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भारत को अपने साथ लाने में जुटे नाटो-रूस, युद्ध के बीच अपना रहें कूटनीति

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नई दिल्लीः पिछले एक महीने से भी ज्यादा वक्त से पहले शुरू हुआ रूस-यूक्रेन का युद्ध अभी भी जारी है। इस युद्ध को लेकर अब वैश्विक स्तर पर कई देश दो खेमों में बंट गए हैं। एक जो रूस के खिलाफ हैं और यूक्रेन के समर्थन में हैं इसमें नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन,नाटो समेत कई देश शामिल हैं। वहीं भारत और चीन समेत कुछ देश ऐसे भी हैंए जो रूस के पक्ष में खड़े हैं। हालांकि भारत ने इस पूरे मामले पर अपनी तटस्थ नीति अपनाई और खुलकर सामने नहीं आया। ये भारत की ताकतवर विदेश नीति का ही नतीजा है कि 24 फरवरी से इस युद्ध के शुरू होने के बाद से अब तक 17 देशों के 20 प्रधानमंत्रीए मंत्री और सचिव स्तर के अधिकारी भारत दौरे पर आ चुके हैं। इन 17 देशों में 8 देश तो ऐसे हैंए जिनके विदेश मंत्री और उप.विदेश मंत्री ने भारत का दौरा किया है।

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यही नहीं शुक्रवार 01 अप्रैल तक रशिया के विदेश मंत्री सर्गेंई लावरोव ब्रिटेन की विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रस और अमेरिका के डिप्टी एनएसए दिलीप सिंह तीनों भारत की राजधानी दिल्ली में मौजूद हैं। दिलीप सिंह ने ही अमेरिका में रशिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का पूरा खाका तैयार किया था। इससे भारत की कूटनीतिक ताकत के बारे में पता चलता है। भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश हैए जो रशिया से भी बात कर रहा है और अमेरिका से भी बात कर रहा है। हालांकिए रूस के समर्थन को लेकर अमेरिका ने कई बार भारत पर दबाव भी बनाया और धमकाने की कोशिश भी कीए मगर भारत ने अमेरिका की हर बात का करारा जवाब दिया और अपनी तटस्थातमक नीति पर अड़ा रहा है। भारत की इस तटस्थ नीति ने उसे वैश्विक स्तर पर और भी मजबूत बनाया है। इसका उदाहरण इन पश्चिमी देशों के शीर्ष अधिकारियों का भारत का दौरा करना खुद बयां कर रहा है।

युद्ध स्थिति में महत्वपूर्ण बना भारत

शुरूआत में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो कई देश यूक्रेन के समर्थन में आ गए और रूस पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। इस दौरान यूएन में जब रूस के खिलाफ वोट करने की नौबत आई तो भारत ने उस बैठक में हिस्सा न लेने का फैसला कर अप्रत्यक्ष रूप से रूस को अपना समर्थन दिया। भारत के इस कदम की पश्चिमी देशों ने खुले स्वर में आलोचना की। इन देशों ने रूस पर प्रतिबंधों की झड़ी लगाते हुएए भारत पर भी दबाव डालने की काफी कोशिश की। हालांकिए भारत ने इन सबके बावजूद रूस से अपने संबंध बनाए रखे और रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लगातार संपर्क में रहेए जिसका नतीजा ये रहा कि भारत की भूमिका रूस-यूक्रेन युद्ध में महत्वपूर्ण हो गई। ये भारत तटस्थ कूटनिति का ही नतीजा रहा कि इन पश्चिमी देशों के प्रतिनिधियों ने भारत की यात्रा शुरू की। ये देश भारत के जरिए रशिया तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं।

रशिया विरोधी देशों ने किया भारत का रुख

भारत की मजबूत तटस्थ नीति का ही नतीजा है कि युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक 17 देशों के 20 प्रधानमंत्री, मंत्री और सचिव स्तर के अधिकारी भारत दौरे पर आ चुके हैं। इनकी शुरूआत हुई 15 मार्च को कनाडा के उप-विदेश मंत्री मार्टा मॉर्गन के भारत दौरे के साथ। कनाडा के उप.विदेश मंत्री का भारत आना इसलिए भी खास है क्योंहि कनाडा भी उस नाटो का सदस्य है। जो रूस-यूक्रेन युद्ध की जड़ है। कनाडा के बाद 19 मार्च से 21 मार्च के बीच ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री भी भारत दौरे पर आए थे।

ऑस्ट्रिया यूरोपीय यूनियन का हिस्सा हैए जो इस युद्ध में यूक्रेन को सैद्धांतिक समर्थन के साथ हथियारों की मदद भी दे रहा है। फिर 22 और 23 मार्च को ग्रीस के विदेश मंत्री ने भी भारत का दौरा किया। ग्रीस भी नाटो देशों का ही सदस्य है। इनके अलावा क्वाड देशों का सदस्य और यूक्रेन के समर्थन में खड़े जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा भी 19 और 20 मार्च को दिवसीय भारत दौरे पर आ चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात कर कई मुद्दों पर बात की थी। गौरतलब है कि जापान इस युद्ध में यूक्रेन के समर्थन में रशिया पर कई आर्थिक प्रतिबंध भी लगा चुका है। इनके अलावा अमेरिका, ब्राजील, आयरलैंड, नाइजीरिया, श्रीलंका, फ्रांस और जर्मनी के भी मंत्री व पॉलिसी एडवाइजर भारत दौरे पर आ चुके हैं।

अपनी तटस्थ नीति वैश्विक देशों का हब बना भारत

दो देशों के बीच मचे युद्ध के बीच भारत ने अपनी मजबूत तटस्थ कूटनीति अपना कर वैश्विक स्तर पर खुद को काफी मजबूत साबित किया है। भारत इस समय एक ऐसा हब बन गया हैए जहां दुनियाभर के नेता इकट्ठा हो रहे हैं और वैश्विक राजनीति और युद्ध पर चर्चा कर रहे हैं। यानी इस समय दुनिया में दो ब्लॉक बनते दिख रहे हैं। जिसमें एक तरफ रशिया और चीन जैसे देश हैं और दूसरी तरफ अमेरिका और बाकी पश्चिमी देश हैं। उन देशों के बीच भारत संवाद का सेतु बना हुआ है और दुनिया की बड़ी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इस समय दुनिया की सबसे तेजी से उभरती पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। इससे पता चलता है कि भारत ने युद्ध की शुरूआत में रशिया और यूक्रेन से जो समान दूरी बनाने की रणनीति अपनाई थी, वो कामयाब हो गई और इस युद्ध में सबसे समझदारी का काम भारत ने ही किया है।

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