लखनऊ: उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण में जिन दस सीटों पर चुनाव होना है उनमें से आठ सीटें सामान्य और दो सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों के संसदीय इतिहास की बात करें तो 1991 के आम चुनाव के बाद से इन सीटों पर लगातार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दबदबा रहा है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इन दलित बहुल सीटों पर अभी तक बसपा का खाता नहीं खुला है।
भाजपा का मजबूत किला हाथरस
ब्रज क्षेत्र की यह प्रसिद्ध संसदीय सीट 1962 में अस्तित्व में आई। आंकड़े बताते हैं कि अब तक हुए लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) को एक बार भी सफलता नहीं मिली है। सफलता तो छोड़िए, बीजेपी से मुकाबले में भी सपा पिछड़ गई। हर बार बसपा की टक्कर भाजपा से ही रही। कांग्रेस शासन काल में कांग्रेस ने चार बार हाथरस से जीत का परचम लहराया था। एक बार जनता दल ने जीत हासिल की। जबकि रिकार्ड गवाह है कि जिले में अगर किसी पार्टी का सबसे ज्यादा प्रभाव है तो वह एकमात्र भाजपा है। बसपा और सपा अब अपना खाता खोलने को बेताब हैं। 2024 के चुनाव में बीजेपी इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है।
पिछले दो चुनावों की स्थिति
2019 के आम चुनाव में यहां बीजेपी उम्मीदवार राजवीर सिंह दिलेर ने जीत हासिल की थी। राजवीर सिंह को 684,299 (59.43 फीसदी) वोट मिले थे। एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन प्रत्याशी रामजी लाल सुमन 424091 (36.83 फीसदी) वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में बीजेपी ने 260208 वोटों से जीत हासिल की। 2014 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी राजेश कुमार दिवाकर ने कुल 544277 (51.87 फीसदी) वोट पाकर जीत हासिल की थी। बसपा प्रत्याशी मनोज कुमार सोनी 217891 (20.77 प्रतिशत) वोट पाकर उपविजेता रहे। सपा तीसरे स्थान पर खिसक गयी। जीत का अंतर 03 लाख वोटों से ज्यादा था।
हाथरस में बसपा और सपा का खाता नहीं खुला
बीजेपी ने मौजूदा सांसद राजवीर दिलेर का टिकट काटकर अलीगढ़ की खैर विधानसभा से बीजेपी विधायक और राजस्व मंत्री अनूप बाल्मीकि पर भरोसा जताया है। सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने जसवीर वाल्मिकी को हाथरस लोकसभा से प्रत्याशी बनाया है। यह सीट एसपी इंडिया गठबंधन के खाते में है। बसपा ने हेमबाबू धनगर पर दांव लगाया है। 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर भारी वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। 2014 में बीएसपी रनरअप रही थी। 2019 के चुनाव में बीएसपी-एसपी-आरएलडी का गठबंधन था। यह सीट सपा के खाते में थी। इस चुनाव में सपा दूसरे स्थान पर रही।
याद रहे, बीजेपी का दौर साल 1991 से शुरू हुआ था। बीजेपी ने डॉ. लाल बहादुर रावल को मैदान में उतारा और सांसद बने। तब अयोध्या में रामलला हम आएंगे का नारा गूंज रहा था। फिर बीजेपी लगातार लोकसभा चुनाव जीतती रही है। लेकिन क्या सपा या बसपा बीजेपी की किलेबंदी को तोड़ने में कामयाब हो पाएगी? इसका जवाब भी 7 मई को वोटिंग के बाद पता चल जाएगा।
दलितों की राजधानी आगरा में बसपा का खाता नहीं खुला
2009 में परिसीमन के बाद आगरा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई। 19 लाख से ज्यादा वोटरों वाला आगरा लोकसभा क्षेत्र दलितों की राजधानी कहा जाता है। आगरा लोकसभा सीट पर दलित वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके बाद भी बहुजन समाज पार्टी इस सीट से कभी चुनाव नहीं जीत सकी है। 1952 से 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस जीतती रही। 1991 में राम मंदिर लहर में पहली बार बीजेपी का खाता खुला और 1996 और 1998 तक लगातार तीन बार बीजेपी का खाता खुला। इसके बाद हवा फिर बदली और 1999 और 2004 के चुनाव में यहां से सपा को जीत मिली। आगरा सीट 2009 से बीजेपी के कब्जे में है। इस सीट पर हुए कुल 17 चुनावों में से बीजेपी ने 6 चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। 2024 के चुनाव में बीजेपी इस सीट पर लगातार चौथी जीत की तैयारी कर रही है।
पिछले दो चुनावों की स्थिति
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी प्रत्याशी एसपी बघेल ने बसपा प्रत्याशी मनोज कुमार सोनी को हराया था। बघेल को 646,875 (56.46%) वोट मिले थे और मनोज कुमार सोनी को 435,329 (38%) वोट मिले थे। कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। अब अगर साल 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में भी बीजेपी के राम शंकर कठेरिया ने बीएसपी के नारायण सिंह सुमन को हराया था। बीजेपी को 583,716 (54.53%) वोट मिले और बीएसपी को 283,453 (26.48%) वोट मिले। सपा तीसरे स्थान पर रही।
आगरा में बसपा सफल क्यों नहीं?
2009, 2014 और 2019 के चुनाव में बीएसपी ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी। 2009 का चुनाव बीएसपी करीब 10 हजार वोटों से हार गई थी। लेकिन बाद के चुनावों में हार का अंतर बढ़ता गया। इस साल भी बीजेपी ने एसपी सिंह बघेल पर ही भरोसा जताया है। इंडिया गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आई है। सपा ने स्थानीय जूता कारोबारी सुरेश चंद कर्दम को टिकट दिया है। कर्दम ने साल 2000 में यहां से मेयर का चुनाव लड़ा था। उन्हें दूसरा स्थान मिला था। वहीं बीएसपी ने पूजा अमरोही को मैदान में उतारा है। पूजा एक कांग्रेस नेता की बेटी हैं और सामाजिक कार्यों के जरिए राजनीति में आई हैं।
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आगरा लोकसभा सीट पर जाटव वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। इन्हीं वोटों के सहारे कांग्रेस यहां से जीतती रही। लेकिन 1980 के दशक में अपने गठन के बाद से बसपा ने कांग्रेस का दबदबा ख़त्म कर दिया है।