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भवानीपुर विधानसभा सीट : अब तक यहां से जीतती रहीं ममता, लेकिन इस बार छोड़ सकती हैं मैदान

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में चुनाव की घोषणा होते ही सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस( टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी बंगाल के गढ़ जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक कर रही है।

राज्य में 294 विधानसभा सीटों में से सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी 250 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही है जबकि भाजपा भी 200 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है। इनमें कोलकाता की वीआईपी भवानीपुर सीट भी शामिल है। वर्ष 2011 में वाम मोर्चा के 33 सालों के शासन को उखाड़ फेंकने के बाद से ममता बनर्जी इस सीट से लगातार जीत दर्ज करती रही हैं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा ने अपनी मजबूत दस्तक दी थी।

बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी के राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री को इस सीट को छोड़कर किसी अन्य सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दी है। मुख्यमंत्री भी घोषणा कर चुकी हैं कि वह नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। साथ उन्होंने भवानीपुर और नंदीग्राम दोनों जगह से चुनाव लड़ने की संभावना जताई है। हालांकि अभी तक न तो भाजपा और न ही टीएमसी ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की है। इसलिए स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है।

टीएमसी सूत्रों के अनुसार इस बार भवानीपुर विधानसभा केंद्र से ममता के बजाय कोई और नेता चुनाव लड़ सकते हैं। मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र होने के कारण इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। खास बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय यहां से भाजपा के उम्मीदवार चंद्र कुमार बोस के पक्ष में करीब 58000 लोगों ने वोटिंग की थी, जबकि टीएमसी की उम्मीदवार माला रॉय को 61000 लोगों ने वोट दिया था। यानी दोनों के बीच केवल 3000 वोटों का अंतर था, जो बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और चुनावी सर्वे बताते हैं कि इस बार भाजपा और मजबूती से चुनावी मैदान में उतर रही है। इसलिए आश्चर्य नहीं होगा अगर यहां से मुख्यमंत्री या टीएमसी के किसी भी दूसरे उम्मीदवार को मात देने में भाजपा सफल हो जाये।

क्या है राजनीतिक तस्वीर

राजधानी कोलकाता के दक्षिण कोलकाता लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले इस विधानसभा में 100 फ़ीसदी मतदाता शहरी हैं। शेड्यूल्ड कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब का रेशियो क्रमशः 2.23 और 0.26 है। क्षेत्र में रहने वाले अधिकतर मतदाता बांग्ला और हिंदी भाषा बोलने वाले हैं तथा देश की आजादी की लड़ाई में आहुति देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस और देशबंधु चितरंजन दास सरीखे क्रांतिकारियों के परिजन भी आसपास ही रहते हैं।

वर्ष 2019 व 2016 के मतदान का आंकड़ा

हाल ही में संपन्न हुए 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान यहां केवल 67.73 फ़ीसदी मतदान हुआ था। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय 269 मतदान केंद्र थे और क्षेत्र में चुनावी हिंसा भी हुई थी। हालांकि उससे पहले 2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं का आंकड़ा और कम 60.83 फ़ीसदी ही रहा। 2016 के विधानसभा चुनाव में इस वीआईपी सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जीत मिली थी। उन्हें 65520 यानी 47.67 फ़ीसदी लोगों ने मतदान किया था।

2011 के विधानसभा चुनाव की तुलना में उनके मत प्रतिशत में 29.72 फ़ीसदी की कमी हुई थी। उनकी प्रतिद्वंदी उम्मीदवार कांग्रेस की दीपा दास मुंशी थीं, जिन्हें 40219 लोगों ने वोट किया था। भाजपा की ओर से चंद्र कुमार बोस उम्मीदवार बने थे, जिन्हें महज 19.13 फ़ीसदी यानी 26299 लोगों ने वोट दिया था।

इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबले के आसार

वैसे तो 2021 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, लेकिन उम्मीद है कि इस बार यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने यहां अपनी मजबूत दावेदारी पेश की थी। लेकिन इस बार माकपा और कांग्रेस गठबंधन में उम्मीदवार उतार रहे हैं। बहुत हद तक संभव है कि इस बार भी दीपा दास मुंशी सरीखे कद्दावर उम्मीदवार को माकपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से मैदान में उतारा जा सकता है। यहां से अगर ममता बनर्जी चुनाव नहीं लड़ती हैं तो टीएमसी की ओर से किसी कैबिनेट मंत्री को टिकट दिए जाने के आसार हैं।

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बताया गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार से संबंध रखने वाले चंद्र कुमार बोस ने इस बार भाजपा से दूरी बना ली है। क्योंकि पार्टी में रहते हुए भी वह सार्वजनिक मंचों से संगठन के कार्यों की निंदा करते रहे। गाहे-बगाहे मीडिया के कैमरों के सामने प्रदेश भाजपा नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ वह लगातार हमलावर रहते थे, जिसके कारण नई कमेटी के गठन के समय ही उन्हें प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी से हटा दिया गया था। इस बार उन्हें टिकट दिए जाने का कोई चांस नहीं है। ऐसे में इस वीआईपी सीट पर भाजपा किसे मैदान में उतारती है इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।