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गेहूं की बुवाई में जुटे राजधानी के किसान, उन्नत किस्मों का चयन देगा मोटा मुनाफा

लखनऊः इस समय किसान गेहूं की अगेती बुवाई करने में जुटे हुए हैं। किसान उन्नत किस्मों के बीज खरीद रहे हैं, ताकि उत्पादन के साथ मुनाफा भी मिले। नवम्बर के पहले सप्ताह में तमाम किसानों ने गेहूं की अगेती बुवाई की है। हालांकि, यह किसानों के लिए बहुत जरूरी भी है। गेहूं की अगेती बुवाई कर रहे किसानों के लिए वैज्ञानिकों की तमाम सलाह हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि वह उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी लेकर ही बीज खरीदें, तभी उत्पादन के साथ मुनाफा मिलने वाला है। गेहूं की बुवाई के लिए सही किस्में भी बाजार में काफी हैं।

अक्टूबर महीने से गेहूं की बुवाई शुरू हो जाती है। इसे गेहूं की अगेती बुवाई भी कहा जाता है। इस समय किसान यदि सही किस्मों का चयन कर लें और उनकी बुवाई कर दें, तो किसान को लाभ का मलाल नहीं रहता है। वरिष्ठ किसान कहते हैं कि गेहूं की अगेती बुवाई 15 नवम्बर तक कर देनी चाहिए। वह कहते हैं कि गेहूं की प्रमुख अगेती किस्मों की तमाम खासियतें हैं। अगेती फसलों में डब्ल्यूएच-1105 गेहूं की ये किस्म अगेती बुवाई के लिए जानी जाती है। लगभग 157 दिनों में पकने वाली इस किस्म से एक एकड़ में लगभग 23 से 24 क्विंटल की पैदावार होती है। इसमें रतुआ रोग लगने की आशंका कम रहती है। उत्तर प्रदेश में इस किस्म की बुवाई खूब होती है। दूसरी किस्म में एचडीसीएसडब्ल्यू-18 को भी पसंद किया जाता है।

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 2015 में किस्म ईजाद की थी। एक एकड़ में लगभग 28 क्विंटल की पैदावार वाली ये किस्म लगभग 150 दिनों में पक जाती है। गेहूं की किस्म एचडी 3086 की सबसे खास बात यह होती है कि इस पर गर्म हवाओं का असर नहीं पड़ता है। इसमें पीला रतुआ रोग लगने की आशंका कम रहती है। किसान इसे भी काफी पसंद करते हैं। लगभग 156 दिनों में पककर तैयार होने वाली ये किस्म पैदावार के मामले में भी अच्छी होती है। पीबीडब्ल्यू- 677 भी लगभग 157 दिनों में तैयार हो जाती है, इसकी बुवाई पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा होती है। यदि किसान काफी जागरूक हैं और वह बीज केंद्र तक जा सकते हैं तो उन्हें अपने खेत की मिट्टी के बारे में जानकारी देकर ही बीज खरीदना चाहिए। इकसे साथ ही पिछले माह सरकार की ओर से तमाम गोष्ठियां आयोजित की गई थीं। इनमें दिए गए वैज्ञानिकों के नम्बरों पर जानकारी लेकर ही बीज खरीदने से ज्यादा उत्पादन का लाभ उठाया जा सकता है।

  • शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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