मीरजापुरः विंध्याचल की अष्टभुजा पहाड़ी की गोद में बसा भैरव कुंड सदियों से तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र रहा है। अघोर साधना का केंद्र होने के कारण यहां भैरवी उपासक आते हैं। यहीं पर मां काली का मंदिर है। साथ ही श्रीयंत्र व भगवान शिव का भी मंदिर है। मां शक्ति स्वरूपा योगिनी के साथ सूर्य, गणेश की मूर्ति भी प्रतिष्ठित है। निचले भाग में अघोर आश्रम है। बलि पूजा एवं पंचमकार साधना यहां की जाती है। तांत्रिक यहीं पर तंत्र साधना करते हैं। पहाड़ी की तलहटी में लगभग पांच सौ फीट नीचे स्थित इस स्थल पर आने के बाद हर कोई अपनी सुध-बुध खो बैठता है। नवरात्र में देशभर के तांत्रिक इसी स्थल पर जुटते हैं। मां विंध्यवासिनी, अष्टभुजा व काली के दर्शन के बाद भक्त यहां आना नहीं भूलते। यंत्र पूजा करने के बाद ही वापस लौटते हैं। भैरव कुंड के पास एक गुफा में अघोरेश्वर रहते थे। गुफा के भीतर भक्तों, श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए अघोरेश्वर की चरण पादुका एक चट्टान में जड़ दी गई है। यहां कई साधक आकर अनेक प्रकार की साधना करते हैं और अघोरेश्वर की कृपा से सिद्धि प्राप्त करते हैं। विंध्य पर्वत पर अनेक गुफाएं हैं जिनमें रहकर साधक साधना करते हैं।
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अलग-अलग विधियों से पूजा करते हैं दक्षिण व वाममार्गी साधक
विंध्यपीठ में नवरात्र की महानिशा रात्रि में तंत्र साधना के लिए तांत्रिकों व साधकों का रामगया श्मशान घाट, तारा मंदिर और भैरव कुंड पर जमावड़ा लगा रहता है। दक्षिण एवं वाममार्गी साधक अलग-अलग विधियों से पूजा करते हैं। वाममार्गी साधक पंचमकार विधि से तंत्र साधना कर मां को प्रसन्न करने के लिए बकरों व भेड़ों की बलि देते हैं।
महानिशा पर तंत्र साधना का अलग महत्व
शिवपुर स्थित रामगया श्मशान घाट व तारा मंदिर पर मध्य रात्रि साधक तंत्र साधना शुरू करते हैं तो अजीब सा माहौल हो जाता है। बलि के लिए लाए गए बकरों की चीत्कार गूंजती है। लाल और काले वस्त्र पहनकर साधक साधना करते नजर आते हैं। भैरव कुंड, अष्टभुजा, चितवाखोह, सीता कुंड आदि साधना स्थलों पर तंत्र साधना करते कई साधक दिखाई देते हैं। महानिशा पर तंत्र साधना का अलग महत्व है।
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