Arvind Kejriwal Arrest, नई दिल्लीः दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में राउज एवेन्यू कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को तीन दिन की सीबीआई रिमांड पर भेज दिया है। हालांकि, सीबीआई ने पांच दिन की हिरासत की मांग की थी।
29 जून को होगी सुनाई
इस मामले में अगली सुनवाई 29 जून को तय की गई है। बता दें कि केजरीवाल को सीबीआई ने बुधवार सुबह तिहाड़ जेल से गिरफ्तार किया था। इसके बाद उन्हें राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया गया, जहां सुनवाई के दौरान सीबीआई ने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल न सिर्फ नई आबकारी नीति को मंजूरी देने वाली कैबिनेट का हिस्सा थे, बल्कि इस घोटाले में उनकी अहम भूमिका भी थी।
सीबीआई ने कहा कि वे केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को आमने-सामने लाकर पूछताछ करना चाहते हैं, जिसके चलते उनकी हिरासत जरूरी है। इसके अलावा सीबीआई ने दावा किया कि जांच जारी है, जुलाई तक पूरी हो जाएगी। वहीं, सीबीआई ने दावा किया कि केजरीवाल ने हर बात के लिए मनीष सिसोदिया को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन केजरीवाल ने कोर्ट में कहा कि उन्होंने सिसोदिया को निर्दोष बताया है। उन्होंने इस मामले में सिसोदिया पर किसी तरह का कोई आरोप नहीं लगाया।
सीबीआई ने बुधवार को केजरीवाल को किया गिरफ्तार
सीबीआई ने बुधवार सुबह अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया, जिसके बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां उनका शुगर लेवल अचानक कम हो गया, जिसके बाद उन्हें अलग कमरे में ले जाकर चाय और बिस्किट खिलाए गए। उधर, पति अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर मिलने के बाद सुनीता केजरीवाल कोर्ट पहुंचीं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा, “अरविंद केजरीवाल को 20 जून को जमानत मिल गई थी।
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इसके बाद ईडी ने तुरंत रोक लगा दी। अगले ही दिन सीबीआई ने उन्हें आरोपी बना दिया। आज उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पूरा सिस्टम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि वह आदमी जेल से बाहर न आए। यह कानून नहीं है। यह तानाशाही है, यह आपातकाल है।”
निचली अदालत से मिल गई थी जमानत
बता दें, इससे पहले अरविंद केजरीवाल को निचली अदालत से जमानत मिल गई थी, लेकिन ईडी ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने केजरीवाल को दी गई जमानत पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं, कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर भी सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा था कि फैसला देते समय कोर्ट ने मामले से जुड़े दस्तावेजों का ठीक से अध्ययन नहीं किया।