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दुनिया में दौड़ेगा काठ का घोड़ा

Wooden horsed

लखनऊः चीन की रीढ़ तोड़ने की तैयारी तेज हो गई है। जो हरकत उसने डोकलाम और लद्दाख में की, उसने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के खिलौनों और वहां के एप से दूरियां बनाने के लिए भारतीयों को तैयार कर लिया है। इसके लिए जगह-जगह दशहरे और कार्तिक मास पर लगने वाले मेलों पर फोकस किया जा रहा है। अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के साथ ही जिलों से बने खिलौने विश्व बाजार की शोभा बनेंगे। इनमें काठ का घोड़ा और मिट्टी की चकिया तथा कपडे़ से बनी गुलाबो और सिताबो लोगों को गुदगुदाएंगे।

कभी हमारे देश में बने मिट्टी के खिलौने दुनिया भर में पसंद किए जाते थे। धीरे-धीरे चीन के साथ कई देशों की इलेक्ट्रॉनिक पहुंच ने भारतीय बाजारों पर अपना कब्जा कर लिया। देसी खिलौनों की सुंदरता कम नहीं थी, लेकिन इनमें आधुनिकता की पकड़ न होने के कारण लोगों का इनसे मोह भंग हो गया। इसका परिणाम भी बड़ा घातक था। हजारों के पेट पर लात पड़ती गई। एक के बाद एक बेरोजगार होते चले गये। वर्षों से बाजारों में मिट्टी की बनी चक्की गायब रही। जिस लकड़ी की बनी गाड़ी को पकड़कर बच्चे खड़े होना सीखते थे, वह केवल नुमाइश की चीज बनकर रह गई। आधुनिकता की चमक में यह वाकर के रूप में आ गया। कपडे़ के गुड्डे और गुड़िया यदाकदा ही दिखते हैं। अब फिर इनको उचित स्थान मिलने जा रहा है, वह भी आधुनिकता के साथ। लकड़ी की रेल होगी और उसमें रंग-बिरंगी लाइटें लगी होंगी। इसे हमारे देश में ही तैयार किया जाएगा।

नाका बाजार में दिखेंगी इलेक्ट्रिक गाड़ियां

राजधानी के लखनऊ में नाका इलेक्ट्रक शॉप में तमाम लोग इसकी कवायद कर रहे हैं। भारत में खिलौना उद्योग को अंग्रेजी राज्यों में कोई संरक्षण नहीं दिया गया। प्रथम महायुद्ध के पश्चात विदेशों से यांत्रिक खिलौने भारी संख्या में आने लगे, इससे इस उद्योग को बहुत आघात लगा। खिलौने बनाने के केन्द्रों में लखनऊ का कृष्णानगर और चिनहट का भी नाम है। इसके अलावा जिलों के नक्कासी कारीगरों ने भी धाक बनाए रखी। मिट्टी और पेपरमैशी के खिलौने बारह महीने बिकते हैं। यद्यपि उनकी सबसे अधिक बिक्री दीपावली व अन्य त्यौहारों पर ही होती है। मिट्टी और कागज के खिलौने चलन में आएंगे चिकनी मिट्टी और कागज के खिलौने पहले भी बाजार में थे। अब इनको जल्द ही बड़ा और व्यापक रूप दिया जाएगा। पेपरमेशी खिलौने भी ऐतिहासिक हैं। कागज को मिट्टी के बर्तन में गलाकर इसे आकार दिया जाता था।

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जहाज, टैंक और मोटर देंगे देश को गौरव

प्लास्टर ऑफ पेरिस में कई गुण होते हैं, जिनके कारण यह लोकप्रिय हो गया है। इसको थोड़े से पानी में घोलकर लेई जैसी बना लिया जाता है और इसे सांचे में भर दिया जाता है। 15-20 मिनट में यह जमकर सख्त और पत्थर जैसा हो जाता है। अब सांचे में से इसे निकाल लिया जाता है। लकड़ी के खिलौने में देवी और देवताओं को चमकदार और आधुनिक डिजाइन में बनाने के लिए कलाकार तैयार हैं। यही नहीं हवाई जहाज, टैंक, मोटर भी अब देश को गौरव देंगे।