Thursday, November 28, 2024
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श्रीलंका के नए राष्ट्रपति दिसानायके भारत के लिए बड़ा खतरा ? चीन से नजदीकियों ने बढ़ाई टेंशन

Anura Kumara Disanayake , नई दिल्ली: आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को नया राष्ट्रपति मिल गया है। अनुरा कुमारा दिसानायके ने सोमवार को श्रीलंका के 9वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली है। वह श्रीलंका के राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाले पहले वामपंथी नेता हैं। ऐसे में यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि अनुरा कुमारा दिसानायके कौन हैं और उनके श्रीलंका की कमान संभालने के बाद भारत-श्रीलंका संबंधों पर कितना असर पड़ेगा।

विक्रमसिंघे से था कड़ा मुकाबला

दरअसल, श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण 2022 में हुए विद्रोह के बाद यह पहला राष्ट्रपति चुनाव था। इस चुनाव में कुल 39 उम्मीदवार राष्ट्रपति पद के लिए किस्मत आजमा रहे थे, जिसमें से मुख्य मुकाबला पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा और अनुरा कुमारा के बीच था। 55 वर्षीय दिसानायके नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन के प्रमुख हैं, जिसमें उनकी जनता पार्टी विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) और पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट भी शामिल हैं। उनके गठबंधन ने चुनाव जीता, जिसके बाद अनुरा कुमारा को श्रीलंका का नया राष्ट्रपति चुना गया।

विद्रोह के दौरान बुलंद की थी जनता की आवाज

इससे पहले वे साल 2022 में तब चर्चा में आए थे जब श्रीलंका में आर्थिक संकट के दौरान एक जन विद्रोह हुआ था, वे इस आंदोलन का मुख्य चेहरा बनकर उभरे थे। विद्रोह के दौरान उन्होंने लोगों की आवाज बुलंद की थी। इसके चलते श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सत्ता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। इस घटनाक्रम के बाद उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ। इतना ही नहीं, जब श्रीलंका में चुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था।

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दिसानायके के चीन के साथ घनिष्ठ संबंध

ऐसा कहा जाता है कि वामपंथी नेता अनुरा कुमारा के चीन के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जिसका असर श्रीलंका-भारत संबंधों पर भी पड़ सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने भारत के साथ चल रही कई योजनाओं पर टिप्पणी की थी और इसे रोकने की बात कही थी। दिसानायके के अब श्रीलंका की कमान संभालने के बाद भारत-श्रीलंका संबंधों पर कितना असर पड़ेगा।

बता दें कि अनुरा कुमारा दिसानायके साल 1987 में पहली बार चर्चा में आए थे। इस दौरान उनकी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ने 80 के दशक में श्रीलंका और भारत के बीच हुए शांति समझौते का विरोध किया था। भारत की नज़र पहले से ही श्रीलंका के चुनावों पर थी। हालांकि, अब आशंका जताई जा रही है कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वहां कुछ बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

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