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म्यांमार के सैनिक शासन को अमेरिका का सख्त संदेश, कम किया राजनयिक संबंधों का दर्जा

वाशिंगटनः म्यांमार के सैनिक शासन को अमेरिका की ओर से सख्त संदेश दिया गया है। अमेरिका ने म्यांमार के साथ अपने राजनयिक संबंधों का दर्जा कम कर दिया है। इसके अंतर्गत यंगून स्थित अमेरिकी राजदूत थॉमस वाजदा को लौटने को कह दिया गया है। म्यांमार में एक फरवरी, 2021 को सेना ने निर्वाचित प्रतिनिधियों का तख्ता पलट कर सत्ता खुद संभाल ली थी। अमेरिका ने इसके बाद म्यांमार पर कई प्रतिबंध लगाए थे। इसके पहले 1990 के दशक में जब सेना ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को जेल में डाल कर सत्ता पर कब्जा जमाया, तब 20 वर्ष तक अमेरिका ने म्यांमार के लिए राजदूत की नियुक्ति नहीं की थी।

2010 में जब म्यांमार में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल की गई, तब अमेरिका ने वहां अपना राजदूत भेजा था। एक बार फिर म्यांमार में सैन्य शासन के चलते अमेरिका ने वहां राजनयिक दर्जे में कमी की है। थॉमस वाजदा जनवरी 2021 में राजदूत बन कर वहां गए थे। उसके कुछ ही दिन के बाद आम चुनाव में विजयी हुई आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी का तख्ता पलट कर सेना ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया। उसके बाद से पश्चिमी देश यहां अपना राजदूत भेजने को लेकर अनिच्छुक रहे हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि थॉमस वाजदा को हटाए जाने के बाद अब म्यांमार में नए पूर्णकालिक राजदूत की नियुक्ति नहीं की जाएगी। अब वहां मौजूद दूसरे नंबर के अधिकारी, डिप्टी चीफ ऑफ मिशन डेबॉराह लिन उनकी जिम्मेदारियां संभालेंगे।

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विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले के माध्यम से अमेरिकी प्रशासन ने म्यांमार की मौजूदा सरकार को मान्यता न देने का संदेश दिया है। हालांकि म्यांमार के सैनिक शासन ने 2023 में आम चुनाव कराने का ऐलान किया है। अमेरिका इस बात की निगरानी करेगा कि वे चुनाव किस तरह कराए जाते हैं। उसके बाद ही वह म्यांमार के बारे में अपना अगला रुख तय करेगा। फिलहाल अमेरिका ने आशंका जताई है कि मौजूदा माहौल में म्यांमार में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है। अमेरिका के पहले जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण कोरिया भी म्यांमार से राजनयिक संबंधों का अपना दर्जा गिरा चुके हैं। राजनयिक सूत्रों के मुताबिक यूरोपीय देशों में आपसी सहमति बनी है कि वे यंगून में अपने दूतावास बनाए रखेंगे लेकिन अपने राजदूत म्यांमार नहीं भेजेंगे।

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