Featured संपादकीय

लोकसभा चुनाव को लेकर, राजनीतिक दलों में बढ़ी हलचल

18वीं लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। धीरे-धीरे गठबंधनों की तस्वीर भी साफ होती जा रही है। 2014 और 2019 के चुनाव में एक तरफ भाजपा नीत एनडीए था, तो कांग्रेस नीत यूपीए। वर्तमान में सूरत बदली हुई है। आज एक तरफ एनडीए है, तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन। यूपीए का विस्तार हुआ है, वहीं भाजपा के अनेक पुराने साथी अलग राह अपना चुके हैं। उनमें नीतीश कुमार का जदयू तथा उद्धव ठाकरे की शिवसेना इंडिया गठबंधन में है। शिरोमणि अकाली दल फिलहाल किसी गठबंधन में नहीं है। एकनाथ शिंदे की शिवसेना तथा अजीत पवार के एनसीपी के भाजपा के गठबंधन में शामिल होने के बाद एनडीए में कुल 41 दल हैं। संख्या के लिहाज से यह गठबंधन बड़ा लगता है। लेकिन इसमें भाजपा ही एकमात्र बड़ा दल है और वही ड्राइविंग सीट पर है। इसमें शामिल अधिकांश की वर्तमान संसद में मौजूदगी नहीं है। उनके कुछ पॉकेट हैं। क्षेत्रीय आधार है। भाजपा उनके इस आधार का जहां अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में लगी हैं, वहीं ये भाजपा के सहारे चुनाव की वैतरणी पार करना चाहते हैं।

जीत-हार से लड़खड़ाता रहा गठबंधन

यदि भाजपा ने इन्हें एक दो सीट दे दी और ये जीत गए तो संसद का मुंह देख लेंगे यानी उनकी मुंहदेखी हो जाएगी। इंडिया गठबंधन में फिलहाल 26 दल शामिल हैं। इसकी नींव पटना में पड़ी। इसमें नीतीश कुमार की पहल थी। आगे बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली तक बैठकें हुईं और गठबंधन को एक शक्ल देने की कोशिश की गई। जहां हिमाचल तथा कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से इस गठबंधन को ऊर्जा मिली, वहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में हार से इसे धक्का भी लगा। अभी यह गठबंधन जमीन पर नहीं उतर पाया है बल्कि मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और सपा के बीच जो जुबानी जंग हुई, उसका उत्तर प्रदेश में क्या असर होगा ? सपा और रालोद के बीच गठबंधन के बाद कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन की क्या स्थिति बनती है ? यह चीजें बहुत साफ नहीं है। इंडिया गठबंधन के सामने समस्याएं कम नहीं हैं। मुद्दे भी तय नहीं है। सबसे ज्यादा सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान बनी हुई है। वर्तमान में एनडीए के पास 17 राज्यों तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश में सरकार है। आठ केन्द्र शासित प्रदेशों में दो में विधानसभा है। इनमें 11 में भाजपा की सरकार है तथा अन्य में वह गठबंधन की सरकार में शामिल है। लोकसभा में एनडीए के 332 सांसद हैं। इंडिया गठबंधन की 10 राज्यों तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश में सरकार है। इस वक्त कांग्रेस तेलंगाना, हिमाचल और कर्नाटक में सरकार में है। इस गठबंधन के सांसदों की संख्या 141 है। लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए और इंडिया गठबंधन पर ही चर्चा केंद्रित है या इन्हीं दोनों पर अधिक फोकस है जबकि एक तीसरी स्थिति भी है, जो कम महत्वपूर्ण नहीं है। ऐसे करीब 10 राजनीतिक दल हैं, जो इन दोनों गठबंधनों से अलग हैं। इनका अपने राज्यों में अच्छा जनाधार है। इनमें से दो दल तो ऐसे हैं, जिनकी राज्यों में सरकार भी है। ये हैं बीजू जनता दल जो ओडिशा में तथा वाईएसआर कांग्रेस जो आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ है। वर्तमान में इन दलों के लोकसभा में 59 सांसद है तथा उनके मतों का प्रतिशत भी 10.71 है। प्रश्न है कि ये गठबंधन का हिस्सा बनेंगे या स्वतंत्र रहेंगे। वैसे एनडीए में ना होते हुए भी इनमें से कइयों ने मोदी सरकार का समय-समय पर साथ दिया है। इस तरह दोनों गठबंधनों पर विचार के साथ इन दलों पर भी अवश्य विचार किया जाना चाहिए।

भाजपा में नरेन्द्र मोदी हैं सर्वेसर्वा

[caption id="attachment_763299" align="alignnone" width="700"]increased stir parties Lok Sabha elections National[/caption] एनडीए का गठन मई 1998 में हुआ। उस वक्त इसमें 13 दल शामिल थे। पिछले वर्ष इसने 25 साल पूरे किए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए की एक नई परिभाषा दी। उन्होंने कहा कि एन से न्यू इंडिया, डी से डेवलपमेंट और आई से एस्पिरेशन। इस गठबंधन में भाजपा सब कुछ है और भाजपा में नरेंद्र मोदी सर्वेसर्वा हैं। सारी शक्ति इन्हीं में समाहित है। इनके बिना पत्ता भी नहीं हिलता है, न भाजपा में और न सरकार में। ऐसा हमने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में देखा कि वहां के स्थापित नेतृत्व को बाहर का रास्ता दिखाया गया तथा ऐसे चेहरे के हाथ में प्रदेश की बागडोर सौंपी गई, जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। आज देश के चप्पे-चप्पे पर उनकी छवि की छाप है। किसी परियोजना या राजमार्ग या रेलगाड़ी या हवाई पट्टी या इसी तरह का कोई उद्घाटन या आयोजन हो, वहां मोदी जी ही हरी झंडी दिखाएंगे या फीता काटेंगे या उद्घाटन करेंगे। नए संसद भवन का उद्घाटन हो या श्रीराम मन्दिर व भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हो, सबके केन्द्र में नरेन्द्र मोदी हैं। उनकी छवि एक संत से लेकर राजनेता की बनी है या बनाई गई है। सारा प्रचार उन्हीं पर केन्द्रित है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति तो ऐसी है कि वे जो बाइडेन, पुतिन, शी जिनपिंग जैसे बड़े राष्ट्रों के प्रमुख की कतार में हैं। कभी इंदिरा गांधी को ‘इंडिया इज इंदिरा’ कहा गया था। उन्होंने इमरजेंसी जैसा कदम उठाया। इसमें लोकतंत्र पर ही सर्वाधिक चोट पड़ी। आज मोदी जी के शासन को लेकर यह कहा जा रहा है कि लोकतंत्र के जितने पाये हैं, वह सत्ता के द्वारा अनुकूलित हैं। 2019 में भाजपा की ओर से ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा दिया गया था। पुलवामा जैसी आतंकवादी घटना हुई थी। इसका जवाब मोदी सरकार ने पाकिस्तान के बालाकोट पर हमले के द्वारा दिया। इससे राष्ट्रवादी लहर पैदा हुई, जिस पर सवार होकर 2014 के आंकड़े को पार करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार दोबारा सत्तारूढ़ हुई। आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण और उसकी प्राण प्रतिष्ठा में मोदी सरकार का योगदान मुख्य कारक है। भले ही लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा के द्वारा इसकी शुरुआत की हो लेकिन 1984 के भाजपा के 02 सीटों की संख्या को 2019 में 300 के पार तक पहुंचाने का काम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही हुआ है। इस बार चुनाव का नारा 400 पार का है। यह भी पढ़ेंः-Farmers Protest: किसानों का ट्रैक्टर मार्च आज, अलर्ट मोड पर पुलिस प्रशासन यह बात जन-जन में है कि नरेंद्र मोदी सरकार के कारण आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण तथा हिंदुत्व व सनातन की प्रतिष्ठा हो पाई है। यह सदियों की पराधीनता से वास्तविक स्वाधीनता है। देश के 80 करोड़ लोगों को लाभार्थी के रूप में मुफ्त में अनाज, किसानों, महिलाओं तथा समाज के गरीब-कमजोर लोगों को सुविधा और स्वास्थ्य सेवाएं आदि मिल रही है, इसकी तभी गारंटी हो सकती है, जब नरेंद्र मोदी की सत्ता बनी रहे। प्रचार ऐसा है, जिससे दस साल के इस शासन का स्याह पक्ष कभी सतह पर न आ पाए। वह किसी को न दिखे। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा-एनडीए की यही चुनावी रणनीति है। कौशल किशोर (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)