लोकसभा चुनाव 2024

लोकसभा चुनावः पिछले 40 सालों से बुंदेलखंड में जीत को तरस रही कांग्रेस

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बांदा: आजादी के बाद देश में लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, हर जगह कांग्रेस का तिरंगा झंडा लहराता रहा। 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों ने हैट्रिक बनाई। लेकिन अब कांग्रेस की मुश्किल घड़ी ऐसी है कि बुन्देलखण्ड में कहीं भी उसका हाथ नजर नहीं आ रहा है।

कभी बनाई थी जीत की हैट्रिक

बांदा-चित्रकूट संसदीय सीट पर पिछले 40 साल से कांग्रेस को जीत नहीं मिली है। पिछले चुनाव में बुन्देलखण्ड की चारों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी। अब हालात ऐसे हैं कि इस बार झांसी को छोड़कर तीन सीटों पर कांग्रेस का निशान हाथ का पंजा नजर नहीं आएगा।

आजादी के बाद से 1991 तक बुन्देलखण्ड में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। कांग्रेस के उम्मीदवारों ने 1952, 57, 62, 67, 71, 80 और 1984 में झाँसी लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। कांग्रेस ने 1952, 57, 62, 67 और 1971 में जालौन लोकसभा सीट जीती। कांग्रेस ने 1952 और 1957 में बांदा-चित्रकूट संसदीय सीट जीती। इसके बाद कम्युनिस्टों और कांग्रेस के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण कभी कांग्रेस का झंडा फहराया जाता था तो कभी कम्युनिस्ट झंडा फहराया जाता था। कांग्रेस आखिरी बार 1984 में चुनाव जीती थी। तब कांग्रेस के भीष्म देव दुबे ने जीत हासिल की थी। तब से कांग्रेस जीत के लिए तरस रही है। यही हाल हमीरपुर महोबा लोकसभा सीट का भी है। कांग्रेस यहां अब तक सात बार जीत चुकी है। 1952 से 1971 तक कांग्रेस यहां लगातार जीत दर्ज करती रही। बाद में 1980 और 1984 में भी जीत हासिल की। लेकिन 1991 के बाद यहां भी कांग्रेस को जीत नहीं मिली।

ईवीएम से गायब हुआ हाथ

पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो बुंदेलखण्ड की चारों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। बांदा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के बाल कुमार पटेल प्रत्याशी थे। जिन्हें महज 75438 वोट ही मिल सके। जालौन में बृजलाल खाबरी को 89,555 वोट मिले थे। झांसी में शिवशरण कुशवाह को 86139 वोट मिले थे। इसी तरह, हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के प्रीतम सिंह 1,13534 वोट हासिल करने में सफल रहे। इन चारों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी।

इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन है। जिसके चलते कांग्रेस के खाते में सिर्फ झांसी सीट आई है, जबकि बांदा महोबा और जालौन सीट पर सपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। गठबंधन के चलते इस बार ईवीएम से कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ गायब रहेगा। अब देखना यह है कि गठबंधन से कांग्रेस को कितना फायदा होगा।

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इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच गठबंधन था। बसपा का कैडर वोट सपा को मिल गया था, यही कारण है कि सपा और बसपा प्रत्याशियों ने भाजपा प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में अगर कांग्रेस के परंपरागत वोटर एसपी को वोट देते हैं तो भी एसपी को ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। क्योंकि अब कांग्रेस के पास पहले जैसा जनाधार नहीं है।

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