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कोरोना में सर्वाधिक खोज अध्यात्म की हुई, यह भारत की विश्व को देन

भोपाल: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेशजी सोनी का कहना है कि संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए राष्ट्र और समाज ही सर्वोपरि है। वह उसी के लिए जीता व मरता है, व्यक्तिगत प्रशंसा के लिए नहीं। पर मामाजी सरीखे व्यक्तित्व का पुनः पुनः पुण्य स्मरण कर उनके द्वारा जो आदर्श स्थापित किए, उन पर चलने की प्रेरणा पाते हैं। माणिक चन्द्र वाजपेयी उपाख्य मामाजी ने पत्रकारिता में जो आयाम स्थापित किए, वह सदैव स्मरण योग्य हैं।

स्‍वदेश के समूह संपादक रहे व रा. स्व. संघ के वरिष्‍ठ प्रचारक माणिकचंद वाजपेयी उपाख्य मामाजी के जन्मशताब्दी वर्ष पर प्रकाशित विशेषांक ‘माणिक जैसे मामाजी’ का लोकार्पण करते हुए सुरेश सोनी ने उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को सामने रखा । विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित किये गए इस कार्यक्रम में स्वदेश के पूर्व संपादक जयकिशन शर्मा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे।

भीष्म के जीवन को याद करते हुए सुरेश जी सोनी ने कहा कि उन्होंने अपना जीवन ऐसे जिया कि प्रतिज्ञा और भीष्‍म में कोई अंतर नहीं रहा । यहां संज्ञा और विशेषण एक हो गए । ठीक इसी प्रकारआज माणिकचन्द्र वाजपेयी यह नाम एक विशेषण बन गया है। जैसे कोई कहता है राष्ट्र समर्पित जीवन तो मामाजी जैसा जीवन याद आता है। यानी कि मामाजी का जीवन भी राष्ट्र समर्पित इस प्रकार से रहा कि वह और राष्ट्र उनका पूरा जीवन, उनक संपूर्ण चित्‍त एक हो गए थे।

श्री सोनी ने कहा कि भारत की जो सनातन परंपरा और जीवन मूल्‍य व धारणाएं हैं, उन व्‍यवहारों को अपने जीवन में एक आदर्श के रूप में धारण करने वाले वे एक असाधारण व्‍यक्‍ति रहे । मामाजी जैसे समर्पित लोग कभी यश की अपेक्षा नहीं करते, वह अदृश्य रहकर अपना कार्य करते रहते हैं। श्री सोनी ने बताया कि मामाजी ऐसे दूरदर्शी संपादक थे जिन्होंने 26 जून को आपातकाल लगने के 2 दिन पहले ही आपातकाल के बारे में सचेत कर दिया था। उन्होंने संपादकीय में लिख दिया था कि ऐसी काली रात आने वाली है जब संवैधानिक अधिकार छीन लिए जायेंगे और लोगों के मुंह बंद कर दिए जायेंगे। मामाजी की लेखनी में यह गहराई इसलिए थी क्योंकि उनका जीवन समाज के प्रवाह के साथ एकरूप था।

उन्‍होंने कहा कि आज हमारे सामने आवधारणाओं का संकट खड़ा हुआ है, पश्चिम का विचार या विभेदीकरण का दृष्‍टिकोण बलवान होता दिखाई देता है। इससे हम सभी को सचेत रहने और जागृत होने की जरूरत है। एक नया विमर्श खड़ा करने की कोशि‍श हो रही है, जिससे कि हम सभी को सावधान रहने की आवश्‍यकता है, इससे हमें अपने देश को बचाने की जरूरत है। समझना होगा कि भारत के हित में क्‍या है और क्‍या नहीं । आज हम पर पश्चिम का प्रभाव दिखता है लेकिन कोरोना ने हमको बहुत कुछ पुन: सोचने पर विवश किया है।

उन्‍होंने कहा कि गूगल भी इस बात को मानता है कि अगर सबसे ज्यादा कोई शब्द इस समय में सर्च किया गया तो वह आध्‍यात्‍म है। वास्‍तव में यही भारत का अधिष्ठान है और उसका जीवन मूल्य । इसीको सही मायनों में मामाजी ने भी जिया है। वास्तव में हमको दुनिया में इसी आध्यात्मिक जीवन मूल्‍य को प्रमुखता से पहुंचाने की जरूरत है। भारत का विचार, भारत का समाज विश्व के कल्याण के लिए है। मामाजी की प्रेरणा इसका निमित्त बने यही मैं कामना करता हूं।

स्वदेश के पूर्व संपादक श्री जयकिशन शर्मा ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मेरा मानना है मामाजी का जन्म, उनका पत्रकारिता में आना यह सब पूर्व निर्धारित था. इसका निर्धारण सृष्टि ने किया था, मामाजी एक वृहद् लक्ष्य की पूर्ति के लिए आये थे । उन्होंने बताया कि मामाजी का जीवन अत्यंत सामान्य था और वह स्वदेश के प्रधान संपादक होते हुए भी साइकिल में घुमा करते थे, पुराना कुरता पहनते थे. अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार एक चौकीदार ने उनके कपडे देखकर उन्हें कार्यालय के अन्दर जाने से रोक दिया था, लेकिन मामाजी मुस्कुराते रहे, यह उनकी सरलता थी ।

एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार एक बड़े नेता की कुछ अश्लील तस्वीरें लीक हो गईं. उन तस्वीरों के कारन उसे इस्तीफा देना पड़ा, संयोग से तस्वीर की कुछ प्रतियाँ स्वदेश के एक रिपोर्टर के हाथ लग गईं। इस तस्वीर के छपने से अखबार की चर्चा भी होती और नाम भी लेकिन मामाजी ने उन तस्वीरों को छापने से साफ़ मन कर दिया. उन्होंने कहा कि हमारा अखबार परिवारों में भी पढ़ा जाता है, हम इन तरीकों से अपना प्रचार नहीं चाहते। इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार लाजपात आहूजा ने किया।