देहरादूनः असम में हिमंत बिस्वा सरमा पर भाजपा हाईकमान के विश्वास ने उत्तराखंड में कांग्रेस पृष्ठभूमि के उन दिग्गजों में नई आस जगा दी है, जो कभी न कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने का ख्वाब सँजोये हुए हैं। इस क्रम में सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा और डॉ.हरक सिंह रावत का नाम सबसे प्रमुख तौर पर लिया जा सकता है। असम की ताजा तस्वीर के बाद जाहिर तौर पर इन दिग्गज नेताओं की कोशिश होगी कि वे 2022 के चुनाव में अपनी ताकत को बीजेपी हाईकमान के सामने साबित करके दिखाएं।
बीजेपी ने हाल के कुछ सालों में पूरे देश की तरह उत्तराखंड में भी कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपने पाले में खींचने में सफलता पाई है। इसकी महत्वपूर्ण शुरुआत 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जबकि सतपाल महाराज जैसे दिग्गज ने पार्टी की सदस्यता ले ली थी। इसके बाद 2016 तो असाधारण ही रहा था। हरीश रावत सरकार से विद्रोह करके कांग्रेस के 9 विधायक-मंत्री बीजेपी में शामिल हो गए थे। इस विद्रोह के अगुवा पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत बने थे। 2017 में बीजेपी की प्रचंड बहुमत की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री की दौड़ में सतपाल महाराज प्रमुख रूप से शामिल रहे। केंद्र सरकार में रेल राज्यमंत्री रहे महाराज ने जब चोबट्टाखाल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, तब ही यह साफ हो गया था कि महाराज केवल विधायक बनने के लिए ही पसीना नही बहा रहे। मगर जब वक्त आया तो प्रचंड बहुमत की सरकार की कमान संघ ने अपने प्रचारक रहे त्रिवेंद सिंह रावत को सौंपना ज्यादा सही समझा। अप्रत्याशित ढंग से महाराज ने जब सरकार में मंत्री पद स्वीकार लिया, तो तब भी ये ही माना गया कि वह उत्तराखंड की सियासत में ही बने रहकर मुख्यमंत्री की कुर्सी के रास्ते के अवरोध हटाएंगे। दो महीने पहले बीजेपी ने सरकार का मुखिया तीरथ सिंह रावत को बनाया, तो इससे पहले महाराज के नाम की चर्चा तो हुई, मगर उनके हाथ खाली ही रह गए। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी बीजेपी के भरोसे की कसौटी पर खरे नही उतर पाए हैं। ये ही कारण है कि उन्हें राज्यसभा भेजने या किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाने की चर्चा होती रही, मगर उनकी नैया पार नही हो पाई। बहुगुणा इस बात पर कब तक संतोष मनाते रहें कि उनके कोटे की सितारगंज सीट पर उनके बेटे सौरभ को टिकट दिया गया था और वह वर्तमान में विधायक हैं। बहुगुणा के समर्थकों का विश्वास है कि वह मुख्यमंत्री बतौर बहुत अच्छा काम कर सकते हैं।
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मुख्यमंत्री बनने की हसरत डॉ. हरक सिंह रावत भी बहुत पहले से पाले हुए हैं। रावत तेजतर्रार और अनुभवी नेता हैं। राज्य बनने से 10 साल पहले वह कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनके समकक्ष रहे ऐसे नेताओं की सूची लम्बी होती जा रही है, जो मुख्यमंत्री बन गए हैं। इनमे डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत को शामिल किया जा सकता है। असम में कांग्रेस से 2014 में बीजेपी में आए हिमंत बिस्वा सरमा के उदाहरण ने उत्तराखंड के दिग्गजों की उम्मीदों पर पंख लगा दिए हैं। उत्तराखंड की सियासत को समझने वाले जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में यदि हिमंत की तरह ही कोई नेता पार्टी की चुनावी जीत की गारंटी बनता है, तो उसे भी मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। हिमंत की तरह ही किसी भी नेता में वो दम होना जरूरी होगा, जिसके बूते पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में आ जाए।