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हापुस को मिला सोने का भाव

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आम को फलों का राजा कहा जाता है। अगर वह आम हापुस हो तो बात ही कुछ और हो जाती है। अगर यह कहा जाए कि हापुस आम को सोने का भाव मिला तो बहुत से लोगों को हैरानी होगी। माना कि हापुस आम सबसे महंगे आम की वैराइटी में शामिल है, लेकिन 5 दर्जन हापुस आम के लिए 1 लाख रूपए से ज्यादा खर्च करने पड़े तो इसे क्या कहा जाए, यानि एक आम का दाम 1600 रूपए से भी ज्यादा होगा। राजापुर के बाबू अवसरे नामक किसान के पांच दर्जन हापूस आम की पेटी को 1 लाख, 8 हजार रूपए का भाव मिला है। कोकण के हापुस आम की विश्वभर में मांग रहती है। हापुस को विश्व में बाजार उपलब्ध कराने के लिए किसानों को अधिकाधिक स्वावलंबी बनाने के लिए ग्लोबल कोकण तथा 'मायको' के माध्यम से देश में पहिली बार डिजिटल मंच के माध्यम से हापुस आम को वैश्विक बाजार प्राप्त हुआ है।

कोकण के 10 हापुस आम बागायतदार मुहूर्ता पर आम की पेटी की नीलामी का कार्यक्रम पहले ही मुंबई में हुई है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तथा विधान परिषद में विरोधी पक्षनेता प्रवीण दरेकर ने किसानों को मुहूर्त की पेटियों में हर पेटी को 25 हजार रुपए देकर खरीदा। राजेश अथायडे ने 1 लाख, 08 हजार का सवार्धिक दर दिया। इस निलामी में कुल तीन लाख, दस हजार रुपए की धनराशि जमा हुई। इस कार्यक्रम में शामिल हुए किसानों में से हर किसान को 31 हजार रुपए के आधार पर बराबर-बराबर धनराशि दी जाने वाली है।

राजश्री यादवराव, सुप्रिया मराठे तथा सुनैना रावराणे इन तीन महिला उद्योगिकाओं ने एक साथ मिलकर कोकण के 100 किसानों को संगठित किया और उन्होंने पके हुए हापुस का ब्रैंड बाजार में लान के लिए 'मायको' मंच का निर्माण किया है। प्लॅटफॉर्म के माध्यम से प्राकृतिक रुप में खेत के असली हापूस आम ग्राहकों को अब घर में ही मिलेगा। विशेष क्यू आर कोड के माध्यम से ग्राह हापुस आम का पौधा किसी भी खेत में कहां की गई। इसके लिए किसानों ने परिश्रम कैसे किया की जानकारी देने के साथ-साथ हापुस आम के बाग कैसे तैयार किया जाए, इसकी जानकारी भी वीडियो के माध्यम से दी गई।

एक तरफ हापुस को सोने का भाव मिला तो दूसरी ओर नासिक के प्याज उत्पादकों को दो हजार करोड़ रूपये का नुकसान हुआ है। प्याज उत्पादन तथा निर्यात के बारे में योग्य नीति न अपनाने के कारण प्याज उत्पादकों को भारी परेशानी उठानी पड़ी है। निर्यात नीति को लेकर अपनायी गई उदसीनता के कारण नासिक के प्याज उत्पादकों के समक्ष आर्थिक संकट उपन्न हो गया है। अक्टूबर में लाल प्याज का भाव 4000-4800 रूपए प्रति क्विंटल तक पहुंचा था। लेकिन आज की तारीख में यही प्याज का भाव 1200-1300 रूपए प्रति क्विंटल बोला जा रहा है। लासलगांव में नवंबर से मार्च की अब तक की कालावधि में ग्रीष्मकालीन प्याज के लिए 82 करोड़ से अधिक तो लाल प्याज को 297 करोड़ से अधिक इन दोनों को मिलाकर 380 करोड़ रूपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर हापुस को विदेशी बाजार उपलब्ध कराने के लिए होड़ मची है तो दूसरी ओर एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी जो नासिक जिले लासलगांव तहसील में स्थित है। वहां के प्याज उत्पादक किसानों के साथ-साथ नासिक के किसानों के समक्ष आर्थिक संकट गहरा गया है। केंद्र सरकार ने भले ही प्याज के निर्यात पर किसी तरह की रोक नहीं लगायी है, फिर भी प्याज को बेहद कम भाव मिलने से रोना आता है।

निर्यात विषयक कोई कड़ा नियम न बनाए जाने की वजह से पाकिस्तान ने प्याज निर्यात में अच्छी पैठ बनायी है। पाकिस्तान के प्याज को महाराष्ट्र में बाजार मिल रहा है और स्थानीय प्याज उत्पादकों को औने-पौने भाव में प्याज बेचने पड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में पाकिस्तानी प्याज को वैश्विक बाजार में स्थान नहीं मिलेगा, उसके बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय प्याज को अप्रैल से जून माह में अच्छा बार मिलेगा। अनुमान तो यह भी लगाया जा रहा है कि किसानों को प्रति किलो प्याज का भाव 20 से 22 रूपए मिलेगा।

हापुस तथा प्याज दोनों के भाव में जमीन आसमान का अंतर है। हापुस आम के उत्पादकों को सोन का भाव मिल रहा तो प्याज उत्पादकों को प्याज का भाव देखकर रोना आ रहा है। एक तरफ सोना पाने जाने जैसी अनुभूति तो दूसरी प्याज काटने पर निकलने वाले आसूं जैसा एहसास, ऐसे में किसानों के बारे में अगर यह कहा जाए कि अपनी-अपनी किस्मत है कोई हंसे कोई रोए। हापुस उत्पादक सोने जैसा भाव पा रहे तो प्याज उत्पादक प्याज को मिल रहे भाव को देखकर ही रो रहे हैं। आम का सीजन अप्रैल माह में आमतौर पर शुरु हो जाता है। अक्षय तृतीय के दिन से आम खाने की शुरुआत होती है, ऐसे में इस वर्ष जो लोग मुर्हूत देखकर आम खाते हैं, उन्हें अक्षय तृतीया तक का इंतज़ार करना होगा। वैसे जो आम खाने के शैकीन हैं, उनका कहना है कि हमें मुर्हूत से कोई लेना-देना नहीं है।

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आम को फलों का राजा कहा जाता है और उसमें भी हापुस आम की बात ही कुछ ओर हैं। इस आम की बराबरी दूसरी प्रजाति का आम नहीं कर सकता। जिस तरह से उत्तर प्रदेश में दशहरी आम सबसे ज्यादा किया जाता है, उसी तरह महाराष्ट्र में हापुस आम बड़े चाव से खाया जाता है। हालांकि हापुस की आम की तुलना में दशहरी आम बहुत सस्ता होता है, इसलिए दशहरी आम को हापुसे के मुकाबले खड़ा नहीं किया जा सकता और यह भी सच है कि पांच किलो दशहरी आम को एक लाख रूपए का भाव कभी नहीं मिलेगा। हापुस तो हापुस है, उसकी तुलना किसी अन्य आम से की ही नहीं जा सकती। हापुस को शुरुआती दौर में मिली तेजी यह बात रही है कि इस वर्ष हापुस आम का स्वाद सिर्फ चंग लोगों को ही मिल पाएगा।

सुधीर जोशी (महाराष्ट्र)