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Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि का पहला दिन, जानें मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व और कथा

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Chaitra Navratri 2024  1st Day , नई दिल्लीः आज 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के पहले दिन प्रथम देवी शैलपुत्री की पूजा होती है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां भगवती के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की कथा और पूजन का विशेष महत्व है।  पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा था। मां शैलपुत्री का स्वरूप बेहद सरल और शांत है। उनका वाहन वृषभ है। वृषभ पर सवार मां शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। ये ही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं।

पूर्वजन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्र थी मां शैलपुत्री

अपने पूर्वजन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम ‘सती’ था। इनका विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सभी देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिये निमन्त्रित किया, किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में नहीं बुलाया। सती को जब जानकारी मिली कि हमारे पिता एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बतायी। 

शंकर जी ने काफी विचार मंथन के बाद उनसे कहा, ‘‘प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं, किन्तु हमको जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’’ भगवान शंकर के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। अंततः उनका प्रबल आग्रह देख शंकर जी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।

पिता के घर पहुँचकर सती ने अनुभव किया कि वहां कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात तक नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। 

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दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकर की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वह अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया।

इस तरह वह ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं हेमवती स्वरूप से मां ने देवताओं का गर्व-भंजन किया था। ‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्रमें स्थिर करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारम्भ होता है।

Chaitra Navratri 2024- मां शैलपुत्री का मंत्र

‘‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनींम।।’’

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व

माता शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों को सांसारिक सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और वह प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है।

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