संपादकीय

सनातन जीवन मूल्यों के सर्वोत्तम प्रतीक हैं लोकनायक श्रीराम

Loknayak Shri Ram best symbol of eternal life values

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भारत के सनातन जीवन मूल्यों के सर्वोत्तम प्रतीक हैं। राष्ट्र व राष्ट्रीयता उनके व्यक्तित्व के कण-कण से प्रतिबिंबित होती है। साम्प्रदायिक वैमनस्य के पोषक लोगों की जमात भले ही उनपर केवल हिन्दू धर्मावलम्बियों का आराध्य होने का तमगा लगाये, किन्तु साम्प्रदायिकता के इस चश्मे को दरकिनार कर यदि ईमानदारी से उनके चारित्रिक गुणों का विश्लेषण किया जाए, तो साफतौर पर स्पष्ट हो जाएगा कि श्रीराम न केवल इस देश के बहुसंख्यक आबादी के इष्ट व आराध्य हैं, अपितु सही मायने में इस देश के संस्कृति पुरुष हैं। उनकी जीवनगाथा मानव जीवन की सर्वोत्कृष्ट आचार संहिता है। यही कारण है कि रामनवमी पर्व के रूप में भारतवासी प्रभु श्रीराम का प्राकट्य उत्सव युगों-युगों से हर्षोल्लास से मनाते चले आ रहे हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति आस्था रखने वाले लोगों की संख्या इतने युग बीत जाने के बाद भी कम नहीं हुई है और न ही उनकी मान्यता में कोई कमी आई है। यदि इसके कारणों पर विचार करें तो यह पता चलता है कि श्रीराम का जीवन कुछ इस तरह भारत के जन-जन के हृदय पटल पर अंकित हो गया है कि उसे काल की कोई अवधि मिटा नहीं सकती। इसीलिए देशवासी श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहते हैं। उन्होंने मर्यादा पालन का जो उच्चतम आदर्श मानव समाज के समक्ष प्रस्तुत किया, वैसा कोई दूसरा उदाहरण मानव इतिहास में दूसरा नहीं मिलता।

भगवान श्रीराम जन-जन के नायक हैं। उन्होंने पापियों के भय से त्रस्त जन समूह को एकत्रित कर ही बुराई का अंत किया और राम राज्य को स्थापित किया। राजकुमार राम से लोकनायक राम बनकर उभरने की यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव श्रीराम का वनवास काल माना जाता है। 14 वर्ष के वन प्रवास में श्रीराम के जीवन में बहुत कुछ ऐसा घटा, जिसने उन्हें लोकनायक राम के रूप में रूपांतरित कर दिया। इसीलिए भारतीय मनीषा कहती है कि राम ‘वन’ (जंगल) गए तो ‘बन’ (मर्यादा पुरुषोत्तम) गये अन्यथा उनकी गौरवगाथा अयोध्या के राजा राम तक ही सीमित रह जाती। भगवान श्रीराम के वनवास जीवन का बारीकी से अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि उनको दैवीय शक्ति प्राप्ति थी। वे चाहते तो एक इशारे में कुछ भी कर सकते थे, लेकिन अपने सुदीर्ध वन प्रवास में अपने प्रेमपूर्ण मर्यादित व्यवहार से तपस्वी ऋषि-मुनि हों या सामान्य वनवासी, उन्होंने सभी से अत्यंत आत्मीय सम्बन्ध बनाकर एक आदर्श मानवीय आचार संहिता लोक के समक्ष स्थापित की। वनवासी राम की व्यवस्था सबको आगे बढ़ने की प्रेरणा और ताकत देती है। वे अत्यंत कुशल प्रबंधक हैं। उनमें संगठन की अद्भुत क्षमता है। हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, नल, नील सभी को समय-समय पर नेतृत्व का अधिकार उन्होंने दिया। जब दोनों भाई अयोध्या से चले तो महज तीन लोग थे, किन्तु जब लौटे तो पूरी सेना के साथ एक साम्राज्य का निर्माण कर। उनका सम्पूर्ण वन्य जीवन उनके नैतिकता से युक्त अलौकिक व्यक्तित्व और उदात्त बनाता है। वनवासकाल में श्रीराम ने उत्तर से दक्षिण तक संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधा। श्रीराम सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। केवट से लेकर शबरी, जामवंत, सुग्रीव, ऋषि-मुनि सभी के बीच रहे। सबके बीच रहकर मानव मूल्यों का निर्माण किया। जनमानस में कोई भेदभाव नहीं किया। सर्वप्रथम राज्य की प्रजा का ध्यान रखा। श्रीराम के लोकनायक चरित्र ने जाति, धर्म और संप्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया। यही वजह है कि केवल भारत में ही नहीं वे पूरी दुनिया में आदर्श पुरुष के रूप में पूजनीय हैं।

पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा राम वन पथ 

देश के जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े 290 ऐसे स्थानों का पता लगाया है, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की गयी है। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं, जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है। श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के पास स्थित रावण गुफा व झरना, अशोक वाटिका तथा खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि हुई है। हर्ष का विषय है कि भारत सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर राम वन पथ के जुड़े इन स्थलों की पहचान कर इन्हें राम वनगमन पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनायी है।

इन चिह्नित स्थलों में उत्तर प्रदेश के पांच (अयोध्या के निकट तमसा तट, प्रयाग के पास सिंगरौर -श्रृंगवेरपुर, संगम तट, गंगा पार कुरई व यमुना पार चित्रकूट), मध्य प्रदेश के तीन (चित्रकूट, सतना व शहडोल -अमरकंटक), छत्तीसगढ़ के दो (सीतामढ़ी हरचौका व चंदखुरी), महराष्ट्र के तीन (पंचवटी, नासिक  व मृगव्याधेश्वरम), आंध्र प्रदेश के दो (भद्राचलम व खम्माम), केरल का एक( शबरी आश्रम), कर्नाटक का एक (ऋष्यमूक पर्वत), तमिलनाडु के दो (कोडीकरई व रामेश्वरम) और श्रीलंका का एक स्थल (नुवारा एलिया की पहाड़ियां) शामिल है। सत्य, सौहार्द, दया, करुणा, मैत्री, त्याग, आस्था, आदर्श, तप और मर्यादा के महानतम प्रतीक के रूप में भगवान श्रीराम पुरातनकाल से ही दुनिया के अनेक देशों में पूर्ण प्रमाणिकता के साथ जीवंत हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के देश थाईलैण्ड, वियतनाम, इण्डोनेशिया, कम्बोडिया और कैरेबियन देश वेस्टइंडीज, सूरीनाम व मॉरिशस में रामायण और श्रीराम से संबंधित अनेक प्रसंग जीवंत हैं।

मध्य पूर्व ईराक, सीरिया, मिश्र सहित यूरोप इंग्लैड, बेल्जियम और मध्य अमेरिका के होण्डुरास सहित शेष विश्व के कई देशों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का समग्र रूप मौजूद है। ईरान-इराक की सीमा पर स्थित बेलुला में लगभग 4,000 वर्ष प्राचीन श्रीराम से संबंधित गुफा के चित्र मिले हैं। वहीं, मिस्र में 1,500 वर्ष पूर्व राजाओं के नाम तथा कहानियां ‘राम’ की भांति ही मिलती हैं। इटली में पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व रामायण से मिलते-जुलते चित्र दीवारों पर मिलते हैं। प्राचीन इटली की एट्रस्कैन सभ्यता कला में रामायण सातवीं शताब्दी ई.पूर्व से प्रारम्भ होकर चौथी शताब्दी तक एट्रस्कैन सभ्यता मध्य इटली रोम से पश्चिम तक टस्कनी आदि राज्यों तक फैलाव रहा। इस सभ्यता की समानता रामायण संस्कृति से बहुत मिलती है। इटली में प्राप्त इन चित्रों में राम, लक्ष्मण व सीताजी का वन गमन, सीताहरण, लव-कुश का घोड़ा पकड़ना, हनुमानजी का संजीवनी लाना आदि प्रमुख हैं। प्राचीन इटली में ‘रावन्ना’ क्षेत्र मिलता है, जो रावण की कथा के समान है। यहां कुछ कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं, जिनमें स्वर्ण मृग, मारीच, सीताहरण की कथा बिल्कुल समान है। आकाशमार्ग से उड़ते हुए घोड़ों के साथ चित्र में जटायु का प्रसंग भी मिलता है। इसके अलावा ब्रिटेन, फिलीपींस, कम्बोडिया और पाकिस्तान आदि देशों में भी श्रीराम की संस्कृति के साक्ष्य मौजूद हैं। विद्वानों का मत है कि श्रीराम की सांस्कृतिक विविधता के तथ्यों के अनगिनत प्रमाण हैं, जिनमें अन्वेषण की अपार सम्भावनाएं हैं।

राम नाम का अद्भुत तत्वज्ञान 

समय के प्रवाह में हमारे देश ने अनेक झंझावात झेले, विपदाएं सहीं, भाषा पंरपरा और यहां तक कि अपनी भूमि भी खोई, लेकिन एक नाम जो सनातनी भारतीयों के मन से कभी विस्मृत नहीं हुआ, वह है ‘राम’। सनातनधर्मियों के बीच अभिवादन व प्रणाम के हर रूप में ‘राम-राम’ का प्रचलन यूं ही नहीं है। इसके पीछे हमारे ऋषियों का गूढ़ ज्ञान विज्ञान निहित है। अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार राम अर्थात र+अ+म। हिंदी वर्णमाला में र अक्षर 27 नंबर, आ अक्षर 02 नंबर और म अक्षर 25 नंबर पर आता है। इन तीनों अक्षरों का योग 54 है और दो बार राम कहने से ये योग 108 हो जाता है। इस तरह कोई व्यक्ति राम-राम कहता है, तो वह बिना किसी यत्न के राम नाम का एक माला जाप कर लेता है। इसीलिए भारतीय मनीषा ने ‘राम’ को इस राष्ट्र का प्राण तत्व माना है। भारत की महान ऋषि मनीषा राम तत्व की आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए कहती हैं कि राम का अर्थ है स्वयं के अंतस का प्रकाश, स्वयं के भीतर की ज्योति। गायत्री महाविद्या के महामनीषी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार "राम" शब्द का एक पर्यायवाची है "रवि"। इस रवि शब्द में ‘र’ का अर्थ है- प्रकाश और "वि" का अर्थ है विशेष। इसका अर्थ है हमारे भीतर का शाश्वत प्रकाश। हमारे ह्रदय का प्रकाश ही राम है, जो हर्ष और विषाद दोनों ही अवस्थाओं में व्यक्ति के अंतस को प्रकाशमान रखता है। शास्त्रज्ञ कहते हैं कि काशी में देह त्यागने वाले को मोक्ष प्रदान करने वाले देवाधिदेव महादेव सदा इसी राम नाम का जप किया करते हैं, इसीलिए राम नाम को ‘तारक मंत्र’ कहा जाता है। यही वजह है कि सनातन हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा जीवन की अंतिम यात्रा के समय ‘राम नाम सत्य है’ का उदघोष किया जाता है।   

प्रभु राम का सूर्य तिलक अभिषेक और रामनवमी मेले की पुरातन परम्परा 

अयोध्या का राम मंदिर वास्तुशिल्प का एक नायाब उदाहरण है। इस मंदिर के निर्माण में परंपरा और विज्ञान दोनों को स्थान दिया गया है। इस भव्य मंदिर में प्रतिवर्ष रामनवमी पर्व पर भगवान राम को 'सूर्य तिलक' करने की व्यवस्था वैज्ञानिकों की मदद से की गयी है। काबिलेगौर हो कि सनातन धर्म में प्रत्येक शुभ अवसर पर माथे पर तिलक लगाने की बहुत प्राचीन परंपरा है। मान्यता है कि माथे पर तिलक लगाने से सकारात्मकता ऊर्जा आती है। मंदिर में मौजूद भगवान श्रीराम की प्रतिमा पर सूर्य तिलक के लिए राम नवमी का दिन ही चुना गया है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम का प्राकट्य हुआ था। पुरातन परंपरा को आधुनिक विज्ञान से जोड़ने वाले इस 'सूर्य तिलक' यंत्र को   सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सरोज कुमार पाणिग्रही के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा बनाया गया है।

इस प्रक्रिया के बारे में वैज्ञानिक पाणिग्रही का कहना है कि मंदिर के गर्भगृह में सूर्य की किरण को निर्देशित करने के लिए लेंस और दर्पण की एक परिष्कृत व्यवस्था का उपयोग किया जाएगा, जो इसे "सूर्य तिलक" के रूप में रामलला के माथे पर परिवर्तित कर देगी। इसके लिए मंदिर की तीसरी मंजिल पर एक ऑप्टोमेकेनिकल सिस्टम बनाया गया है, जिसके तहत मंदिर के ऊपर उच्च गुणवत्ता वाले शीशे और लेंस को लगाया गया है। इन दोनों को इस क्रम में सेट किया गया है कि इन पर पड़ने वाली सूरज की किरणों को सीधे प्रथम तल पर विराजमान भगवान श्रीराम के प्रतिमा के माथे तक पहुंचाया जा सकेगा। इस सिस्टम की एक खास बात यह भी है कि चूंकि पर्व की तारीख बदलती रहती है, ऐसे में इसे पीतल की प्लेट की मदद से सेट किया जा सकेगा, जिससे तिथि बदलने पर भी श्रीराम का तिलक हो सकेगा। बताते चलें कि, प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में रामनवमी का पर्व अपार श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

इस पर्व के दौरान अयोध्या नगरी का श्रृंगार दुल्हन की तरह किया जाता है। ज्ञात हो कि राम जन्मोत्सव का यह उत्सव अयोध्या में नौ दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान मंदिरों में भगवान राम के जन्मोत्सव पर बधाई गीत और कीर्तन गाने की सैकड़ों वर्षों पुरानी प्रथा को अयोध्या के लोग आज भी उसी प्रकार से जीवित रखे हुए हैं। चैत्र नवरात्र प्रारंभ होते ही अयोध्या में सैकड़ों मंदिरों में भगवान राम का भजन, कीर्तन और कथाओं का आयोजन किया जाता है। चैत्र प्रतिपदा से शुरू होकर रामनवमी तक चलने वाले इस उत्सव में अयोध्या के मंदिरों में श्रीराम जन्मोत्सव मनाने के लिए दूर-दराज के इलाकों से आए लाखों श्रद्धालु शामिल होकर पुण्य प्राप्ति के भागीदार बनते हैं। रामलला के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास बताते हैं कि त्रेता युग में भगवान राम के जन्मोत्सव में जिस तरह से पूरी अयोध्या हर्षोल्लास में डूब गयी थी, ठीक उसी तरह से धर्म नगरी अयोध्या में आज भी चैत्र मास की नवमी के दिन भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

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इस अक्सर पर समूची अयोध्या नगरी इस दिन पूरी तरह राममय नजर आती है। जहां एक ओर हर तरफ भजन-कीर्तन तथा अखण्ड रामायण के पाठ की गूंज सुनाई पड़ती है, वहीं दूसरी ओर जगह-जगह हवन, व्रत, उपवास, यज्ञ, दान-पुण्य आदि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों की धूम दिखाई देती है। इस पर्व पर लाखों श्रद्धालु रामनगरी के प्रमुख मंदिरों में दर्शन पूजन करते हैं। यही नहीं इस अवसर पर इस पुण्य तीर्थ की पावन परिक्रमा की सदियों साल पुरानी परंपरा आज भी कायम है। तत्ववेत्ताओं की मानें तो इस धर्मनगरी की परिक्रमा से न सिर्फ इस जन्म के बल्कि कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसी मान्यता के चलते देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में पवित्र नदी सरयू में स्नान करने के बाद बच्चे, बूढ़े और युवा सभी भक्तिभाव के साथ श्रीराम का जयघोष करते हुए इस तीर्थ की पंचकोसी व चौदह कोसी परिक्रमा भी करते हैं।   

 पूनम नेगी

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