भोपालः मध्य प्रदेश में इस माह के अंत में 46 निकायों के चुनाव होने वाले हैं, यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए काफी अहम है, क्योंकि इन चुनाव में दोनों के बीच आदिवासी वोट बैंक को लेकर जोर आजमाइश होना तय है। जिन इलाकों में यह चुनाव होने वाले हैं उनमें से अधिकांश आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं। राज्य में इसी माह 27 सितम्बर को मतदान हेागा और 30 सितंबर को नतीजे आएंगे, जिन स्थानों पर चुनाव होना है, इनमें 17 नगर पालिका और 29 नगर परिषद शामिल है। यह नगर पालिका और नगर परिषद राज्य के 18 जिलों में आते हैं और इनमें से अधिकांश इलाके आदिवासी बाहुल्य हैं।
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भाजपा-कांग्रेस आदिवासी वोट बैंक कर रही दावा
भाजपा और कांग्रेस लगातार आदिवासी वोट बैंक पर अपना प्रभाव होने का दावा करते रहे हैं। वर्ष 2018 में भाजपा को इस वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 30 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी और भाजपा के हाथ में 16 सीटें ही आई थी, वहीं वर्ष 2013 के चुनाव में बीजेपी को 47 में से 31 सीटों पर जीत मिली थी। लिहाजा दोनों दल वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनाव से पहले निकाय के 46 स्थानों पर होने वाले चुनाव में ज्यादा से ज्यादा जीत दर्ज कर यह संदेश देने की कोशिश में है कि उनकी पकड़ आदिवासी वर्ग पर है।
एक तरफ हम देखें तो राज्य में आदिवासी वोट बैंक में पैठ जमाने के लिए भाजपा हर संभव कोशिश कर रही है, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह राज्य के दौरे कर चुके हैं। साथ ही राज्य सरकार इस वर्ग से जुड़े महापुरुषों की याद में अनेक योजनाएं और कार्यक्रम भी कर रही है, दूसरी ओर कांग्रेस भी आदिवासी इलाकों में सक्रियता बढ़ा रही है और इस वर्ग पर होने वाले अत्याचारों को मुद्दा बनाने में लगी हैं।
राजनीतिज्ञों का मानना है कि यह भले ही 46 निकायों में चुनाव हो रहे हों मगर इनकी हार जीत का संदेश बड़ा जाने वाला है। इसी वजह है क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले के यह बड़े चुनाव माने जा सकते हैं, जिनके सहारे जीतने वाला दल अपने को आदिवासी हितैषी बताने का आसानी से दंभ भर सकेगा।
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