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जनता दरबार के जरिए खोई जमीन तलाशने में जुटे सीएम नीतीश 

Nitish organized 'Janata Darbar', listened to the problems of the people

पटनाः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जनता दरबार एक बार फिर चर्चा में है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में राजग को बहुमत मिलने के बाद करीब पांच साल के अंतराल पर सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता दरबार लगाया, जिसमें फरियादियों ने अपनी समस्याएं रखीं। वैसे, पिछले जनता दरबार की तुलना में यह जनता दरबार कई मायने में अलग दिखा, इस कारण चर्चा प्रारंभ हो गई। कहा जा रहा है कि पिछले चुनाव में राज्य में जनता दल (युनाइटेड) के तीसरी नंबर की पार्टी बनने के बाद नीतीश जनता दरबार के जरिए फिर से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटे हैं। सोमवार को लगे जनता दरबार में मुख्यमंत्री ने कई विभागों की समस्याएं सुनी और तत्काल इसके समाधन को लेकर अधिकारियों को निर्देशित किया। पांच साल बाद मुख्यमंत्री को फिर से जनता दरबार लगाए जाने पर सवाल भी उठाए जाने जगे हैं कि आखिर क्या कारण है कि नीतीश को फिर से जनता दरबार लगाना पड़ रहा है।

बिहार कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़ कहते हैं कि मुख्यमंत्री जनता दरबार के माध्यम से बिहार की भोली-भाली जनता को ठगने का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2005 में सरकार बनने के बाद से लेकर 2015 तक लगातार जनता दरबार का आयोजन करने वाले नीतीश कुमार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जनता दरबार में अब तक कितने आवेदनकर्ता आए, कितने फरियादियों को न्याय मिला और कितने मामले अब तक निष्पादित हुए।

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राठौड़ ने कहा कि नीतीश कुमार जनता दरबार लगाकर केवल लोकप्रियता प्राप्त करने की जुगत भीड़ा रहे हैं। जनता दरबार की जगह उन्हें जनता के दरबार में जाना चाहिए न कि जनता को अपने दरबार में बुलाना चाहिए। 2016 में जनता दरबार बंद करने वाले मुख्यमंत्री अपनी गिरती लोकप्रियता को बचाने के लिए 2021 में फिर से जनता दरबार का ढोंग शुरू किए हैं। इधर, जदयू के प्रवक्ता और विधान पार्षद नीरज कुमार कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहचान अलग प्रकार की राजनीति रही है। वे राजनीति के साथ समाज सुधार को भी प्राथमिकता में रखते हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने लोगों से सीधे संवाद के लिए कई कार्यक्रम प्रारंभ किए। जनता दरबार के जरिए मुख्यमंत्री एकबार फिर लोगों से सीधा संवाद प्रारंभ कर रहे हैं।