लखनऊः विटामिन सी, लाइकोपीन, पोटैशियम से भरपूर टमाटर श्वास नली की बीमारी के साथ ही वजन कम करने में भी बहुत उपयोगी है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ता है, जिससे तमाम रोगों से व्यक्ति का शरीर लड़ने में सक्षम हो जाता है। इसके सेवन से पाचन शक्ति और जिगर ठीक रहता है, साथ ही मधुमेह रोग में भी बहुत उपयोगी है।
इस संबंध में बीएचयू के पंचकर्म विभाग के विभागाध्यक्ष जेपी सिंह का कहना है कि में विटामिन सी की अच्छी मात्रा में होता है। इसका कई रूपों में उपयोग किया जा सकता है।
शरीर से विशेषकर गुर्दे से रोग के जीवाणुओं को निकालता है। यह पेशाब में चीनी के प्रतिशत पर नियंत्रण पाने के लिए प्रभावशाली होने के कारण यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी बहुत उपयोगी होता है। उन्होंने कहा कि कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होने के कारण इसे एक उत्तम भोजन माना जाता है। उन्होंने कहा कि टमाटर से पाचन शक्ति बढ़ती है। इसके लगातार सेवन से जिगर बेहतर ढंग से काम करता है और गैस की शिकायत भी दूर होती है। जो लोग अपना वजन कम करने के इच्छुक हैं, उनके लिए टमाटर बहुत उपयोगी है।
उन्होंने कहा कि एक मध्यम आकार के टमाटर में केवल 12 कैलोरीज होती है, इसलिए इसे पतला होने के भोजन के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके साथ साथ यह पूरे शरीर के छोटे-मोटे विकारों को भी दूर करता है। टमाटर के नियमित सेवन से श्वास नली का शोथ कम होता है। उन्होंने कहा कि टमाटर खाने से अतिसंकुचन भी दूर होता है और खांसी तथा बलगम से भी राहत मिलती है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे को सूखा रोग हो जाए तो उसे प्रतिदिन एक गिलास टमाटर का जूस पिलाने से बीमारी में आराम मिलता है। बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए टमाटर बहुत फायदेमंद होता है। मोटापा घटाने के लिए भी टमाटर का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रतिदिन एक से दो गिलास टमाटर का जूस पीने से वजन घटता है। गठिया के रोग में भी टमाटर बहुत फायदेमंद है। प्रतिदिन टमाटर के जूस में अजवायन मिलाकर खाने से गठिया के दर्द में आराम मिलता है। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था में टमाटर का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी होता है, जो गभर्वती के लिए काफी अच्छा होता है।
टमाटर की खेती के लिए अनुकूल है ठंड
टमाटर एक ऐसी सब्जी है जो गर्म जलवायु में ही उगाई जाती है परंतु इसकी खेती ज्यादातर ठंडे मौसम में की जाती है। इसके सफल उत्पादन हेतु इसका तापमान 21-23 डिग्री अनुकूल माना गया है, लेकिन अगर हम बात करें, इसके व्यापारिक स्तर की तो उसके लिए इसका सफल उत्पादन 18 से 27 डिग्री तापमान तक होता है। यह एक ऐसी सब्जी है जिसके अंदर सूखा सहने की अधिक क्षमता होती है, परन्तु अगर हम इसकी फसल में ज्यादा सूखे के बाद तुरंत ही सिंचाई कर दें तो एकदम से पानी मिलने की वजह से इसका फल धीरे-धीरे फटने लग जाता है और इसके फूल के तने गलने लगते है।
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इसका तापमान ज्यादा या फिर एक दम से कम होने पर बीजों का अंकुरण कम हो जाता है। जिस कारणवश फसल की बढ़वार कम हो जाती है और फल कमजोर होकर गिरने लगता है और झुलस जाता है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों की मृदु जलवायु अंकुरण, पादप वृद्धि, फल के निर्माण, फलों के विकास और पकने के लिए उचित माना गया है, लेकिन ज्यादा बारिश होने के कारण फूल झड़ने की समस्या हो जाती है। जिस कारण इसकी उपज में भारी कमी आती है। यह फसल अच्छी धूप वाले जगहों पर सही तरह पकती है।