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दिनचर्या और खानपान में बदलाव कर पूरी की जा सकती है विटामिन डी की कमी

नई दिल्लीः कोरोना महामारी से बचाव के लिए अन्य कारगर उपायों के साथ ही दुनियाभर के चिकित्सकों ने एक राय से इम्युनिटी बढ़ाने पर जोर दिया है। कोरोना के इलाज और उसके बाद पोस्ट कोविड में चिकित्सकों ने जो दवाइयां प्राथमिकता से लेने की सलाह दी है या जिन पर जोर दिया है उनमें विटामिन सी, विटामिन डी, जिंक और आयरन प्रमुख है। विटामिन, जिंक और आयरन की कमी को हम घर बैठे अपनी दिनचर्या और खानपान से पूरा कर सकते हैं। पर यह निराशाजनक स्थिति है कि हम महंगी से महंगी दवाएं खाने के लिए तैयार हैं पर अपनी दिनचर्या या खानपान में बदलाव लाने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि हमारी केमिकल्स और महंगी दवाओं पर निर्भरता अधिक बढ़ने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने लगी है।

सभी विटामिनों की कमी को खानपान, रहन-सहन के तरीकों से दूर किया जा सकता है। विटामिन डी की कमी को केवल और केवल 20 मिनट धूप में बैठकर पूरा कर सकते हैं। हड्डियों में दर्द, फ्रेक्चर, जल्दी-जल्दी थकान, घाव भरने में देरी, मोटापा, तनाव, अल्जाइमर जैसी बीमारियां आज हमारे जीवन का अंग बन चुकी हैं। शरीर की जीवन शक्ति या कहें कि प्रकृति से मिलने वाले स्वास्थ्यवर्द्धक उपहारों से हम मुंह मोड़ चुके हैं और नई से नई बीमारियों को आमंत्रित करने में आगे रहते हैं। यह आश्चर्यजनक लेकिन जमीनी हकीकत है कि मात्र पांच प्रतिशत महिलाओं में ही विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता है। देश की 68 फीसदी महिलाओं में तो विटामिन डी की अत्यधिक कमी है।

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विटामिन डी के कमी के कारण या निदान कहीं बाहर ढूंढने के स्थान पर हमें हमारी जीवन शैली में थोड़ा बदलाव करके ही पाया जा सकता है। पर इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आधुनिकता की दौड़ में हम प्रकृति से इस कदर दूर होते जा रहे हैं कि जल, वायु, हवा, धूप, अग्नि और न जाने कितने ही मुफ्त में प्राप्त प्राकृतिक उपहारों का उपयोग ही करना छोड़ दिया है। ऐसा नहीं है कि लोग जानते नहीं है पर जानने के बाद भी आधुनिकता का बोझ इस कदर छाया हुआ है कि हम प्रकृति से दूर होते हुए कृत्रिमता पर आश्रित होते जा रहे हैं। दरअसल हमारी जीवनशैली ही ऐसी होती जा रही है कि प्रकृति की जीवनदायिनी शक्ति से हम दूर होते जा रहे हैं। कुछ तो दिखावे के लिए तो कुछ हमारी सोच व मानसिकता के कारण। ऐसे में अब समय आ गया है जब हम प्रकृति की और लौटें और प्रकृति से सीधा संवाद कायम करें।

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