केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद से ही सुधारों का दौर जारी है। करीब पंद्रह सौ पुराने और बेकार क़ानूनों को या तो खत्म कर दिया गया या फिर उनमें बदलाव किए जा रहे हैं। इस कड़ी में एक और बड़ा बदलाव होने वाला है। सिगरेट, तंबाकू, गुटखा-खैनी आदि के बढ़ते प्रचलन को थामने के लिए सरकार अनिवार्य कानूनी उम्र सीमा को और आगे बढ़ा रही है। धूम्रपान के दुष्परिणाम आज हम सबके लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कोई ऐसा घर नहीं है जिसमें धूम्रपान सेवन करने वाले न हों। ये बला बच्चों में ज्यादा पनप रही है। कलाकारों देखकर बच्चे सिगरेट पीना सीख रहे हैं। जबकि, धूम्रपान न करने की वैधानिक चेतावनी आदि भी दिखाई जाती है। बावजूद इसके कोई खास असर नहीं पड़ता। असर बिना सरकारी सख्ती के नहीं पड़ सकता। फिलहाल उस दिशा में सरकार ने कदम बढ़ाए हैं। देखते हैं कितना असर पड़ता है।
धूम्रपान के स्वास्थ्य निहित खतरों को भांपकर स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा उठाया गया कदम बेशक सरकार की कमाई में डाका डालेगा। बावजूद इसके सरकार ने इसकी परवाह किए बिना आमजन का ख्याल रखा। सर्वविदित है कि शराब और धूम्रपान से सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन ऐसी कमाई का क्या मतलब, जिसमें लोगों की जिंदगी दांव पर लगती हो। कई देशों ने तंबाकू पदार्थों पर उच्च कर लगाया हुआ है, उनके मुकाबले भारत काफी पिछड़ा है। भारत में खुलेआम धूम्रपान की वस्तुएँ बेची और खरीदी जाती हैं। जबकि, कई मुल्कों में ऐसी आजादी नहीं है। अपने यहां देखिए, रेलवे स्टेशनों व सार्वजनिक स्थानों पर हाथ में लटकाकर लोग सिगरेट-गुटखे बेचते हैं, उनपर कोई बंदिश नहीं। भारत में भी प्रतिबंध लगना चाहिए।
धूम्रपान संशोधन कानून के बाद रेलवे ने भी अपने एक्ट-1989 की धारा 167 में संशोधन करने का मन बनाया है। अभी ट्रेन, रेल स्टेशन या प्लेटफॉर्म पर बीड़ी-सिगरेट पीने वालों को जेल की सजा का प्रावधान है। लेकिन शायद ही कभी किसी सुट्टामार को जेल भेजा गया हो। धूम्रपान मौत का दूसरा रास्ता है। फिर भी लोग सेवन करते हैं। धूम्रपान से उत्पन्न बीमारियाँ उसके बाद अकाल मृत्यु के दंश से न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि समूचा संसार जकड़ा हुआ है। असमय मौत के सबसे बड़े कारण को धूम्रपान माना जा रहा है। इसकी चपेट में 12 वर्ष से लेकर 24-25 वर्ष के युवा सबसे ज्यादा हैं। सिगरेट पीने को बच्चे स्टेटस सिंबल मानते हैं। इसलिए जबतक कानूनी सख्तियां नहीं बढ़ेगी, ये आफत काबू में नहीं आएगी। भय नहीं है तभी बच्चे बेधड़क धूम्रपान करते हैं।
ये सच है कि धूम्रपान निषेधक के अभीतक जो कानून थे, सभी निष्क्रिय थे, हाथी के दाँत जैसे। उनका मौलिक रूप से ज्यादा प्रभाव नहीं था। सख्ती के बाद भी स्कूल, काॅलेज व अन्य शिक्षण संस्थाओं के आसपास दुकानदार सिगरेट-तंबाकू बेचते हैं। उन्हें पता है उनके ग्राहक इन्हीं संस्थाओं से सबसे ज्यादा हैं। शिकायतों पर प्रशासन दिखावे के लिए अभी-कभार अभियान छेड़ देता है, लेकिन कुछ समय के बाद फिर वैसा ही चलता रहता है। अच्छी बात है, स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस विषय पर गंभीरता दिखाई और नया कानून बनाने के लिए सरकार से सिफारिश की। सरकार ने भी बिना देर किए, हामी भर दी। उसके बाद रास्ता पूरी तरह साफ हो गया।
अभीतक धूम्रपान करने की उम्र 18 वर्ष थी जिसे 21 वर्ष किया गया है। निश्चित रूप इसे बेहतरीन और सराहनीय फैसला कहा जाएगा। मौजूदा समय में नौनिहालों में भी जिस तेजी से धूम्रपान करने की ललक बढ़ी है, उस लिहाज से यह निर्णय नजीर साबित होगा। इससे कइयों की जिंदगियां असमय मौत में समाने से बचेंगी। फिलहाल संशोधन के लिए ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। नए कानून के तहत कोई भी व्यक्ति सिगरेट या किसी अन्य तंबाकू उत्पाद की बिक्री या बिकने की अनुमति 21 साल से कम उम्र के किसी व्यक्ति को बेचने की पेशकश नहीं कर सकेगा। नए कानून में सेक्शन-7 में संशोधन हुआ है जिसमें सजा और जुर्माने का प्रावधान शामिल है। शिक्षण संस्थाओं के आसपास धूम्रपान सामग्री बेचने वाले पर पांच लाख का जुर्माना या पांच की साल सजा का प्रावधान होगा। इसके अलावा सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान के सेवन का जुर्माना दो हजार किया गया है। बिना देर किए सुधार किए गए इस कानून को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए, क्योंकि इसमें न विपक्ष टांग अड़ाएगा और न कोई विरोध करेगा। चारों तरफ से रास्ता साफ, किसी तरह की कोई चुनौती नहीं। बस, ईमानदारी से इस कानून को अमल में लाया जाए। कानून लागू करने के साथ-साथ सरकार धूम्रपान विरोधी अभियान भी चलाए, धूम्रपान के दीर्घकालीन खतरों से लोगों को अवगत कराए। सिगरेट की पैकटों पर चेतावनी लिख देने भर से काम नहीं चलेगा। जनजागरण अभियान भी चलाना होगा।
धूम्रपान से मरने वाले आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। संसार भर में सालाना 70 से 80 लाख के बीच लोगों की असमय मौत होती है, वहीं हिंदुस्तान में रोजाना करीब 2739 लोग तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों के कारण अपनी जान गंवाते हैं। चिकित्सकों ने अपने रिसर्च में पाया है कि मौजूदा समय का धूम्रपान और ज्यादातर खतरनाक है। इनमें केमिकल का इस्तेमाल ज्यादा किया जाने लगा है जिससे हार्ट और पांव की बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। ये तो सभी जानते हैं कि धूम्रपान एवं तंबाकू खाने से मुंह, गला, श्वास नली, फेफड़ों, खाने की नली, पेट अथवा पेशाब की थैली का कैंसर होता है, पर अब दिल की बीमारियाँ, उच्च रक्तचाप, पेट के अल्सर, अम्लपित्त और अनिद्रा जैसी बीमारियाँ भी होने लगी हैं।
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इन सबसे छुटकारे के लिए बदलाव वाला कानून निश्चित रूप से आईना दिखाएगा। कानून बना देना और ईमानदारी से लागू कर देना, दोनों में फर्क होता है। धूम्रपान संशोधन कानून कड़ाई से लागू करने के साथ उसपर निगरानी भी करनी होगी। उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्माना हो और सजा दी जाए। ऐसा करने पर ही लोगों में भय पैदा होगा।
डॉ. रमेश ठाकुर