Friday, January 17, 2025
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HomeविशेषIndia Alliance: इंडी गठबंधन यानी मौकापरस्त दलों का संगम

India Alliance: इंडी गठबंधन यानी मौकापरस्त दलों का संगम

रघुनाथ कसौधन

India Alliance, नई दिल्लीः राजनीति को अवसरों का सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है। यहां अपना भाग्य आजमाने वाले नेता हों या दल, बेहतर अवसर की तलाश में हमेशा लगे रहते हैं। उसके लिए भले ही अपनी विचारधारा को भूलना पड़ जाए या फिर कट्टर दुश्मन को गले लगाना पड़ जाए। देश की सत्ता पर काबिज भाजपा को हटाने के लिए बने इंडी गठबंधन में शामिल दलों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। इसमें शामिल दल अपनी एकजुटता दिखाने के लिए चंद दिनों तक साथ दिखाई देते हैं और फिर मौका पाते ही एक-दूसरे की पोल पट्टी खोलने में लग जाते हैं। ऐसे में इंडी गठबंधन को गठबंधन कहने की बजाय मौकापरस्त दलों का संगम कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इसी साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए इंडी गठबंधन के दल फिर एकत्रित हुए थे और चुनाव से पहले ही कई बार जमघट लगाकर एक साथ होने का दावा भी किया था। हालांकि, तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस के नेतृत्व को आईना दिखाते हुए अपने राज्य में अकेले लड़ने का फैसला किया। इसमें राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दो राज्य पश्चिम बंगाल व पंजाब खासतौर से शामिल रहे।

India Alliance: पंजाब में कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में तो कांग्रेस के साथ सीटों पर समझौता कर लिया लेकिन पंजाब में अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया। इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस कुल 13 सीटों में से जहां 07 सीटें जीतकर राज्य में सबसे बड़़ी पार्टी बनी, वहीं आम आदमी पार्टी महज 03 सीटें ही हासिल कर सकी। नतीजों ने यह साफ-साफ संदेश दिया कि अगर दोनों पार्टियां दिल्ली की तरह पंजाब में भी गठबंधन करके लड़तीं तो क्लीन स्वीप भी कर सकती थी लेकिन बढ़त हासिल करने के चक्कर में दोनों दल एकमत नहीं हो सके।

कुछ ऐसा ही हाल पश्चिम बंगाल में हुआ, जहां पर टीमएसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस और वाम दलों को किसी तरह का भाव नहीं दिया और अकेले सभी सीटों पर लड़ी। यहां पर टीएमसी ने अकेले 42 सीटों में से 29 सीटें हथिया लीं, जबकि कांग्रेस केवल 01 सीट पर ही सिमट गई। बहरहाल, भाजपा की अगुवाई वाला गठबंधन तीसरी बार सत्ता में काबिज हो चुका है लेकिन इंडी गठबंधन न तो अब तक सफलता हासिल कर सका और न ही एक झंडे के नीचे एकत्रित हो सका है। हालांकि, लोस चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को संजीवनी दी और वह 99 सीटों तक पहुंच गई लेकिन अब भी उसके नेता राहुल गांधी इंडी गठबंधन के सर्वमान्य नेता नहीं बन सके हैं।

India Alliance: विस चुनावों में कांग्रेस को लगा झटका

लोस चुनाव के बाद किसान आंदोलन का सबसे बड़े केंद्र रहे हरियाणा में हुई कांग्रेस की करारी हार ने उसे फिर से सहयोगी दलों के निशाने पर ला दिया। जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नही रही। इसके बाद महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों के साथ ही कई राज्यों में हुए उपचुनावों में इंडी गठबंधन एकमत नहीं दिखा। महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी के बैनर तले एकजुट होकर सभी लड़े लेकिन यहां पर भाजपा गठबंधन के पक्ष में आए अप्रत्याशित नतीजों ने कांग्रेस का दम निकाल दिया। हालांकि, झारखण्ड में हेमंत सोरेन की अगुवाई में विपक्ष की सरकार बन गई।

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इससे इतर उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में इंडी गठबंधन के मुख्य साथी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने नौ सीटों में से कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी और उससे राय-मशविरा किए बिना सभी सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए। यहां कांग्रेस मन मसोस कर रह गई। यही हाल पश्चिम बंगाल में भी रहा, जहां ममता बनर्जी ने अकेले ही उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल कर ली। नए साल की शुरूआत में देश की राजधानी दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी इंडी गठबंधन सिर्फ कागजों में ही सिमट गया है। यहां पर अरविंद केजरीवाल ने सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतार कर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। हालांकि, अभी भी कांग्रेस को उम्मीद है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी से गठबंधन हो सकता है।

India Alliance: अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग

वर्तमान राजनीतिक हालात को देखकर यह बात जाहिर होती है कि इंडी गठबंधन में जितने भी दल शामिल हैं, वह सभी अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सबसे अच्छी पकाना चाहते हैं, भले ही उसके साथी भूखे रह जाएं। कांग्रेस से ही छिटक कर राज्यों में अपना प्रभुत्व जमाने वाले क्षेत्रीय दल किसी भी कीमत पर राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं दिखाई देते हैं। इसी का नतीजा है कि गाहे-बगाहे वह एक-दूसरे पर हमला भी करते रहते हैं। वर्तमान समय में एक बार फिर इंडी गठबंधन के नेतृत्व को लेकर विपक्षी दलों में सिर फुटौव्वल मची हुई है। समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी से लगायत कई दल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को गठबंधन की नेता के तौर पर प्रजेंट कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस इस पर चुप्पी साधे हुए है।

यूपी उपचुनाव में साइडलाइन करने के बाद अखिलेश यादव भी अब कांग्रेस से किनारा करने लगे हैं। संसद सत्र में कांग्रेस नेतृत्व द्वारा जोर-शोर से उठाए जा रहे अडानी मुद्दे से अलग राय जाहिर कर व अरविंद केजरीवाल के महिला ‘महिला अदालत’ कार्यक्रम में शामिल होकर अखिलेश ने कांग्रेस को चिढ़ाने का ही काम किया है। केजरीवाल ने भी बिना किसी बातचीत के अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली है। इसी तरह ईवीएम मुद्दे पर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कांग्रेस को आईना दिखा दिया है। सहयोगी दलों के ये कदम इंडी गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लगाने भर को काफी है।

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