सही प्राप्त करने के लिए सही किताबों का सहरा लेना जरूरी होता है। यदि आधे तथ्यों के साथ चीजों को धूमिल किया जाता है। आजादी के बाद से ही हमारी सरकारों को अच्छी पढ़ाई पर जोर दिया जाना चाहिए था।

फिलहाल मथुरा में श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर भी सुनवाई जारी है। याचिका में 2.37 एकड़ जमीन को मुक्त करने की मांग की गई है। हिन्दू पक्षों का कहना है कि, श्रीकृष्ण विराजमान की कुल 13.37 एकड़ जमीन में से करीब 11 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थापित हैं, जबकि शाही ईदगाह मस्जिद 2.37 एकड़ जमीन पर बनी है. इस 2.37 एकड़ जमीन को मुक्त कराकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान में शामिल करने की मांग याचिका में की गई है। इतिहासकार सईद अली नदीम रिजावी ने कहा कि, पिछले 8 सालों से इतिहास के साथ लगातार छेड़छाड़ की जा रही है, यह समझना होगा कि इतिहास कभी अच्छा या बुरा नहीं हो सकता। इतिहास मे जो भी हुआ उसको हम नकार नहीं सकते। अलग अलग बातें जरूर की जा सकती है, इतिहास हमेशा कुछ कहता है उसके पीछे कहानी होती है। इतिहास बिना प्रमाण के लिखा या पढ़ा नहीं जाता है।

पिछले कई सालों से इतिहास को बिना समझने के लिए मिथ को बढ़ावा दिया जा रहा है और यह बताने की कोशिश की जा रही है कि हम अपने इतिहास को उस तरह से पढ़ाये जैसा हम चाहते हैं, जो गलत है। सभी मौजूदा हालत पर चिंतित है कि आखिर यह क्या खिलवाड़ किया जा रहा है, इतिहास में क्या हुआ है उसे आप इतिहासकारों से पूछें लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। हमें अपने इतिहास को कबूल करना होगा, हम पिछली गलतियों को सुधार नहीं सकते हैं. हम इतिहास को बदलने से अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। अन्य देशों में हमारा मजाक बनाया जा रहा है। हमें जो देश गंभीरता से लेते थे वो नहीं ले रहे है।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से बिल्कुल सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद पर भी तमाम दावे किए जा रहे हैं, दावों के तहत प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर मस्जिद बनाई गई है। अदालत में दावा किया गया है कि औरंगजेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी है। इसी बीच मस्जिद के अंदर मौजूद वुजू खाने में शिवलिंग है, फिलहाल अदालत में इसपर सुनवाई जारी है। इतिहासकार फिरदौस अनवर ने कहा कि, कुछ लोगों ने किसी खास मकसद से इस प्रदूषण को फैलाया है। इतिहास को बार बार लिखा जाता रहा है, हर दौर में यह कोशिश होती रही है. इतिहास वही है जो तथ्यों पर आधारित हो, जज्बात के आधार पर इतिहास नहीं लिखा जा सकता और न ही बड़े प्लेटफॉर्म पर कबूल नहीं किया जा सकेगा। सभी इतिहासकारों को मिलकर एक जगह पर आना चाहिए और अपनी राय रखनी चाहिए।

राजनितिक पार्टियों को इतिहास में दखल नहीं देना चाहिए, यदि कुछ मसला है तो इतिहासकारों से बात करनी चाहिए। मुझे याद नहीं इससे पहले इतने बड़े लेवल पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने कि कोशिश की गई हो। साथ ही आगरा के ताजमहल के तहखाने में मौजूद 22 कमरों को खोले जाने की मांग भी उठने लगी है और इसको लेकर भी अदालत में याचिका दायर की गई है. याचिका में दावा किया है कि, 22 कमरों में ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जो आगरा के ताजमहल महल को शिव मंदिर साबित कर सकते हैं। दरअसल फारसी, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला की अनोखी शैली से बने ताजमहल को मोहब्बत की निशानी कहा जाता है। दावा किया जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में यमुना के किनारे सफेद संगमरमर से इसे बनवाया था।

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