लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना का प्रकोप जारी है। एक ओर राज्य और केंद्र सरकार जहां टीका उत्सव मनाने में व्यस्त है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ती नजर आ रहीं हैं। सिर्फ लखनऊ ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेष की स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना का बोझ उठाने में हांफ रही हैं। राजधानी में अप्रैल माह में कोरोना का कहर अपने चरम पर है और इसका संक्रमण लगभग सात गुना बढ़ गया है। बीते 24 घंटे की टेस्ट रिपोर्ट बेहद डराने वाली है। उत्तर प्रदेश में 24 घंटे में कुल 18,021 नए संक्रमित मिले हैं। सोमवार को जहां 13,685 नए संक्रमित मिले थे, वहीं मंगलवार को इनकी संख्या में 4,336 का इजाफा हो गया। 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 18,021 नए केस आए हैं। इसमें भी राजधानी लखनऊ के आंकडे़ डराने वाले हैं। लखनऊ में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा एक दिन में सबसे ज्यादा 5 हजार के आंकड़े को पार कर गया है। सोमवार को 3,892 संक्रमित मिले थे, जबकि मंगलवार को इनकी संख्या 5,382 है। जांच को लेकर प्रदेश सरकार के अपने दावे हैं, लेकिन लोगों का कहना है कि सच्चाई कुछ और ही है। जहां एक ओर सरकार का दावा है कि प्रदेश में बीते 24 घंटे में जांच काफी तेजी से की गई। 2,18,965 सैंपल की जांच की गई थी, यह 24 घंटे में जांच का भी रिकॉर्ड है।
24 घंटे में 97 हजार आरटीपीसीआर जांच की गई है, वहीं प्राइवेट लैब को कोरोना जांच से बाहर रखना सरकार की मंशा पर सवालिया निशान खड़े कर रहा है। इसके अलावा सरकारी अस्पताल में जहां सैम्पल जमा करना था, उसकी संख्या में भी कमी की जा चुकी है। राजधानी के कुछ सीएचसी और पीएचसी में नाम मात्र की जांच की जा रही है। मंगलवार को इंडिया पब्लिक खबर की टीम ने अलीगंज सीएचसी में मौजूद जांच टीम के सदस्य ने बताया कि आज आरटीपीसीआर जांच बंद है। जांच के लिए जरूरी सामान हमें दिया ही नहीं गया। यहां पर जांच करवाने आने वालों को वापस भेज दिया गया। इससे पहले गुडम्बा सीचसी में भी कोरोना के टीकाकरण में भी हीला-हवाली की बात सामने आई थी। टीका की कमी के चलते ही वहां के कर्मचारी एक-एक टीका लगाने में 15 मिनट से आधे घंटे का समय ले रहे थे, जिससे टीकाकरण अभियान कच्छप गति से चल रहा है। कर्मचारी टीका लगवाने आए व्यक्तियों का रजिस्ट्रेशन मोबाइल के छोटे स्क्रीन पर कर रहे थे, जिससे एक-एक व्यक्ति के रजिस्ट्रेशन में ज्यादा से ज्यादा से समय खपाया जा सके।
निजी संस्थान कुछ घंटों में ही देते थे जांच रिपोर्ट
सरकार ने निजी संस्थानों में कोरोना की जांच बंद कर दी, जिससे सरकारी संस्थानों पर बोझ काफी ज्यादा बढ़ गया है। इसके अलावा कर्मचारियों के कोरोना पॉजिटिव होने की दशा में स्थिति और बिगड़ गई है। मैनपॉवर की कमी के चलते सरकारी संस्थानों में जांच का कार्य प्रभावित होने लगा है। लखनऊ के चरक पैथोलॉजी की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक जब निजी संस्थान कोरोना की जांच कर रहे थे, तो यहां पर ही अकेले करीब 300-400 जांच प्रतिदिन होती थी। यह जांच करीब 700 रूपये की होती थी। लोगों को उनकी जांच रिपोर्ट महज कुछ घंटों में ही दे दी जाती थी।
कई बड़े अस्पतालों में प्रभावित हो चुकी है जांच
पिछले दिनों डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल के 10 से 15 डॉक्टर व स्टाफ और संक्रमित हो गए थे। अब तक यहां के आधे स्टाफ व डॉक्टर संक्रमित हो चुके हैं। वहीं केजीएमयू एसजीपीजीआई, लोहिया और बलरामपुर अस्पताल के डॉक्टरों समेत लैब कर्मचारी भी बड़ी संख्या में संक्रमित हुए हैं।
जांच रिपोर्ट आने में देरी
भारी संख्या में स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने से कोरोना जांच पर भी विराम लग गया है। इसके अलावा जिन मरीजों ने पहले अपनी जांच करा ली थी, उनकी रिपोर्ट आने में 5-6 दिनों की देरी हो रही है। ऐसे में आम लोग घरों में ही बीमार होकर तड़प रहे हैं।
लखनऊ में हुई वैक्सीन की किल्लत
लखनऊ में ही कोवैक्सीन की डोज ही खत्म हो चुकी है। यहां के सिविल अस्पताल में अब तक लाभार्थियों को कोवैक्सीन लगाई जा रही थी। इसी तरीके से रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल में भी कोवैक्सीन दी जा रही थी, मगर दो दिनों से यहां पर कोवैक्सीन खत्म हो चुकी है। सोमवार को लखनऊ के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल व रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल में कोवैक्सीन उपलब्ध न होने से सैकड़ों लोग वापस हो गए।
पहली डोज ले चुके लोगों को हो रही दिक्कत
सोमवार सुबह भी सिविल अस्पताल व आरएलबी अस्पताल से 100 से ज्यादा लोग कोवैक्सीन नहीं होने के कारण वापस चले गए थे। सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को हो रही है, जो कोवैक्सीन की पहली डोज ले चुके हैं, लिहाजा उन्हें दूसरी डोज के लिए बुलाया गया था। वह कोवैक्सीन के अलावा दूसरी वैक्सीन की डोज भी नहीं ले सकते। इसी कारण अब उनके पास वापस लौटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। टीकाकरण उत्सव के पहले दिन भी सिविल अस्पताल से सबसे ज्यादा लोग को वैक्सीन नहीं होने से लौट गए थे। वहीं रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल में भी काफी संख्या में लोग वापस हुए थे। डॉक्टरों ने कहा था कि सोमवार को कोवैक्सीन आ जाएगी, लिहाजा भारी तादाद में दूसरी डोज लेने के लिए फिर सिविल अस्पताल और आरएलबी अस्पताल में सुबह लोग पहुंचे, लेकिन उन्हें जानकारी मिली कि कोवैक्सीन नहीं है। इसलिए कोवैक्सीन की पहली डोज ले चुके सभी लोग वापस हो गए। करीब सुबह 11ः00 बजे सिविल अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग ने कोवैक्सीन की डोज भेज दी। इसके बाद लोगों को फिर से वैक्सीन लगनी शुरू हो गई है।
ऐसे बढ़े मामले
तारीख संक्रमित सक्रिय मामले मौत
4 अप्रैल 1129 6283 8
5 अप्रैल 1133 7143 5
6 अप्रैल 1188 7981 7
7 अप्रैल 1333 8852 6
8 अप्रैल 2369 10749 11
9 अप्रैल 2934 13478 14
10 अप्रैल 4059 16690 23
11 अप्रैल 4444 20195 31
12 अप्रैल 3892 23090 21
13 अप्रैल 5382 27385 18
बैकुंठ धाम पर कम पड़ने लगी लकड़ी
कोरोना से हालात इतने खराब हैं कि श्मशान में शवों को जगह नहीं मिल रही है। बैकुंठ धाम में एक ही दिन में लगभग 80 शवों के पहुंचने से 8-10 घंटे तक की वेटिंग चल रही है। लम्बी कतारों को देखते हुए दोनों घाटों के बाहर गोमती नदी के किनारे लकड़ी से अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए प्लेटफार्म को बैरीकेडिंग करके सुरक्षित किया गया है। दोनों घाटों पर 24 घंटे मशीनें चल रही हैं। इसके बाद भी लाइन का क्रम टूट नहीं रहा है। यहां 6 प्लेटफार्म कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए आरक्षित किए गए हैं। आनन-फानन में टीनशेड से बैरीकेडिंग करानी पड़ी, इसके बाद यहां अंतिम संस्कार हो सका। बैकुंठ धाम पर आम तौर पर लकड़ी से 20-22 शवों का अंतिम संस्कार होता था, लेकिन आजकल यहां पर लगभग 40 कोरोना संक्रमित व 45 सामान्य शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है। अचानक इतनी संख्या में शवों के पहुंचने से स्थिति बहुत गंभीर हो गई है। आशंका व्यक्त की गई कि सामान्य शवों में कई कोरोना संक्रमित हो सकती हैं। फिलहाल एम्बुलेंस व लाश गाड़ी की लम्बी कतार लग गई है। बैकुंठ धाम पर शवों के रखने के लिए बने चबूतरों पर जगह नहीं बची थी। कई शव जमीन पर रखे गए थे। प्लेटफार्म पर जगह न मिलने से कई शवों का नदी के किनारे जमीन पर ही अंतिम संस्कार करना पड़ा। गुलाला घाट पर भी लगभग 48 शव पहुंचे, इसमें 22 कोरोना संक्रमित थे। यही स्थिति शहर के अन्य श्मशान घाटों का रहा। वीवीआईपी रोड आलमबाग, पिपरा घाट पर भी दिन भर अंतिम संस्कार होता रहा।
दान में मांगी जा रही लकड़ियां
नगर निगम की ओर से जुटाई जा रही लकड़ियां शवों के अंतिम संस्कार में कम पड़ने लगी हैं। करीब 10 ट्राली लकड़ियां रोज आ रही हैं, लेकिन फिर भी उनकी मात्रा कम ही पड़ रही हैं। कान्हा उपवन व कस्बों से कंडे भी मंगाए गए हैं, फिर भी स्थिति बद से बदतर बनी हुई है। चर्चाओं पर गौर करें तो शहर के तमाम लोगों ने लकड़ियां दान करने का भी प्रस्ताव दिया है और बैकुंठ धाम प्रशासन ने इसकी स्वीकृति भी दे दी है।
रिपोर्ट की देरी पर बोले जिम्मेदार
हम लोग यूपी में रोजाना करीब डेढ़ लाख लोगों की जांच कर रहे हैं। अब अगर जांच का दायरा इतना बड़ा होगा, तो रिपोर्ट आने में भी थोड़ी बहुत देर तो हो ही जाएगी।
डॉ. डीके सैनी, निदेशक, स्वास्थ्य विभाग उप्र