सपा-कांग्रेस के गठबंधन से किसको होगा ज्यादा लाभ ?

3

लखनऊ: लोकसभा चुनाव के लिए सपा और कांग्रेस (SP-Congress) के बीच गठबंधन से राज्य में बसपा को बड़ा झटका लगने की आशंका है। इससे पिछले चुनाव की तुलना में बीजेपी फायदे में रहेगी। राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि पिछले चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर 10 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार एक भी सीट नहीं जीत पाएगी। वहीं, बीजेपी फिर से अपने 2014 सीटों के आंकड़े को दोहरा सकती है।

2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में बसपा शून्य पर पहुंच गई थी। इससे पहले चुनाव में 20 लोकसभा सीटें जीतने वाली बीएसपी को बड़ा झटका लगा है। उन्हें 1,59,14,194 वोट मिले। कुल वोट शेयर 19।60 प्रतिशत रहा, जो पिछले चुनाव की तुलना में 7.82 प्रतिशत कम है। उसके 34 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे, फिर भी वह एक भी सीट नहीं जीत सकी। 42 उम्मीदवार राज्य में तीसरे स्थान पर रहे। समाजवादी पार्टी ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। उसे 18 सीटों का नुकसान हुआ था। उन्हें 22.20 फीसदी वोट शेयर मिले। सपा 31 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। जबकि बीजेपी ने 78 सीटों पर चुनाव लड़कर 71 सीटें जीती थीं। वह सात सीटों पर दूसरे नंबर पर थी। सहयोगी अपना दल को दो सीटें मिली थीं। बीजेपी को 42.63 फीसदी वोट मिले थे। जबकि अपना दल को एक फीसदी और एक फीसदी वोट मिले।

2019 में बीजेपी के वोट साढ़े सात फीसदी बढ़े

वहीं 2019 में बीजेपी का वोट शेयर 7.35 फीसदी बढ़ा। 2019 में उसे 49.98 फीसदी वोट मिले। इसके बावजूद एसपी-बीएसपी गठबंधन के चलते नौ सीटों का नुकसान हुआ और बीजेपी सिर्फ 62 सीटें ही जीत सकी। सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में बीजेपी की जीत को रोकने के लिए कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में एसपी-आरएलडी के साथ बीएसपी को भी शामिल करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मायावती की एंट्री तो छोड़िए, आरएलडी ने भी गठबंधन से नाता तोड़ लिया। समाजवादी पार्टी के गठबंधन से बीजेपी से नाराज वोटरों का रुख सपा-कांग्रेस की ओर होगा। उनके बसपा के साथ जाने की उम्मीद कम है, लेकिन बसपा के पास अपना एक ठोस वोट बैंक है। वह उनके साथ रहेंगे, जिससे बीजेपी को एसपी-कांग्रेस गठबंधन से फायदा हो सकता है।

मतदाता सपा-कांग्रेस और बसपा में बंट जाएंगे

तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए मायावती कहती रही हैं कि पहले गठबंधन की वजह से कांग्रेस या एसपी के वोट बीएसपी को ट्रांसफर नहीं हुए। ऐसे में चूंकि पार्टी को कोई फायदा नहीं मिल रहा है तो अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का उनका फैसला ‘अडिग’ है। इस बीच मिशन क्लीन स्वीप के लिए बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाली आरएलडी के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश की पार्टियों को भी एनडीए में शामिल करने के साथ-साथ प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में लाने में जुटी है। ऐसे में साफ है कि चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होगा। त्रिकोणीय लड़ाई के कारण एनडीए को उन सीटों पर भी फायदा होने की उम्मीद है, जहां आबादी मुख्य रूप से मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग की है। सपा-कांग्रेस और बसपा के बीच वोटरों के बंटने से एनडीए की जीत की संभावना बढ़ जाएगी।

बीजेपी दलित वोटों में कर रही सेंधमारी 

गौरतलब है कि पिछले चुनाव में जब एसपी, बीएसपी और आरएलडी साथ मिलकर लड़े थे तो एनडीए सिर्फ 64 सीटें जीत सकी थी, जबकि बीएसपी 10 और एसपी पांच सीटों पर सफल रही थी। कांग्रेस को सिर्फ रायबरेली सीट पर सफलता मिली। चूंकि इस बार सपा-कांग्रेस एक साथ हैं। इसलिए मुस्लिम वोटों के अपनी ओर एकतरफा झुकाव से गठबंधन को फायदा हो सकता है, लेकिन अकेले दलित वोटों के दम पर किसी भी सीट पर जीत सुनिश्चित करना बीएसपी के लिए मुश्किल लग रहा है।

यह भी पढ़ेंः-PM Modi का दो दिवसीय गुजरात दौरा, करोड़ों की योजनाओं का करेंगे शिलान्यास

वैसे भी बीजेपी विभिन्न योजनाओं के दम पर दलितों के बीच काफी हद तक पैठ बना चुकी है। ऊंची जाति के साथ खिसकते दलित वोट बैंक का ही नतीजा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा 403 में से सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। एक बार फिर अगर मायावती अकेले चुनाव लड़ने के अपने फैसले से पीछे नहीं हटतीं। पार्टी के मौजूदा सांसद उनका साथ छोड़ते नजर आ रहे हैं।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)