Lucknow east voting : लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में आज लखनऊ के लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए सुबह से ही मतदान केंद्रों पर लंबी लाइनों में लगकर मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। जनपद के लोग जहां अपने सांसद को चुनने के लिए जोर-शोर से मतदान कर रहे हैं, वहीं लखनऊ पूर्वी विधानसभा के मतदाता सांसद के साथ अपने विधायक का भी चुनाव करने में पूरा जोश दिखा रहे हैं। विपक्षी दल जहां लखनऊ लोकसभा के साथ पूर्वी विधानसभा पर कब्जा जमाने की उम्मीद पाले हुए हैं, वहीं भाजपा के पास अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। कारण कि 1991 से ही लगातार लखनऊ लोकसभा के साथ पूर्वी विधानसभा पर बीजेपी अपना परचम लहराती आई है।
इस बार भी तय मानी जा रही है जीत
भाजपा से लोकसभा सीट के लिए राजनाथ सिंह लगातार तीसरी बार मैदान में हैं। इस सीट पर काफी हद तक उनकी जीत तय मानी जा रही है क्योंकि राजनाथ के कद के हिसाब से विपक्ष ने कोई भी मजबूत उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है। इससे इतर लखनऊ पूर्वी विधानसभा पर कब्जा जमाने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है, क्योंकि इस बार यहां लड़ाई कांटे की मानी जा रही है। बीजेपी ने जहां इस बार ओपी श्रीवास्तव पर दांव लगाया है, वहीं सपा-कांग्रेस के इंडिया गठबंधन ने मुकेश चौहान को मैदान में उतारा है। दरअसल, इस सीट से लगातार तीन बार विधायक रहे आशुतोष टंडन के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। आशुतोष लखनऊ से पूर्व सांसद व राज्यपाल रहे लाल जी टंडन के बेटे थे। 2014 में पहली बार विधायक बनने के बाद वह लगातार तीन बार इस सीट से जीते अैर 2017 में सूबे की योगी सरकार में मंत्रिमंडल का हिस्सा भी बने थे।
1991 से लगातार जीत रही भाजपा
उनके देहांत के बाद यह माना जा रहा था कि बीजेपी आशुतोष टंडन के बेटे अमित टंडन को ही मैदान में उतार सकती है लेकिन बीजेपी ने ठीक इसके उलट पार्टी के पुराने नेता ओपी श्रीवास्तव पर भरोसा जताया है। श्रीवास्तव भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं। इसके साथ ही आजीवन सहयोग निधि विभाग के प्रदेश संयोजक की जिम्मेदारी भी उन पर है। वह क्षेत्रीय अवध क्षेत्र में कोषाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। ऐसे में पार्टी ने उन्हें विधायकी का टिकट देकर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। उनके सामने चुनौती है कि पार्टी की गढ़ कही जाने वाली सीट पर फिर से भगवा झंडा मजबूती के साथ लहराएं। लखनऊ पूर्वी सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1951 में इस सीट से कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्ता पहली बार विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1991 तक कांग्रेस समेत अन्य दलों के विधायक इस सीट से जीत दर्ज करते रहे।
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40 साल बाद 1991 में भाजपा ने इस सीट पर जीत का स्वाद चखा और भगवती प्रसाद शुक्ला ने भगवा झंडा लहराया था। इसके बाद से लगातार लखनऊ पूर्वी की सीट पर जनता कमल के फूल को ही थामे हुए है और हर चुनाव में प्रत्याशी बड़े अंतर से जीत हासिल करते आ रहे हैं। पिछले 33 सालों से सपा, बसपा से लेकर कांग्रेस ने अलग-अलग प्रत्याशियों को मैदान में उतार कर इस सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश की लेकिन हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। ओपी श्रीवास्तव के कंधों पर यह बड़ी जिम्मेदारी है कि इस भगवा गढ़ पर एक बार फिर कमल का फूल खिले और रिकॉर्ड कायम रहे। हालांकि, मतदाता आज खुलकर अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले 04 जून को ही यह तय हो पाएगा कि भाजपा अपने गढ़ को बचाने में कामयाब हो पाती है या फिर इंडिया गठबंधन अपना झंडा बुलंद करेगा।
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