Wednesday, December 18, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeदेशदुर्गा पूजाः हावड़ा और सियालदह स्टेशनों पर लगा ढाकियों का जमघट

दुर्गा पूजाः हावड़ा और सियालदह स्टेशनों पर लगा ढाकियों का जमघट

कोलकाताः महामारी के बीच इस बार भी बड़े पैमाने पर आयोजित हो रही दुर्गा पूजा के उद्घोष के लिए ढाकियों की भीड़ हावड़ा- सियालदह स्टेशनों पर शनिवार से ही लग गई है। आज तृतिया है और नियमानुसार षष्ठी के दिन से ढाकियों के ढाक बजने लगते हैं। पूजा का उद्घोष राज्य भर से बड़े पैमाने पर उमड़ने वाले ढाकियों के ढाक (ढोल नगाड़े जैसे वाद्य) बजाने से होता है।

दुर्गा पूजा का रिवाज है कि षष्ठी के दिन से सभी पूजा पंडालों में बड़ी संख्या में ढाकिए बड़े-बड़े ढोल लेकर एक खास धुन पर लगातार बजाते हैं। यह ढोल भी विशेष होते हैं। कम से कम 2.5 से तीन फुट लंबे और करीब एक-डेढ़ फुट चौड़े होते हैं। एक ओर से पक्षियों के पंखों से सजे होते हैं और दूसरी ओर से जब ढाकिया इस पर थाप देते हैं तो दुर्गा पूजा की गूंज सुनाई देने लगती है। मंगलवार को षष्ठी है और आधिकारिक तौर पर इस दिन से सभी पूजा पंडालों में ढोल बजने लगेंगे। इसके पहले तृतिया यानि शानिवार को राज्य के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में ढाकिए हावड़ा और सियालदह स्टेशन के आस पास पहुंच गए हैं। बर्दवान, मुर्शिदाबाद, बांकुड़ा, मालदा, पुरुलिया आदि सुदूर बंगाल के क्षेत्रों से सैकड़ों की संख्या में जुटे ढाकिए इस इंतजार में रेलवे स्टेशनों के आस पास पहुंचते हैं कि राजधानी कोलकाता के पूजा आयोजक इन्हें अपने साथ लेकर जाएंगे। षष्ठी से नवमी तक ये ढाक बजाएंगे और इसके लिए आयोजकों की ओर से मिलने वाली राशि से सालभर इनके घर का खर्च चलेगा। सियालदह स्टेशन पर भी कमोबेश सैकड़ों की संख्या में ढाकी उमड़ पड़े हैं।

यह भी पढ़ेंः-सीएम मनोहर लाल ने शाह से मुलाकात, इन मुद्दों पर हुई चर्चा

एक ढाकी ने बताया कि पहले दुर्गा पूजा के आयोजक बड़े पैमाने पर खुशी-खुशी रुपये लुटाते थे। उन्हें मांगना भी नहीं पड़ता था, लेकिन अब कई पूजा पंडालों में उनसे मोलतोल किया जाता है। ऊपर से अगर मन मुताबिक पैसे पर ढोल बजाने के लिए तैयार नहीं हुए तो उन्हें लौटा दिया जाता है। कई ढाकियों को मजबूरन खाली हाथ अपने घर लौटना पड़ता है। इसके अलावा पिछले दो सालों से महामारी ने उनकी रोजी रोटी को और अधिक प्रभावित किया है। इन लोगों ने पश्चिम बंगाल सरकार से इन्हें लोक शिल्पी के तौर पर पंजीकृत करने और भत्ता देने की मांग की है, लेकिन बार बार यह मांग उठने के बावजूद राज्य सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर  पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें…)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें