लखनऊः कोलकाता में एक ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के मामले को लेकर लखनऊ में रेजिडेंट डॉक्टर्स का प्रदर्शन लगातार जारी है। इस प्रदर्शन के कारण केजीएमयू, लोहिया, पीजीआई और बलरामपुर जैसे प्रमुख अस्पतालों में ओपीडी सेवाओं के साथ जांच और सर्जरी पर व्यापक असर पड़ रहा है। हजारों मरीजों को बिना इलाज के ही निराश होकर लौटना पड़ रहा है।
लगातार जारी है प्रदर्शन
रेजिडेंट डॉक्टर्स ने 1090 चैराहे पर शांतिपूर्ण मार्च निकाला और न्याय की मांग की। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी इमरजेंसी और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी सेवाएं बंद रखी। केजीएमयू में प्रदर्शन लगातार जारी रहा, जहां सीनियर फैकल्टी ने धरने में शामिल होकर रेजिडेंट्स का समर्थन किया और मृतका को शीघ्र न्याय दिलाने की मांग की। रेजिडेंट्स ने न्यू ओपीडी में प्रदर्शन के बाद परिसर में मार्च निकाला और गेट नंबर दो पर धरना दिया।
ट्रॉमा सेंटर के बाहर भी प्रदर्शन हुआ, जिससे वहां अफरा-तफरी मच गई। कर्मचारियों ने भी प्रोन्नति और वेतन विसंगति की मांग को लेकर काम-काज रोक दिया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। प्रदर्शन के कारण मरीजों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। कई मरीजों को बिना इलाज के ही लौटना पड़ा। केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि 3,900 मरीज देखे गए, जिसमें 1,200 नए और 2,700 पुराने मरीज शामिल थे। एक समय जहां केजीएमयू की ओपीडी में आठ हजार से ज्यादा पर्चें बनते थे, वहीं चार हजार से ज्यादा मरीज एक दिन में वापस लौट गए। लखनऊ में रेजिडेंट डॉक्टर्स का प्रदर्शन जारी रहा, जिसने विभिन्न अस्पतालों में ओपीडी सेवाओं को पूरी तरह प्रभावित किया।
लोहिया संस्थान में भी इसी प्रकार के प्रदर्शन ने जांच और दवा की सेवाओं को ठप कर दिया।
इस दौरान, संस्थान में एक कार्यक्रम के लिए आए Deputy CM ब्रजेश पाठक ने रेजिडेंट डॉक्टरों से मुलाकात की और चिकित्सकों ने उन्हें अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। पाठक ने आश्वासन दिया कि सरकार इस मुद्दे पर उनके साथ है। लोहिया संस्थान के प्रवक्ता डॉ. भुवन चंद्र तिवारी ने बताया कि प्रदर्शन के बावजूद इमरजेंसी सेवाएं जारी रही। शुक्रवार को 3,400 मरीज देखे गए, जिनमें 350 इमरजेंसी केस और 45 सर्जरी शामिल थीं। संजय गांधी पीजीआई में भी रेजिडेंट डॉक्टर्स ने उग्र प्रदर्शन किया। चैथे दिन भी नए रजिस्ट्रेशन नहीं किए गए और सीटी स्कैन, एमआरआई जैसी जांचें ठप रही। मरीजों को पैथोलॉजी और अन्य जांचों के लिए भटकना पड़ा और कई ने रात भर डॉक्टरों का इंतजार किया। स्वतंत्रता दिवस के बाद अस्पताल में मरीजों की लंबी कतार थी, लेकिन करीब 800 मरीजों का पंजीकरण नहीं हो सका और 200 से अधिक मरीजों की जांचें नहीं हुईं। भर्ती मरीजों का इलाज भी प्रभावित हुआ।
बलरामपुर अस्पताल में भी रेजिडेंट डॉक्टरों ने प्रदर्शन किया। उन्होंने रजिस्ट्रेशन काउंटर बंद कर दिए और जमकर नारेबाजी की। इसके चलते अस्पताल में आने वाले मरीजों को बिना इलाज के लौटना पड़ा। रोजाना 4,000 मरीजों की अपेक्षा केवल 2,780 रजिस्ट्रेशन हो सके और रोजाना 2,000 जांचों के मुकाबले सिर्फ 636 जांचें हुईं। यदि डॉक्टर पूरी तरह से हड़ताल पर जाते हैं, तो अस्पताल प्रशासन और सीनियर डॉक्टर ओपीडी संभाल सकते हैं। लोहिया, केजीएमयू और पीजीआई के रेजिडेंट डॉक्टर्स ने 1090 चैराहे पर प्रदर्शन किया, जिसमें करीब दो हजार रेजिडेंट्स शामिल हुए। उन्होंने ‘हमें न्याय चाहिए’, ‘हमें सुरक्षा दो’ और ‘आरोपियों को फांसी दो’ जैसे नारे लगाए। शीरोज कैफे की एसिड अटैक पीड़िताओं ने भी कैंडल मार्च में शामिल होकर रेजिडेंट डॉक्टर्स का समर्थन किया।
यह भी पढ़ेंः-बेंगलुरू की तरह टैक्स वसूली करेगा नगर निगम, जानें क्यों लिया ये फैसला
डॉक्टर्स ने रखी ये मांगें
डॉक्टर्स ने अपनी मांगों में कोलकाता में हुई घटना की शीघ्र जांच और आरोपियों को फांसी देने की मांग उठाई है। उन्होंने सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट को लागू करने की अपील की है और यह सुनिश्चित करने की मांग की है कि कोलकाता के सभी मेडिकल कॉलेजों में गृह मंत्रालय और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा रेजिडेंट डॉक्टर्स को एक सुरक्षित माहौल प्रदान किया जाए। इसके अलावा जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर डॉक्टर प्रोटेक्शन सेल बनाने की मांग की गई है, जो वहां काम करने वाले डॉक्टरों की सुरक्षा की देखरेख करेगा।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)