Monday, December 23, 2024
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Train Accident: 42 साल पहले जून में ही हुआ था भयानक रेल हादसा, जब बागमती नदी में समा गयी थी ट्रेन

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बेगूसरायः ओडिशा के बालासोर (Balasore) के पास बीती रात हुए भीषण ट्रेन हादसे (Train Accident) से पूरा देश सदमे में है। इस ट्रेन हादसे में अब तक 237 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 900 से ज्यादा लोगों के घायल होने की पुष्टि हुई है। अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौके पर पहुंच जायजा ले रहे हैं। इस घटना की चर्चा देश ही नहीं विदेश में भी हो रही है। कहा जा रहा है कि यह भारत का सबसे बड़ा रेल हादसा (Train Accident) है। लेकिन भारत और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा (Train Accident) 6 जून 1981 को बिहार में हुआ। जब खगड़िया जिले में स्थित रेलवे ब्रिज नंबर-51 से पैसेंजर ट्रेन की आठ बोगियां बागमती नदी में बह गईं थीं। बताया जाता है कि इस ट्रेन हादसे (Train Accident) में लगभग दो हजार से अधिक लोग मारे गए थे।

सात बोगियों का आज भी पता नहीं

खगड़िया जिले में हुए इस ट्रेन दुर्घटना (Train Accident) के 42 साल बाद भी आज तक सात बोगियों का पता नहीं चल सका है। इस हादसे में करीब 250 लोगों के शवों को पांच दिनों के सघन अभियान में बागमती नदी से निकाला गया था। प्रशासन ने सिर्फ आठ सौ लोगों के मरने की पुष्टि की थी। लेकिन चश्मदीद का कहना है कि ट्रेन पूरी तरह से लोगों से खचाखच भरी हुई थी और दो हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। जब बोगियां ही नहीं मिलीं तो शवों को कहां से निकाला जाता।

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हवा में लटक रहे थे ट्रेन के डिब्बे

बताया जाता है कि समस्तीपुर से रोसड़ा-हसनपुर-खगड़िया होते हुए सहरसा जाने वाली 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन शनिवार छह जून को धामरा घाट पर करीब 30 मिनट की देरी से चल रही थी। ट्रेन जब धमारा घाट स्टेशन से पहले बागमती नदी पर बने ब्रिज नंबर-51 पर पहुंच रही थी तभी ट्रैक पर कुछ गाय-भैंस आ गईं। चालक ने हल्का ब्रेक लगाने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली और ट्रेन आगे बढ़ गई। इसी बीच तेज आंधी और बारिश हो रही थी, लिहाजा यात्रियों ने खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए थे। पुल पर ट्रेन बहुत धीमी गति से चल रही थी। इसी बीच अचानक पूरी ट्रेन लड़खड़ा गई। देखते ही देखते ट्रेन के सात डिब्बे बागमती नदी के गहरे पानी में गिर गये। वहीं एक कोच नदी के ऊपर लटक गया, जबकि इंजन और इंजन कोच सुरक्षित रहे। चंद मिनट में ही मौके पर अफरा-तफरी मच गई, आसपास के लोग वहां पर एकत्रित हो गये।

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घटना की सूचना मिलते ही रेल प्रशासन और स्थानीय प्रशासन में हड़कंप मच गया। राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है। पांच दिनों तक चले राहत और बचाव अभियान में करीब 250 शव निकाले गए। लेकिन नदी के बीच में गिरे सात बोगियों का कोई पता नहीं चल सका। कहा जाता है कि बरसात के चलते नदी लबालब भरी हुई थी और दलदल के लिए प्रसिद्ध इस गहरी नदी में गिरी हुई रेल की बोगियां पानी की सतह में डूब जाने के कारण उनका पता नहीं चल सका। बाद में नदी की बदलती धाराओं ने उसे रेत में दबा दिया। इस घटना में सैकड़ों परिवार पूरी तरह से उजड़ गए। कई लोग पूरे परिवार के साथ थे जिनकी मौत हो गई। लोग आज भी 6 जून 1981 के उस दिन को याद कर सिहर उठते हैं। जब आंधी में पेड़-पौधे नहीं गिरे, बल्कि पूरी ट्रेन नदी में बह गई थी। 6 जून से ठीक चार दिन पहले जब ओडिशा में एक बड़ा हादसा हुआ तो बिहार के लोगों के जेहन में उस वीभत्स घटना की यादें एक बार फिर ताजा हो गईं।

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