नई दिल्ली: कोरोना जैसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति में कोर्ट किस हद तक जाकर आदेश पास कर सकते हैं, इस बड़े सवाल पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे संकट के वक्त सामूहिक प्रयास की ज़रूरत है, लेकिन हमें सीमाओं का भी ध्यान रखना होगा। कोर्ट 12 अगस्त को सुनवाई करेगा।
दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 17 मई के उस आदेश को चुनौती दी है। जिसमें कोर्ट ने राज्य में मौजूद हर गांव को एक महीने में आईसीयू सुविधा वाली दो एम्बुलेंस और सभी नर्सिंग होम में ऑक्सीजन की सुविधा करने को कहा था। हालांकि इस आदेश को अव्यवहारिक मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 21 मई को रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि हाई कोर्ट के आदेश को सलाह की तरह लेकर काम करने की कोशिश करें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई जारी रहेगी। हाई कोर्ट को ऐसे मामलों के ऊपर निर्देश जारी नहीं करना चाहिए जिन मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मांग की थी कि कोरोना से संबंधित मामलों की सुनवाई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस की बेंच ही करे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई भी आदेश देने से इनकार कर दिया।
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सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि एक महीने में 97 हजार गांवों के लिए दो एंबुलेंस देना समेत दूसरे आदेश भले ही अच्छे मकसद से दिए गए हों, पर ये अव्यवहारिक हैं। राज्य सरकार ने कहा था कि हाई कोर्ट ने गांव की चिकित्सा सुविधा राम भरोसे जैसी टिप्पणी से डॉक्टर और पैरामेडिकल कर्मचारी जो लगातार काम कर रहे हैं हताश होते हैं। राज्य सरकार ने कहा था कि हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, हम उसको लेकर कदम उठा रहे हैं।