Saturday, December 14, 2024
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इस प्राचीन गांव में है देश की आखिरी सड़क, कभी कहा जाता था इस गांव को भुतहा

लखनऊ : भारत विविधताओं का देश है। यहां आपको कई हैरतअंगेज चीजें देखने और सुनने को मिलेंगी। देश की सबसे लंबी सड़क के बारे में तो आप जानते होंगे, लेकिन क्या आपको ये पता है कि देश की आखिरी सड़क कौन सी है? अगर आपको नहीं पता है तो हम आपको बताते हैं। तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक गांव है, धनुषकोडी (Dhanushkodi), जहां की सड़क को देश की आखिरी सड़क कहा जाता है।

रामेश्वरम से 15 किलोमीटर दूर इस गांव से श्रीलंका की दूरी सिर्फ 24 किलोमीटर है। इतना ही नहीं, धनुषकोडी (Dhanushkodi) को दुनिया का सबसे छोटा स्थान भी माना जाता है, क्योंकि ये भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है, जो पाक जलसंधि में रेत के टीले पर मौजूद है। इसकी लंबाई केवल 50 गज है, इसी वजह से इसे दुनिया के सबसे छोटे स्थलों में गिना जाता है।

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धनुषकोडी (Dhanushkodi) का संबंध रामायणकाल से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि यही वो जगह है, जहां भगवान श्रीराम ने राम सेतु का निर्माण किया था, जिसका एक छोर यहां है, तो दूसरा श्रीलंका में। यहीं पर श्रीराम ने सीता को लंका से वापस लाकर विभीषण के कहने पर अपने धनुष के एक छोर से इस सेतु को तोड़ दिया था, जिस कारण इस जगह का नाम धनुषकोडी पड़ा।

बात केवल इतनी ही नहीं है, आपको जानकर हैरानी होगी कि देश की आखिरी सड़क होने के बावजूद और रामेश्वरम से केवल 15 किलोमीटर दूर ये पौराणिक स्थल आज गुमनामी के अंधेरे में क्यों गुम है?

साल 1964 के दिसंबर महीने से पहले ये गांव लोगों से आबाद था। यहां रेलवे स्टेशन, अस्पताल, चर्च, पोस्ट आफिस और सरकारी आफिस भी थे, लेकिन आज यहां सिर्फ इनके खंडहर ही बचे हुए हैं। देश की आखिरी सड़क वाले इस पौराणिक गांव को भुतहा गांव भी कहा जाने लगा था।

दरअसल, 22 दिसंबर 1964 की रात में एक भयानक समुद्री तूफान ने इस गांव को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। उस समय यहां के स्टेशन पर मौजूद ट्रेन में 115 लोग सवार थे, जो इस तूफान के चपेट में आ गए और पूरी ट्रेन समुद्र में डूब गई। स्टेशन की पटरियां टूट गईं, जो समय के साथ बालू की टीलों में ढक गईं हैं। कहा जाता है कि ये तूफान इतना भयंकर था कि इसकी चपेट में आने से पूरा गांव नष्ट हो गया, जिसकी निशानी आज भी यहां देखी जा सकती है। यहां पंबन ब्रिज आज भी अपने 1964 की हालत में मौजूद है।

इस हादसे के बाद ये गांव दोबारा नहीं बस पाया। आज यहां के खंडहर यहां आने वाले अजनबियों को उस अनहोनी की कहानी कहते हैं। हालांकि धनुषकोडी में मछुआरे मछली पकड़ने आते हैं और अपना जीवनयापन करते हैं। ये गांव शाम पांच बजे तक ही आम लोगों के लिए खुला रहता है और शाम पांच बजे के बाद पर्यटक रामेश्वरम लौट जाते हैं।

सरकार ने बस स्टैंड के पास उस हादसे में जान गंवाने वालों की याद में एक स्मारक बनवाया है, जिस पर लिखा है, उच्च गति और उच्च ज्वारीय हवाओं के लहरों के साथ एक तूफानी चक्रवात ने धनुषकोडी को 22 दिसंबर 1964 की आधी रात से 25 दिसंबर 1965 की शाम तक तहस नहस कर दिया, जिससे भारी नुकसान हुआ और धनुषकोडी का पूरा शहर बर्बाद हो गया।

हालांकि, पिछले 58 सालों में धनुषकोडी काफी बदल चुका है। आज धनुषकोडी पर्यटक स्थल के रूप में उभर रहा है। भारत के आखिरी सड़क और समुद्र को देखने यहां दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। पर्यटकों की सुविधाओं के लिये यहां होम स्टे और फूड स्टाल मिल जाएंगे। सरकार भी धनुषकोडी को संवारने में प्रयासरत है। प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी ने 2016 में रामेश्वरम से धनुषकोडी को जोड़ने वाली नई सड़क का लोकार्पण किया था। रामेश्वरम से धनुषकोडी टैक्सी या बस से पहुंचा जा सकता है।

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